आधुनिक भारत में पुनर्जागरण (THE RENAISSANCE IN MODERN INDIA) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
आधुनिक भारत में पुनर्जागरण (THE RENAISSANCE IN MODERN INDIA)
- ब्रिटिश शासन ने भारतीय समाज को बहुत गहन रूप से प्रभावित किया.
- अंग्रेजों से पूर्व भी अनेक विदेशी आक्रान्ता भारत में आए किन्तु वे भारतीय समाज और संस्कृति में घुलमिल गए.
- उन्होंने भारतीय धर्म, संस्कृति और सभ्यता को अपनाया और भारतीय समाज के अभिन्न अंग बन गए, परन्तु अंग्रेजी आक्रान्ता इन सब से पूर्णत: भिन्न थे.
- 18वीं शताब्दी में यूरोप में एक नवीन बौद्धिक लहर का सूत्रपात हुआ.
- तर्कवाद और अन्वेषण की भावना ने यूरोपीय समाज को एक नवीन दिशा प्रदान की.
- विज्ञान तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने राजनीतिक, सैनिक, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक सभी पक्षों को प्रभावित किया.
- इससे यूरोप आधुनिक सभ्यता का एक अग्रणी महाद्वीप बन गया.
- इसके विपरीत भारत एक परम्परावादी समाज का प्रतिनिधित्व कर रहा था.
- अत: अंग्रेजी आक्रान्ताओं के रूप में भारत का सामना एक ऐसे आक्रान्ता से हुआ जो अपने आप को सामाजिक तथा सांस्कृतिक रूप से अधिक उत्तम समझता था, सम्भवतः था भी.
- ब्रिटिश शासन की स्थापना के बाद पाश्चात्य शिक्षा की जो लहर चलो उसने भारत के प्रबुद्ध वर्गीय युवा वर्ग को गहन रूप से प्रभावित किया.
- इनमें राजा राम मोहन राय का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है.
- उन्हें आधुनिक भारत का जन्मदाता कहा जाता है.
- उन्होंने पाश्चात्य शिक्षा, तर्कवाद, विज्ञानवाद और मानववाद से प्रभावित होकर भारतीय समाज और संस्कृति में व्याप्त गंभीर दोषों को समाप्त करने के लिए प्रभावी प्रयास किए.
ब्रह्म समाज (The Brahmo Samaj)
- भारत में लगभग सभी सामाजिक कुरीतियां धार्मिक मान्यताओं पर आधारित थी.
- अतः धर्म को सुधारे बिना समाज में सुधार सम्भव न था.
- हिन्दू धर्म में पहला सुधारवादी आन्दोलन ब्रह्म समाज था.
- 1828 में ने ब्रह्म समाज की स्थापना की.
- उन्होंने सती प्रथा, बाल विवाह, शिशु वध और विधवा-पुनर्विवाह की मनाही आदि के खिलाफ आवाज उठाई.
- 1829 में उनके गम्भीर प्रयासों के कारण सती प्रथा, शिशु वध और बाल विवाह को गैर कानूनी घोषित किया गया तथा विधवा पुनर्विवाह की अनुमति दी गई.
- 1833 में इंग्लैण्ड में उनकी अकाल मृत्यु के बाद ब्रह्म समाज में नेतृत्व हीनता के कारण शिथिलता आ गई.
- 1842 में देवेन्द्र नाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज को पुनः जीवित किया.
- उनके प्रमुख सहयोगी श्री केशवचन्द्र सेन ने अपनी शक्ति, वाकपटुता और उदारवादी दृष्टिकोण के कारण इस आन्दोलन को बहुत लोकप्रिय बना दिया.
- किन्तु शीघ्र ही ब्रह्म समाज में फूट पड़ गई.
- 1865 में देवेन्द्र नाथ टैगौर ने अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए.
- केशवचन्द्रसेन को ब्रह्म समाज के आचार्य के पद से पदमुक्त कर दिया.
- केशवचन्द्र सेन ने एक नवीन ब्रह्म समाज की स्थापना की जिसको “आदि ब्रह्म समाज” कहा गया.
- 1878 में इस नवीन समाज में भी फूट पड़ गई.
- इसके बाद एक नवीन ब्रह्म समाज अर्थात् ‘साधारण ब्रह्म समाज’ अस्तित्व में आया.
- ब्रह्म समाजियों ने अवतारवाद, बहुदेववाद, मूर्ति पूजा और वर्ण व्यवस्था की कटु आलोचना की.
- उन्होंने बहु-विवाह, सती प्रथा, बाल-विवाह और पर्दा प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाई.
- उन्होंने विधवा पुनः विवाह और स्त्री शिक्षा के लिए भी कदम उठाए.
प्रार्थना समाज (The Prarthana Samaj)
- 1867 में श्री केशवचन्द्र सेन की प्रेरणा से बम्बई में प्रार्थना समाज की स्थापना की गई.
- इस समाज के प्रमुख नेता न्यायमूर्ति महादेव गोविन्द रानाडे और एन. जी. चन्द्रावरकर थे.
- इनका विश्वास था कि ईश्वर की सच्ची पूजा उसके मनुष्यों की सेवा है.
- इन्होंने जात-पांत का विरोध, स्त्री-पुरुष समानता, विधवा-पुनर्विवाह और स्त्री शिक्षा के पक्ष में वातावरण तैयार किया.
- प्रार्थना समाज द्वारा स्थापित “दलित जाति मण्डल” ‘समाज सेवा संघ‘, और ‘दक्कन शिक्षा सभा‘ ने समाज सुधार के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया.
आर्य समाज (The Arya Samaj)
- स्वामी दयानंद ने 1875 में बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की.
- इस समाज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य प्राचीन वैदिक धर्म की शुद्ध रूप से पुनः स्थापना करना था.
- स्वामी दयानंद ने ‘पुनः वेदों की ओर लौट चलने’ का नारा दिया.
- वे वेद को ईश्वरीय ज्ञान मानते थे और उपनिषद् काल तक के साहित्य को स्वीकार करते थे.
- स्वामी दयानंद ने अद्वैतवादी दर्शन को वैदिक परम्परा के विपरीत बताया.
- आर्य समाज ने धार्मिक क्षेत्र में मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, अवतारवाद, श्राद्ध और झूठे कर्मकाण्डों के विरुद्ध आवाज उठाई.
- सामाजिक क्षेत्र में छुआ-छूत वर्णव्यवस्था, बाल-विवाह आदि बुराइयों पर कुठराघात किया.
- राजनीतिक दृष्टि से आर्य समाज का यह मत था कि बुरे से बुरा स्वदेशी राज्य अच्छे से अच्छे विदेशी राज्य से अच्छा होता है.
- इस मत के कारण आर्य समाज को “भारतीय अशान्ति का जन्मदाता” कहा जाता है.
- स्वामी दयानंद सम्भवत: पहले भारतीय थे जिन्होंने शूद्र तथा स्त्री को वेद पढ़ने, ऊँची शिक्षा प्राप्त करने और यज्ञोपवीत धारण करने के अधिकार के लिए आन्दोलन चलाया.
- स्वामी दयानंद के प्रमुख विचार उनकी प्रसिद्ध पुस्तक “सत्यार्थ प्रकाश” में वर्णित हैं.
- 1886 में दयानन्द ऐंग्लो-वैदिक संस्थाएं देश भर में स्थापित की गई.
आर्य समाज के प्रमुख सिद्धांत और नियम निम्नलिखित थे –
- समस्त पदार्थों का मूल परमेश्वर है.
- ईश्वर निराकार और सर्वशक्तिमान है.
- वेदों का अध्ययन आर्यों का परमधर्म है.
- सत्य को ग्रहण करने तथा असत्य को त्यागने के लिए सदैव उद्यत रहना चाहिए.
- अज्ञान का नाश और ज्ञान की वृद्धि हेतु प्रयत्न करने चाहिए.
- मनुष्य को सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए.
- इसके अलावा आर्य समाज ने शुद्धि आन्दोलन भी चलाया इसके अन्तर्गत लोगों को अन्य धर्मों से हिन्दू धर्म में लाने का प्रयास किया गया.
रामकृष्ण मिशन (The Ramakrishna Mission)
- स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरू स्वामी रामकृष्ण परमहंस की स्मृति में 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी.
- स्वामी विवेकानंद का जन्म 1862 में हुआ था.
- प्रारंभ में उनका नाम नरेन्द्र दत्त था.
- उन्होंने 1893 में शिकागो में हुई “विश्व धर्मों की संसद (सभा)” में भाग लिया और अपनी विद्वतापूर्ण विवेचना द्वारा विश्व भर के धर्मानुयायियों को प्रभावित किया.
- उनके भाषण का मुख्य तत्व यह था कि हमें भौतिकवाद तथा अध्यात्मवाद के मध्य एक स्वस्थ संतुलन स्थापित करना चाहिए.
- दूसरे शब्दों में पश्चिम के भौतिकवाद और पूर्व के अध्यात्मवाद का सांमजस्यपूर्ण सम्मिश्रण विश्वभर को प्रसन्नता प्रदान कर सकता है.
- स्वामी विवेकानंद ने सभी धर्मों की समानता पर बल दिया.
- उन्होंने भारतीयों के स्वाभिमान को जगाया.
- उनका दृष्टिकोण यह था कि भूखे व्यक्ति को धर्म की बात कहना ईश्वर और मानवता दोनों का अपमान है.
- उनके द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन की शाखाएं आज भी समाज सुधार के क्षेत्र में कार्यरत हैं.
थियोसोफिकल सोसाइटी (The Theosophical Society)
- 1875 में मैडम एच. पी. ब्लावेट्स्की (रूसी) और कर्नल एम. एस. ऑल्कोट (अमेरिकी) ने अमेरिका में थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना की.
- 1886 में इस सोसाइटी का मुख्य कार्यालय भारत में मद्रास के समीप अड्यार नामक स्थान पर स्थापित किया गया.
- 1882 में एक ईसाई महिला श्रीमति एनी बेसेन्ट इस सोसाइटी के सम्पर्क में आयी.
- 1889 में वह इसमें औपचारिक रूप से शामिल हो गई.
- 1891 में मैडम ब्लावेट्स्की को मृत्यु के बाद वे भारत आई.
- वे भारतीय विचार और संस्कृति से भली-भांति परिचित थी.
- 1897 में कर्नल ऑलकोट की मृत्यु के बाद श्रीमति बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसाइटी की अध्यक्ष बनी.
- उनके नेतृत्व में सोसाइटी शीघ्र ही हिन्दू पुनर्जागरण का एक प्रमुख आन्दोलन बन गई.
- श्रीमति बेसेन्ट ने भारतीयों में आत्मविश्वास और राष्ट्र निर्माण की भावना जागृत की.
- उन्होंने 1898 में बनारस में सेन्ट्रल हिन्दू कालेज की नींव रखी.
- 1916 से यह कॉलेज बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है.
- श्रीमती बेसेन्ट ने भारत में होम रूल लीग की भी स्थापना की.
- थियोसोफिकल सोसाइटी ने एकेश्वरवाद का प्रचार किया.
- सोसाइटी ने बाल-विवाह, कन्या वध, विधवा-उत्पीड़न और छुआछूत के विरुद्ध भी आवाज उठाई.
- यह सोसाइटी मुख्यतः दक्षिणी भारत में सामाजिक और धार्मिक सुधार लाने में अधिक सफल हुई.
मुस्लिम सुधारवादी आन्दोलन (Muslim Reform Movement)
- हिन्दू धार्मिक एवं सामाजिक आन्दोलनों के समान ही भारतीय मुसलमानों में भी अनेक सुधारवादी आन्दोलन हुए.
- इनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं –
- वहाबी आन्दोलन (The Wahabi Movernment)
- अलीगढ़ आन्दोलन (The Aligarh Moverment)
- अहमदिया आन्दोलन
- देवबन्द-आन्दोलन (The Deoband Movement)
वहाबी आन्दोलन (The Wahabi Movernment)
- वहाबी आन्दोलन को भारतीय मुसलमानों की पाश्चात्य प्रभावों के विरुद्ध सर्वप्रथम प्रतिक्रिया के रूप में स्मरण किया जाता है.
- यह मुसलमानों का प्रथम पुनर्जागरणवादी आन्दोलन था.
- सैय्यद अहमद और इस्माइल हाजी मौलवी मोहम्मद वहाबी आन्दोलन के प्रमुख नेता थे.
- यह आन्दोलन मुख्यतः भारतीय मुसलमानों के रीति-रिवाजों और मान्यताओं में प्रचलित कुरीतियों के विरुद्ध था.
- इस आन्दोलन में इस्लाम की पवित्रता और एकता पर जोर दिया गया.
- किंतु इस आन्दोलन का स्वरूप रूढ़िवादी अधिक था, अत: यह अधिक सफलता प्राप्त न कर सका.
अलीगढ़ आन्दोलन (The Aligarh Moverment)
- 19वीं शताब्दी के मुस्लिम समाज सुधारकों में सर सैय्यद अहमद खां का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.
- वे यह चाहते थे कि मुसलमान अंग्रेजों के प्रति वफादार रहकर अपना कल्याण करे.
- वे स्वयं 1857 के विद्रोह के समय कम्पनी की न्यायिक सेवा में कार्यरत थे.
- उन्होंने मुस्लिम समाज में प्रचलित कुरीतियों जैसे- पीरी मुरीदी की प्रथा, दास प्रथा आदि को भी दूर करने का प्रयास किया.
- उन्होंने अपने विचारों का प्रचार ‘तहजीब-उल-अखलाक’ (सभ्यता और नैतिकता) नामक पत्रिका के माध्यम से किया.
- 1875 में उन्होंने अलीगढ़ में ऐंग्लो-मुस्लिम ओरिएंटल कॉलेज की भी नींव रखी.
- इस कॉलेज में पाश्चात्य और मुस्लिम दोनों ही प्रकार की शिक्षाएं प्रदान की जाती थी.
- शीघ्र ही अलीगढ़ मुस्लिम सम्प्रदाय के धार्मिक और सास्कृतिक पुनर्जागरण का केन्द्र बन गया.
- 1920 में एंग्लो-मुस्लिम ओरिएन्टल कॉलेज का नाम अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय रखा गया.
अहमदिया आन्दोलन
- मिर्जा गुलाम अहमद कादिनी के नेतृत्व में अहमदिया आन्दोलन प्रारंभ हुआ.
- इस आन्दोलन का प्रमुख लक्ष्य सभी धर्मों में सुधार करना था.
देवबन्द-आन्दोलन (The Deoband Movement)
- मुस्लिम उलेमाओं ने देवबन्द आन्दोलन चलाया.
- इस पुनर्जागरणवादी आन्दोलन के दो मुख्य उद्देश्य थे –
- मुसलमानों में कुरान तथा हदीस की शुद्ध शिक्षा का प्रसार करना.
- विदेशी शासन के विरुद्ध “जिहाद’ की भावना को जीवित रखना.
- मुहम्मद कासिम ननौवी और रशीद अहमद गंगोही के नेतृत्व में देवबन्द (सहारनपुर-उत्तर प्रदेश) में एक विद्यालय खोला गया.
- इस विद्यालय में इस्लाम की शिक्षा दी जाती थी.
- जिसका उद्देश्य यह था कि मुस्लिम सम्प्रदाय का नैतिक और धार्मिक पुनरुद्धार किया जाए.
- यह अलीगढ़ आन्दोलन से पूर्णतया विपरीत था जो पाश्चात्य शिक्षा और ब्रिटिश सरकार की सहायता से मुसलमानों का कल्याण चाहता था.
- खान अब्दुल गफ्फार खां के नेतृत्व में खुदाई खिदमदगार आन्दोलन चलाया गया.
सिख सुधार आन्दोलन (The Sikh Reform Movement)
- अमृतसर में सिंह सभा ने आन्दोलन आरंभ किया.
- यह एक छोटा सा आन्दोलन या “अकाली लहर” थी जो कि उन भ्रष्ट महंतों के विरुद्ध थी जो गुरुद्वारों को अपनी पैतृक सम्पत्ति मानते थे.
- 1921 में अकालियों ने गुरुद्वारों के उद्धार के लिए इन महन्तों के विरुद्ध अहिंसात्मक आन्दोलन आरंभ किया.
- सरकार ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए काफी प्रयास किए, किन्तु अंत में सरकार को झुकना पड़ा.
- 1922 में सिख गुरुद्वारा अधिनियम पारित हुआ.
20वीं शताब्दी में सामाजिक सुधार (Social Reforms in 20th Century)
- 20वीं शताब्दी में समाज सुधार हेतु अखिल भारतीय और प्रादेशिक स्तर पर अनेक संस्थाओं की स्थापना हुई.
- इनमें से प्रमुख संस्थाएं थी-
- भारतीय राष्ट्रीय सामाजिक सम्मेलन (1887),
- बम्बई समाज सुधारक सभा (1903),
- अखिल भारतीय अस्पृश्यता निवारक संघ (1932),
- अखिल भारतीय महिला संघ (1926),
- अखिल भारतीय दलित जातीय सभा और
- अखिल भारतीय दलित जातीय संघ आदि.