सल्तनत काल सैनिक प्रशासन (Sultanate Era Military Administration)-दिल्ली सल्तनत की शासन व्यवस्था मुख्यतः सैनिक शक्ति पर आधारित थी.
सुल्तान की सेना में मुख्यतः चार प्रकार के सैनिक थे-
- सुल्तान द्वारा रखे गए स्थायी सैनिक.
- सरदारों तथा प्रान्ताध्यक्षों द्वारा रखे गए स्थायी सैनिक.
- युद्ध के समय भर्ती किए गए (अस्थायी) सैनिक.
- जिहाद (धर्म युद्ध) लड़ने वाले स्वयं-सेवक. इन्हें लूट के माल में से हिस्सा दिया जाता था.
- सुल्तान के सैनिक ‘हश्म-ए-कल्ब’ कहलाते थे .
- सुल्तान की सेवा में रहने वाली टुकड़ियाँ ‘खसाह खैल’ कहलाती थीं.
- युद्ध के समय सरदारों व प्रान्ताध्यक्षों की सेनाएं ‘दीवान-ए-आरिज’ के अधीन रहती थीं.
- सैनिकों की भर्ती प्रशिक्षण व पदोन्नति आदि के विषय में कोई सामान्य नियम नहीं थे.
अलाउद्दीन खिलजी ने नकद वेतन देकर एक विशाल स्थायी सेना रखी, किन्तु फिरोजशाह तुगलक ने इस सेना को सामन्ती संगठन में परिणत कर दिया.
सैनिकों में कट्टरपन जागृत करने के लिए मौलवी व उलेमा लोगों को भी सेना में रखा जाता था.
दिल्ली के सुल्तान की सेना एक बहुरूपी वस्तु थी. इसमें विभिन्न प्रकार के तुर्की वंश, तजिक लोग,फारसी, मंगोल, अफगान, अरबी, अबीसीनियावासी, भारतीय मुसलमान व हिन्दू आदि थे.
पैदल, घुड़सवार व हाथी सेना के मुख्य अंग थे. घुड़सवार सेना को बहुत महत्व दिया जाता था तथा अरब, तुर्किस्तान, रूस आदि देशों से अच्छी नस्ल के घोड़े मंगवाए जाते थे.
ज्यादा सिपाहियों को ‘पायक’ कहते थे . ये अधिकतर हिन्दू, दास, नीच जाति के गरीब (जो घोड़े नहीं रख सकते थे) होते थे, जो निजी रक्षक तथा द्वारपाल के रूप में अच्छी सेवा करते थे.
हाथियों को भी सेना में विशेष स्थान दिया जाता था तथा ‘शहना-ए-पील’ के अधीन हस्तिदल को रखा गया था.
सेना का संगठन दाशमिक आधार पर किया जाता था.
- ‘सर-ए-खेल’ के अधीन 10 घुड़सवार
- ‘सिपहसालार’ के अधीन 10 ‘सर-ए-खेल’;
- ‘अमीर’ के अधीन 10 ‘सिपहसालार’;
- ‘मालिक’ के अधीन 10 ‘अमीर’ तथा
- ‘खान’ के अधीन 10 मलिक होते थे.
1 सर-ए-खेल | 10 अश्वारोही |
1 सिपहसालार | 10 सर-ए-खेल |
1 अमीर | 10 सिपहसालार |
1 मलिक | 10 अमीर |
1 खान | 10 मलिक |
- उस समय तोपखाने का प्रचलन नहीं हुआ था. लेकिन इस काल में किलों की दीवारें तोड़ने, बड़े गोले फेंकने, बारुदी गोले व पटाखे आदि फेंकने वाले यन्त्र को ‘मंगलीक’ या ‘अदि’ कहा जाता था.
- नावों के एक बेड़े को सैनिक सामग्री ढोने के लिए प्रयोग किया जाता था.
- युद्ध की समस्त जानकारी ‘साहिब-ए-वरीद-ए-लश्कर’ राजधानी तक पहुंचाता था.
- सुल्तान की अपनी सेना में भी गुप्तचर होते थे.
- शत्रु सेना की गतिविधियों की सूचना ‘तले अह’ एवं ‘यज्की’ नामक गुप्तचर देते थे.
- विभिन्न प्रकार के युद्ध-इंजनों का भी प्रयोग किया जाता था, जैसे-चर्ख (शिला प्रक्षेपास्त्र), सवत (सुरक्षित गाड़ी) गरगज (चलायमान मंच), फलावून (गुलेल) आदि.
सेना के आकार व वेतनों में समय-समय पर परिवर्तन होते रहते थे.
अलाउद्दीन खिलजी के समय एक सुसज्जित अश्वारोही को 234 टके प्रति वर्ष मिलते थे.
मुहम्मद तुगलक भोजन, वस्त्र, चारे के अतिरिक्त लगभग 500 टंके दिया करता था.
यह अन्तर सम्भवतः इसलिए है कि अलाउद्दीन ने सैनिकों के वेतन को पर्याप्त रखने के लिए वस्तुओं के मूल्यों में कमी कर दी थी.
यह स्पष्ट नहीं है कि सिपाही को भोजन व वस्त्रों की सुविधाएं केवल युद्ध-काल में ही दी जाती थीं या सामान्य समय में भी दी जाती थीं.
खान को 1 लाख टंके प्रति वर्ष, अमीर को 30 से 40 हजार टंके प्रतिवर्ष, सिपहसालार को 20 हजार टंके प्रतिवर्ष वेतन के रूप में दिए जाते थे.
छोटे अधिकारियों को वर्ष में एक से दस हजार टंके तक वेतन दिया जाता था.
युद्ध के समय सेना को प्रायः अगुवा टुकड़ी, केन्द्रीय टुकड़ी, दक्षिणपक्षी टुकड़ी, वामपक्षी टुकड़ी, पीछे की टुकड़ी और सुरक्षित टुकड़ी में बांटा जाता था. उल्लेखनीय है कि 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी की सेना में ऐसी कोई टुकड़ी नहीं थी.
सल्तनत काल सैनिक प्रशासन (Sultanate Era Military Administration)