भारत में यूरोपियों का आगमन (Advent of Europeans in India) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
भारत में यूरोपियों का आगमन
पुर्तगाली
- 1486 ई. में पुर्तगाली नाविक बार्थोलोम्यो ने उत्तमाशा अंतरीप (केप ऑफ गुड होप) तथा 1498 ई. में वास्कोडिगामा ने भारत की खोज की.
यूरोपीय यात्री वास्कोडिगामा
- प्रथम पुर्तगीज तथा प्रथम यूरोपीय यात्री वास्कोडिगामा 90 दिन की यात्रा कर अब्दुल मनीक नामक गुजराती पथ-प्रदर्शक की सहायता से 17 मई, 1498 ई. को कालीकट के बंदरगाह पर पहुंचा,
- वहां वास्कोडिगामा का स्वागत वहां के राजा जमोरिन (हिन्दू शासक) ने किया .
- किन्तु कालीकट के समुद्री तटों पर पहले से ही व्यापार कर रहे अरबों ने उसका विरोध किया.
- वास्कोडिगामा 1499 ई. में पुर्तगाल लौट गया.
- वास्कोडिगामा जिस माल को (खासकर कालीमिर्च) लेकर वापस लौटा वह पूरी यात्रा की कीमत के 60 गुना दामों पर बिका.
- सन् 1500 में पेड्रो अल्वारेज कब्राल के भारत आगमन तथा 1502 में वास्कोडिगामा के दुबारा आने से कालीकट, कोचीन तथा कन्नानोर में व्यापारिक केन्द्रों की स्थापना हुई.
- बाद में इनका स्थान गोवा ने ले लिया.
अल्फांसों दि अल्बुकर्क
- 1503 ई में अल्फांसों दि अल्बुकर्क सेना का कमाण्डर तथा 1509 में भारत में पुर्तगालियों का गवर्नर बनाया गया.
- यह भारत में दूसरा पुर्तगाली गवर्नर था,
- पहला फ्रांसिस्को डि अल्मिडा था जो 1505-9 ई. तक गवर्नर रहा.
- अल्बुकर्क ने 1510 में बीजापुर के शासक से गोवा छीन लिया.
- अल्बुकर्क ने पुर्तगालियों को भारतीय महिलाओं से विवाह करने को प्रोत्साहित किया.
- अल्बुकर्क मुसलमानों का विरोधी था.
- 1515 ई. में अल्बुकर्क की मृत्यु हो गई.
पुर्तगालियों ने 1503 ई. में कोचीन में अपने पहले दुर्ग की स्थापना की.
- 1529-38 में निना-दा-कुन्हा गवर्नर बना जिसने राजधानी को 1530 ई. में कोचीन से गोवा स्थानांतरित किया तथा गुजरात के शासक बहादुरशाह से दिव तथा बसीन (1534 ई.) प्राप्त किया.
- 1542-45 ई. में मार्टिन अलफांसों डि सूजा गवर्नर बना.
- प्रसिद्ध जेसुइट संत फ्रांसिस्कों जेवियर उसके साथ भारत आया था.
- अलबुकर्क के उत्तराधिकारियों ने पश्चिमी तट पर दमन, सलसेट, चौल तथा बंबई, मद्रास के निकट सैन थोम तथा बंगाल में हुगली में बस्तियां बसाई .
पुर्तगालियों का पतन
- 16वीं शताब्दी के अंत तक पुर्तगाली शक्ति का हास हुआ तथा धीरे-धीरे ये बस्तियां उनके हाथों से निकलती गई.
- एक मुगल सामंत कासिम खान द्वारा भगाए जाने के कारण 1631 ई. में उन्हें हुगली से हाथ धोना पड़ा.
- सन् 1661 में इंग्लैंड के शासन चार्ल्स द्वितीय का विवाह पुर्तगाल के राजा की बहन के साथ हुआ तथा चाल्र्स द्वितीय को दहेज के रूप में बंबई प्राप्त हुई .
- मराठों ने 1739 ई. में सलसेट तथा बसीन पर अधिकार कर लिया.
- अंततः उनके पास सिर्फ गोवा, दिव तथा दमन बचा रहा जो उनके पास 1961 तक रहा.
पुर्तगालियों के पतन के कारण
- उनकी धार्मिक असहिष्णुता के कारण भारतीय शासकों तथा जनता में विरोध की भावना उत्पन्न हुई.
- व्यापार में उनके अनुचित तरीके ज्यादा दिन तक सफल नहीं रह सके.
- वे अन्य यूरोपीय कंपनियों (सीमित जनसंख्या, पिछड़ी अर्थव्यवस्था आदि जैसी पुर्तगाल की आंतरिक कमजोरियों के कारण) के समक्ष प्रतियोगिता में सफलतापूर्वक नहीं टिक सके.
- ब्राजील की खोज के कारण उनका ध्यान भारत की ओर से हट गया.
- पुर्तगालियों ने अकबर की अनुमति से हुगली में तथा शाहजहाँ की अनुमति से बंदेल में कारखाने स्थापित किए.
- पुर्तगाली मालाबार और कोंकण तट से सर्वाधिक काली मिर्च का निर्यात करते थे.
- मालाबार तट से अदरक, दालचीनी, चंदन, हल्दी, नील आदि का निर्यात करते थे.
डच
- डच संसद के एक आदेश के द्वारा मार्च 1605 ई. में डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई जिसे युद्ध करने, संधि करने, किलों पर कब्जा करने तथा किले बनाने का अधिकार दिया गया.
- डचों ने अपना कारखाना मसूलीपटम (1605 ई.), पुलीकट (1610 ई.), सूरत (1616 ई.), विमिलिपटमम (1641 ई.) कारीकल (1645 ई.), चिनसुरा (1653 ई.), कासिम बाजार, बसागोरे, पटना, बालासोर, नागापटम (सभी 1658 ई.) तथा कोचीन (1663 ई.) में स्थापित किया था.
- 17वीं शताब्दी में पूर्व के साथ सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक शक्ति के रूप में, जिसमें भारत भी था, उन्होंने पुर्तगालियों को विस्थापित किया.
- 1690 ई. तक भारत में उनका प्रमुख केंद्र पुलीकट था, जो इसके बाद नागापट्टम हो गया.
- 17वीं शताब्दी के मध्य में (1654 ई.) अंग्रेज एक महत्वपूर्ण शक्ति बनने लगे.
- भारत में 60-70 वर्ष तक संघर्ष के बाद 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में डच शक्ति अंग्रेजों के सामने कमजोर पड़ने लगी.
- यह 1759 ई. में बदेरा के युद्ध में अंग्रेजों के हाथों पराजय के साथ पूरी तरह ध्यस्त हो गई.
- एक-एक कर सारी इच बस्तियां अंग्रेजों के हाथ लग गई.
- 1795 ई. में उन्हें अंग्रेजों ने भारत से बाहर निकाल दिया.
अंग्रेज
- ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा सूरत में कारखाना लगाने के निर्णय (1608 ई.) के बाद कैप्टन हाकिन्स जहांगीर के दरबार में गए (1609 ई.).
- प्रारंभ में अनुमति देने के लिए तैयार था, पर बाद में पुर्तगाली दबाव में मुकर गए.
- परंतु जब स्वाली (सूरत के निकट) में 1612 ई. में कैप्टन बेस्ट ने पुर्तगाली बेड़े को पराजित किया तो जहांगीर ने अंग्रेजों को कारखाना लगाने के लिए फरमान जारी कर दिया (1613 ई.).
- सर थॉमस रो 1615 ई. में जेम्स I के राजदूत के रूप में जहांगीर के दरबार में आए तथा 1618 ई. के अंत तक यहीं रहे और राज्य के विभिन्न भागों में कारखाने लगाने तथा व्यापार करने की अनुमति प्राप्त की.
- फरवरी 1619 ई. में वे भारत से वापस गए.
कारखानों की स्थापना
पश्चिमी तट-
- अंग्रेजों ने आगरा, अहमदाबाद, बड़ौदा तथा भड़ौच में 1619 ई. तक कारखाने लगाए जो सूरत के नियंत्रण में थे.
- 1665 ई. में कंपनी ने 10 पाउंड प्रति साल के भाड़े पर चार्ल्स II से बंबई ली.
- गेराल्ड औंगीयर 1669 से 1677 ई. तक इसके पहले गर्वनर थे.
- 1687 ई. में पश्चिमी तट पर कंपनी का मुख्यालय सूरत से हटाकर बंबई कर दिया गया.
दक्षिण-पूर्वी तट-
- मसूलीपटनम (1611 ई.) तथा पुलीकट के निकट अरमागांव में कारखाने लगाए गए.
- 1639 ई. में फ्रांसिस डे ने चंद्रगिरी के राजा से मद्रास प्राप्त किया तथा एक किलाबंद कारखाना लगाने की अनुमति प्राप्त की जिसे फोर्य सेंट जॉर्ज कहा गया.
- शीघ्र ही मसूलीपटनम के स्थान पर कोरोमंडल तट पर कंपनी का मुख्यालय मद्रास हो गया
- 1658 में पूर्वी भारत की अंग्रेज बस्तियां (बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा) फोर्ट सेट जार्ज के अधीन कर दी गई.
पूर्वी भारत-
- उड़ीसा के हरिहरपुर तथा बालासोर (1633 ई.), हुगली (1651 ई.) तथा उसके बाद पटना, ढाका, कासिमबाजार में (बंगाल तथा बिहार) अनेक कारखाने लगाए गए.
- 1690 ई. में जॉब चारानोक ने सुतानुती में एक एक कारखाना लगाया तथा सुतानुती, कालीकट तथा गोविंदपुर की जमींदारी अंग्रेजों ने (1696 ई.) में प्राप्त की.
- ये गांव बाद में कलकत्ता के रूप में उभरे .
- 1696 ई. में अंग्रेजों ने सुतानुती के कारखाने की घेराबंदी की (बर्दवान के जमींदार सोभा सिंह के विद्रोह का बहाना बनाकर) तथा इस नए रूप में 1700 ई. में फोर्ट विलियम नाम दिया गया.
- एक प्रधान के साथ एक समिति का गठन किया गया (सर चाल्र्स ऐरे पहले प्रधान थे) तथा बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा इस फोर्ट विलियम की समिति के अधीन कर दिया गया (1700 ई.) .
फ्रांसीसी
- 1664 ई. में राज्य प्रश्रय द्वारा कोलवर्ट में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की.
- पहला फ्रांसीसी कारखाना सूरत में 1668 ई. में फ्रांकोइस कारोन के द्वारा बनाया गया.
- बाद में 1669 ई. में माराकारा ने मसूलीपटनम में कारखाना स्थापित किया था.
- मुस्लिम गवर्नर (वालिकोंडापुरम) से फ्रांकोइस मार्टिन तथा बेलांगेर डी लेसपीने ने 1673 ई. में एक छोटा-सा गांव लिया.
- यह गांव आगे चलकर पांडिचेरी बना तथा इसके पहले गवर्नर फ्रांकोइस मार्टिन बने. 1690 ई. में बंगाल के मुगल नायब से चंदेरगांव लिया गया.
- 1706 से 1720 ई. के बीच भारत में फ्रांसीसियों का पतन हुआ जिससे 1720 ई. में कपनी पुनर्गठित हुई.
- भारत में फ्रांसीसी शक्ति निनोयार तथा दुमास द्वारा पुनः 1720 से 1742 ई. के बीच गठित हुआ.
- उन्होंने मालाबार पर माहे, कोरोमंडल परयानाम (1725 में) तथा तामिलनाडु में कराइकल पर कब्जा किया (1739 ई.).
- 1742 ई. में डुप्ले के फ्रांसीसी गवर्नर के रूप में आगमन के साथ आंग्ल फ्रांसीसी संघर्ष प्रारंभ हुआ, जिसमें वे अंततः पराजित हुए.
डेनिस
- डेनमार्क की ईस्ट इंडिया कंपनी 1616 ई. में बनी.
- उन्होंने 1620 ई. में ट्रानकोबेर (तामिलनाडु) तथा 1676 ई. में श्रीरामपुर (बंगाल) में अपनी बस्ती बनाई.
- श्रीरामपुर उनका भारत में मुख्यालय था.
- परंतु वे अपनी स्थिति मजबूत नहीं कर पाए तथा 1845 ई. में अपनी सारी संपत्ति उन्होंने अंग्रेजों को बेच दी.
प्रमुख यूरोपीय कम्पनी
कंपनी | स्थापना वर्ष |
पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कंपनी (इस्तादो द इंडिया) | 1498 ई. |
अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी (द गवर्नर एण्ड कंपनी ऑफ मर्चेण्ट्स ऑफ लंदन ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इंडिज) | 1600 ई. |
डच ईस्ट इंडिया कंपनी (वेरींगिडे ओस्त इण्डिशे कंपने) | 1602 ई. |
डैनिश ईस्ट इंडिया कंपनी | 1616 ई. |
फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी (कम्पने देस इण्डेस ओरियंतलेस) | 1664 ई. |
स्वीडिश ईस्ट इंडिया कंपनी | 1731 ई. |
भारत में यूरोपीय कंपनियों के आगम का क्रम
पुर्तगीज | डच | अंग्रेज | डेनिस | फ्रांसीसी |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 |
महत्वपूर्ण बिंदुएं
- पुर्तगालियों के आगमन से भारत में तम्बाकू की खेती, जहाज निर्माण (गुजरात और कालीकट) तथा प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना हुई.
- उनके आगमन से भारत में गोथिक स्थापत्यकला का आगमन हुआ.
- डचों ने 1605 ई. में मसुलीपटनम् में प्रथम डच कारखाना स्थापित किया.
- डचों द्वारा बंगाल में प्रथम डच फैक्ट्री पीपली में स्थापित की गई, लेकिन शीघ्र ही पीपली की जगह बालासोर में फैक्ट्री की स्थापना हुई.
- 1653 ई. में डचों ने चिनसुरा में गुस्तावुल नाम के किले का निर्माण कराया.
- डचों ने पुलीकट में अपने स्वर्ण निर्मित ‘पेंगोडा’ सिक्के का प्रचलन करवाया.
- अंग्रेजों द्वारा उत्तरी भारत में सर्वप्रथम फैक्ट्री सूरत में 1607 ई. में खोली गई.
- द. भारत में उनकी पहली फैक्ट्री 1611 ई. में मसुलीपटनम् तथा पेटापुली में स्थापित हुई.
- डेनिशों ने 1620 ई. में बैंकोबर तथा 1676 में सेरामपुर (बंगाल) में अपनी व्यापारिक कंपनियाँ स्थापित कीं.