बंगाल में ब्रिटिश शक्ति का उदय- प्लासी और बक्सर का युद्ध (RISE OF BRITISH POWER IN BENGAL- BATTLE OF PLASSY AND BUXAR) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
बंगाल में ब्रिटिश शक्ति का उदय
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बंगाल में अपनी पहली कोठी (कार्यालय) 1651 में हुगली में बनाई.
- शीघ्र ही उन्होंने कासिम बाजार और पटना में भी अपनी कोठियां बना ली.
- 1698 में उन्होंने सूबेदार अजीमुशान से सूतानती, कालीघाट और गोविन्दपुर (जहां वर्तमान कलकत्ता महानगर बसा हुआ है) की जमींदारी भी प्राप्त कर ली इसके बदले उन्हें केवल 1200 रुपये पुराने मालिकों (जमीदारों) को देने पड़ते थे.
- 1741 में बिहार के नायब सूबेदार अली-वर्दी खां ने बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा के नायब सरफराज खां के विरुद्ध विद्रोह कर उसे परास्त कर दिया और स्वयं इस सम्पूर्ण प्रदेश का नवाब बन गया.
- किन्तु शीघ्र ही मराठा आक्रमणों के कारण उसकी योजनाएं अधिक सफल न हो सकी.
- इसके अलावा मराठों के आक्रमणों से भयभीत होकर अंग्रेजों ने नवाब की अनुमति से अपनी कोठी अर्थात् फोर्ट विलियम की सुरक्षा हेतु उसके चारों ओर गहरी खाई बनवा ली.
- शीघ्र ही नवाब अलीवर्दी खां का ध्यान कर्नाटक में विदेशी कम्पनियों द्वारा सत्ता हथियाने की घटनाओं की ओर गया.
- अत: इस आशंका से कि कहीं अंग्रेज बंगाल पर भी कब्जा न कर लें, नवाब ने अंग्रेजों को बंगाल से पूर्णरूपेण निष्काषित कर दिया.
- 9 अप्रैल, 1756 को अलीवर्दी खां की मृत्यु के बाद उसका दामाद सिराजुद्दौला उसका उत्तराधिकारी बना.
- सिराजुद्दौला के प्रमुख प्रतिद्वन्दी थेपूरनिया का नवाब शौकतजंग तथा स्वयं सिरजुद्दौला की मौसी घसीटी बेगम तथा अंग्रेज.
- 15 जून, 1756 को सिराजुद्दौला ने बंगाल में अंग्रेजों की कोठी अर्थात् फोर्ट विलियम को घेर लिया.
- लगातार पांच दिन के संघर्ष के बाद फोर्ट विलियम पर सिराजुद्दौला का कब्जा हो गया.
- नवाब ने कलकत्ता को नया नाम अलीनगर दिया.
- इसके बाद वह कलकत्ता को अपने सेवक मानिक चन्द के सुपुर्द कर मुर्शिदाबाद वापस लौट गया.
ब्लैक होल (Black Hole) की घटना
- इसी दौरान ‘ब्लैक होल’ (Black Hole) की बहुचर्चित घटना भी हुई.
- इस घटना के संबंध में यह कहा जाता है कि नवाब सिराजुद्दौला ने अपनी कलकत्ता विजय के बाद 146 अंग्रेजी युद्ध बन्दियों को एक 18 फुट लम्बे तथा 14 फुट 10 इंच चौड़े कक्ष में 20 जून की रात्रि को बंद कर दिया.
- 21 जून की सुबह को उनमें से केवल 23 व्यक्ति ही बचे.
- शेष जून माह की गर्मी, घुटन तथा कुचल जाने के कारण मर गए.
- सिरजुद्दौला को इस घटना के लिए उत्तरदायी माना जाता है.
प्लासी का युद्ध (The Battle of Plassy 1757)
- कलकत्ता पर सिराजुद्दौला के कब्जे का समाचार जैसे ही मद्रास पहुँचा वैसे ही क्लाइव के नेतृत्व में एक सशस्त्र सेना कलकत्ता के लिए रवाना कर दी गई.
- नवाब के प्रभारी मानिक चन्द ने एक बड़ी राशि लेकर कलकत्ता अंग्रेजों को सौंप दिया.
- इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया कि नवाब के प्रमुख अधिकारी नवाब से संतुष्ट नहीं थे.
- इस स्थिति का लाभ उठाकार क्लाइव ने बंगाल के प्रमुख साहूकार जगत सेठ तथा मीर जाफर को अपने साथ मिलाकर नवाब सिराजुद्दौला के विरुद्ध एक घड्यन्त्र रचा.
- मीर जाफर को नवाब बनाने का लालच दिया गया.
- इसी समय सिराजुद्दौला को अफगानों तथा के आक्रमण का भी भय था.
- अतः क्लाइव ने उपयुक्त अवसर का लाभ उठाते हुए मुर्शिदाबाद पर आक्रमण के लिए प्रस्थान किया.
- 23 जून, 1757 को दोनों सेनाएं मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर स्थित प्लासी के ऐतिहासिक क्षेत्र में टकराई.
- नवाब की विशाल सेना का नेतृत्व विश्वासघाती मीर जाफर कर रहा था.
- अंग्रेजों के थोड़े से सैनिकों ने शीघ्र ही सिराजुद्दौला की विशाल सेना पर कब्जा कर लिया.
- मीर जाफ़र सिर्फ देखता रहा. इस प्रकार क्लाइव को सस्ती तथा निश्चयात्मक विजय प्राप्त हुई.
- सिराजुद्दौला भाग कर मुर्शिदाबाद और वहां से भाग कर पटना चला गया.
- पटना में मीर जाफर के पुत्र मीरन ने उसकी हत्या कर दी.
- 25 जून, 1757 को मीर जाफर मुर्शिदाबाद वापस आ गया और अपने-आप को नवाब, घोषित कर दिया.
- इस सफलता की प्राप्ति में दिए गए सहयोग के कारण उसने अंग्रेजों को 24 परगनों को जमींदारी से पुरस्कृत किया.
- क्लाइव को 2,34,000 पौण्ड निजी भेंट के रूप में दिए गए.
- इसके अलावा बंगाल की समस्त फ्रांसीसी बस्तियां भी अंग्रेजों को दे दी गई.
- इस प्रकार प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल अंग्रेजों के अधीन आ गया और फिर कभी स्वतंत्र न हो सका.
- बंगाल का नया नवाब मीर जाफ़र अपनी रक्षा तथा पद के लिए पूर्ण रूप से अंग्रेजों पर निर्भर था.
- यद्यपि मीर जाफ़र क्लाइव का कठपुतली शासक था किन्तु वह अंग्रेजों की निरन्तर बढ़ती धन की मांग को पूरा न कर सका.
- अत: अंग्रेज किसी अन्य शासक की तलाश करने लगे.
- इस उपयुक्त अवसर की तलाश मीर जाफर का दामाद मीर कासिम भी कर रहा था.
- अतः शीघ्र ही दोनों (अंग्रेज और मीर कासिम) की तलाश पूरी हो गई.
- 27 सितम्बर, 1760 को मीर कासिम तथा कलकत्ता काउन्सिल के मध्य एक संधि पर हस्ताक्षर हुए.
- इस संधि में निम्नलिखित प्रावधान थे-
- मीर कासिम ने कम्पनी को बर्दमान, मिदनापुर तथा चटगांव के जिले देना स्वीकार किया.
- सिल्हट के चूने के व्यापार में कम्पनी का आधा हिस्सा तय किया गया.
- मीर कासिम कम्पनी को दक्षिण के अभियान हेतु 5 लाख रुपया देगा.
- मीर कासिम कम्पनी के मित्रों को अपना मित्र तथा शत्रुओं को अपना शत्रु मानेगा.
- कम्पनी नवाब के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी.
- कम्पनी नवाब को सैनिक सहायता प्रदान करेगी.
- 14 अक्टूबर, 1760 को इस संधि को कार्यान्वित करवाने हेतु बेन सिंटार्ट तथा कोलॉड मुर्शिदाबाद पहुंचे.
- मीर जाफ़र ने अंग्रेजों के भय के कारण मीर कासिम के पक्ष में गद्दी छोड़ दी.
- मीर जाफ़र कलकत्ता में रहने लगा, जहां उसे 15,000 रुपये मासिक पेंशन प्राप्त होती थी.
- नवाब बनने के बाद मीर कासिम अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंघेर ले गया.
- वह मुर्शिदाबाद को षड्यन्त्रों का केन्द्र समझता था तथा कलकत्ता से दूर रहकर अंग्रेजों के हस्तक्षेप से दूर रहना चाहता था.
- उसने अपनी सेना का गठन यूरोपीय पद्धति पर करने का निश्चय किया.
- उसने मुंघेर में तोपों तथा तोड़ेदार बन्दूकों (Watch Lock Gun) के बनाने की भी व्यवस्था की.
बक्सर का युद्ध (The Battle of Buxar in Hindi)
- मीर कासिम को नवाब बनाते समय कम्पनी ने यह सोचा था कि मीर कासिम भी कठपुतली शासक साबित होगा.
- किन्तु मीर कासिम 1760 की संधि तक ही कठपुतली शासक साबित हुआ.
- मीर कासिम का वास्तविक उद्देश्य केवल अंग्रेजों की शक्ति को अधिक बढ़ने से रोकना या अपनी शक्ति को कम होने से रोकना था.
- दूसरे शब्दों में, वह केवल उक्त संधि का ही अक्षरशः पालन करना चाहता था.
- अतः शीघ्र ही कम्पनी और मीर कासिम के मध्य मतभेद सामने आने लगे.
- स्पष्ट रूप से कम्पनी और मीर कासिम के मध्य झगड़ा आन्तरिक व्यापार पर लगे करों को लेकर आरंभ हुआ.
- इसके बाद दोनों के मध्य झगड़े बढ़ते ही गए.
- इन झगड़ों का परिणाम 1764 में बक्सर के युद्ध के रूप में सामने आया.
- मीर कासिम ने अवध के नवाब तथा मुगल सम्राट से मिलकर अंग्रेजों से मुकाबला करने की योजना बनाई.
- मेजर मनरो के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने मीर कासिम को परास्त कर दिया.
- इस प्रकार बक्सर की लड़ाई ने प्लासी की लड़ाई के बाद शेष बची हुई औपचारिकताओं को भी पूरा कर दिया.
- अब भारत में अंग्रेजों को चुनौती देने वाला कोई न रहा.
- प्लासी के युद्ध ने बंगाल में तथा बक्सर के युद्ध ने उत्तर भारत में अंग्रेजों की स्थिति को सुदृढ़ कर दिया.
- मीर कासिम के बाद आने वाले नवाब अंग्रेजों के कठपुतली शासक थे.