संविधान का दर्शन (The Philosophy of the Constitution) प्रस्तावना (Preamble)
- संविधान के दर्शन से अभिप्राय उन आदर्शो से है जिससे भारतीय संविधान अभिप्रेरित हुआ और उन नीतियों से है जिन पर हमारा संविधान और शासन प्रणाली आधारित है.
- हमारे संविधान का दार्शनिक आधार पंडित जवाहरलाल नेहरू का वह ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ (Objective Resolution) है जिसे उन्होंने 13 दिसम्बर, 1946 को संविधान निर्मात्री सभा में प्रस्तुत किया था.
- उक्त प्रस्ताव में जिन आदर्शों को प्रस्तुत किया गया वे ही आदर्श हमारे वर्तमान संविधान में प्रमुख स्थान लिए हुए हैं जो मुख्यतः निम्नलिखित हैं :-
(01) स्वतंत्र और प्रभुता संपन्न (Indeperident and Sovereign)
- भारत का संविधान ब्रिटिश संसद की देन नहीं है बल्कि भारत के लोगों ने एक प्रभुत्व सम्पन्न संविधान सभा में समवेत अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से इसे स्वीकार किया है.
(02) गणराज्य (Republic)
- पाकिस्तान 1956 तक ब्रिटिश डोमिनियन बना रहा किन्तु भारत ने 1949 में ही अपने संविधान की रचना के बाद से अपने आपको गणराज्य घोषित किया.
- जिसका अर्थ है भारत का राष्ट्र-प्रमुख जनता द्वारा निर्वाचित है.
- उसे किसी वंश परम्परा के कारण पद प्राप्त नहीं है.
(03) प्रभुत्व संपन्नता राष्ट्रकुल की सदस्यता से संगत (Sovereignty is consistent with Membership of the Commonwealth)
- आयरलैंड ने रिपब्लिक ऑफ आयरलैंड एक्ट, 1948 (Republic of Ireland Act, 1948) बनाकर ब्रिटिश राष्ट्र-कुल से अपने सम्बन्ध समाप्त कर लिए थे .
- किंतु भारत ने अपने आप को गणराज्य घोषित करने के बावजूद राष्ट्रकुल में बने रहने का विनिश्चय किया जिसके कारण राष्ट्रकुल की संकल्पना ही बदल गयी .
- क्योंकि भारत ने ब्रिटिशांसम्राट के प्रति निष्ठा रखना स्वीकार नहीं किया, अतः ब्रिटिश राष्ट्रकुल जो कि साम्राज्यवाद (Imperialism) का प्रतीक था, अब स्वाधीन राष्ट्रों का एक स्वतंत्र संघ हो गया .
(04) लोकतंत्र (Democracy)
- प्रस्तावना में “लोकतंत्रात्मक गणराज्य” (Democratic Republic) का तात्पर्य यह है कि न केवल शासन में लोकतंत्र होगा बल्कि समाज भी लोकतंत्रात्मक होगा जिसमें न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता’ की भावना होगी.
(05) प्रतिनिधिक लोकतंत्र (A Representative Democracy)
- शासन में लोकतंत्र का रूप प्रतिनिधिक है.
- हमारे संविधान में ‘जनमत संग्रह‘ या पहल (Referendum or initiative) जैसे जनता द्वारा प्रत्यक्ष नियंत्रण के अभिकरण नहीं हैं.
- भारत के लोग अपनी प्रभुता का प्रयोग केंद्र में संसद और राज्यों में विधान-मंडल में अपने द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से करते हैं.
- कार्यपालिका अथवा मंत्रिपरिषद् इन्हीं के प्रति उत्तरदायी होती है.
- संघ के अध्यक्ष के रूप में एक निर्वाचित राष्ट्रपति होता है और प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होता है जो कि राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होता है.
- संविधान सभी वयस्क नागरिकों को अपने प्रतिनिधि चुनने के विषय में समानता प्रदान करता है.
(06) जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन (Government of the People, for the People, by the People)
- प्रस्तावना में जिस राजनीतिक न्याय की घोषणा की गई है उसे सुनिश्चित करने के लिए भारत के राज्यक्षेत्र में प्रत्येक वयस्क नागरिक को बिना किसी आर्थिक, शैक्षिक अथवा सामाजिक भेदभाव के मताधिकार दिया गया है.
- अर्थात् प्रत्येक पांच वर्ष में संघ और प्रत्येक राज्य के विधानमंडल के सदस्य समस्त वयस्क जनता के मत से निर्वाचित होंगे और इस निर्वाचन का सिद्धांत होगा ‘एक व्यक्ति एक मत‘ (One man, one vote).
(07) लोकतांत्रिक समाज (A Democratic Society)
- संविधान में जिस लोकतंत्र को दृष्टि में रखा गया वह “राजनीतिक लोकतंत्र” तक ही सीमित नहीं है बल्कि आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में भी प्राप्त है.
- क्योंकि वोट का उस व्यक्ति के लिए कोई महत्व नहीं होता जो निर्धन और निर्बल है.
(08) आर्थिक न्याय (Economic Justice)
- संविधान के भाग चार में वर्णित निर्देशक तत्वों के अनुसार राज्य का उद्देश्य किसी से धन छीनकर निर्धनता का उन्मूलन करना नहीं है बल्कि राष्ट्रीय धन और संसाधनों में वृद्धि कर के समस्त लोगों में उनका समानतापूर्वक उचित वितरण करना है.
- यही आर्थिक न्याय है .
(09) स्वतंत्रता (Liberty)
- संविधान द्वारा समाज में स्वतंत्र और सभ्य जीवन के लिए आवश्यक ‘विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता’ (Freedom of thought, expression, belief, faith and worship) का संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 19, 25-28 के अन्र्तगत व्यवस्था की गई है.
(10) समानता (Equality)
- समता से अभिप्राय है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के समुचित विकास के लिए समान अवसर प्राप्त होने चाहिये .
- इस उद्देश्य की पूर्ति संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक नागरिकों को दिए गए समानता के मूल अधिकार द्वारा की गई है.
- इसके अतिरिक्त राजनीतिक समानता के लिए अनुच्छेद 326 के तहत सार्वजनिक वयस्क मताधिकार की व्यवस्था है.
- आर्थिक क्षेत्र में अनुच्छेद 39 के खंड (क) और खंड (ख) के तहत स्त्रियों और पुरुषों को काम करने का और समान कार्य के लिए समान वेतन के अधिकार को सुनिश्चित किया गया है.
(11) समाजवादी राज्य (The Socialist State)
- संविधान का उद्देश्य ‘कल्याणकारी‘ (Welfare State) और समाजवादी राज्य (Socialist State) की स्थापना करना है.
- 1976 में संविधान के बयालीसवें संशोधन के द्वारा प्रस्तावना में ”समाजवादी” शब्द जोड़ा गया.
- किन्तु भारत का समाजवाद धन के सभी साधनों का राष्ट्रीय-करण करके निजी सम्पत्ति को समाप्त करने वाला समाजवाद नहीं है.
- अतः यहां “मिश्रित अर्थव्यवस्था” (Mixed Economy) को स्थापित किया गया.
- 1978 में किये गए संविधान के 44 वें संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 31 का निरसन (Repealing) करके राज्य द्वारा सम्पत्ति के अर्जन पर निजी स्वामियों को प्रतिकर संदाय (Payment of compensation) करने की संवैधानिक बाध्यता समाप्त कर दी गई.
(12) एकता एव अखंडता (Unity and Integrity)
- राष्ट्र की एकता के आदर्श को 1976 के 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा प्रस्तावना (Preamble) में “एकता और अखंडता” शब्दों को जोड़कर बल प्रदान किया गया.
(13) बंधुत्व (Fraternity)
- हमारे देश में अनेक मूलवंश, धर्म, भाषा और संस्कृति को मानने वाले लोग रहते हैं जिनमें एकता और बन्धुत्व की भावना स्थापित करने के लिए संविधान में पंथ-निरपेक्ष राज्य का आदर्श रखा गया है अर्थात राज्य का कोई धर्म नहीं है उसकी दृष्टि में सभी धर्म समान हैं.
(14) व्यक्ति की गरिमा (Dignity of the Individual)
- यद्यपि संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को समान रूप से मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) प्राप्त हैं
- और इनकी सुरक्षा के लिए न्यायपालिका की शरण ली जा सकती है तथापि यदि व्यक्ति को अभाव और दुःख से छुटकारा न मिले तो उसके लिए इन अधिकारों का कोई अर्थ नहीं है.
- अतः संविधान के भाग चार में राज्य को यह निर्देश दिया गया है कि वह अपनी कल्याणकारी नीतियों का संचालन इस प्रकार करे कि प्रत्येक स्त्री और पुरुष को जीविका के पर्याप्त साधन समान रूप से प्राप्त हो .
- (अनुच्छेद 39) “काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाएँ. हों” (Just and hurnane conditions of work)
- (अनुच्छेद 42) तथा अनुच्छेद 43 के तहत “शिष्ट जीवनस्तर और अवकाश का सम्पूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएं तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर प्राप्त हों .” (A decent standard of life and full enjoyment of leisure and social and cultural opportunities)