पृथ्वी का विकास (Evolution of Earth)

पृथ्वी का विकास (Evolution of Earth)
  • अनेक अवस्थाओं से गुजरकर पृथ्वी ने वर्तमान रूप धारण किया है.
  • भंवर गति से घूमते हुए धूल और गैस के गोले से पृथ्वी द्रव अवस्था में पहुंच गई.
  • हल्के पदार्थ नीचे गहराई से निकलकर इसकी आग्नेय सतह पर उतरने लगे. फिर वे ठंडे होकर कठोर बन गए.
  • इस प्रकार धीरे-धीरे पृथ्वी की ऊपरी परत ठोस शैलों की बन गई.
  • इन्हीं से पृथ्वी की पर्पटी का अधिकतर भाग बना है.
  • पृथ्वी का आंतरिक भाग ठंडा होकर सिकुड़ गया तथा इसकी बाह्य पर्पटी में सिलवटें पड़ गयी, जिनसे पर्वत श्रेणियाँ और द्रोणियाँ बन गई.
  • उसी समय और अधिक हल्के पदार्थ पर्पटी के ऊपर उतराने लगे, जिनसे गैसों का वायुमण्डल बन गया.
  • वायुमंडल में गर्म गैसीय पदार्थों के ठंडे होने से विशाल बादल बन गए.
  • इन बादलों से हजारों सालों तक भारी वर्षा होती रही.
  • परिणामस्वरूप भूपर्पटी की बड़ी-बड़ी द्रोणियाँ जल से भर गई.
  • इस प्रकार महासागरों का निर्माण हुआ .

पृथ्वी के धरातल के प्रमुख लक्षण (Main Features of Earth Surface)

  • महाद्वीप और महासागर पृथ्वी के धरातल के प्रमुख लक्षण हैं.
  • पृथ्वी के धरातल का एक-तिहाई से भी कम भाग ही स्थल है.
  • शेष दो-तिहाई भाग में जल ही जल है.
  • पृथ्वी के धरातल पर ऊंचाई में अधिकतम अंतर लगभग 20 किलोमीटर का है.
  • एक ओर 8848 मीटर ऊँचा एवरेस्ट पर्वत शिखर है.
  • तो दूसरी ओर प्रशांत महासागर की मैरियाना ट्रैच में 11022 मीटर गहरा चैलेंजर गर्त है.
  • पृथ्वी के आकार को देखते हुए इसके धरातल के उच्चावचन में यह अंतर कम है.
  • पृथ्वी पर मल्लद्वीप और महासागर अनियमित रूप से फैले हैं.
  • दक्षिण गोलार्द्ध की अपेक्षा उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल भाग अधिक है.
  • लेकिन महाद्वीप और महासागर हमें जैसे आज दिखाई पड़ते हैं, वे सदा से ही ऐसे नहीं थे.
  • लाखों वर्षों तक महाद्वीपों के काफी बड़े भाग, ग्रीनलैंड तथा अंटार्कटिका की भांति बर्फ की मोटी-मोटी चादरों से ढके थे.
  • पृथ्वी पर इस अवधि को हिमकाल के नाम से जाना जाता है.
  • बर्फ की ये मोटी-मोटी चादरें कुछ ही हजार साल पहले पिघली हैं.
  • इनके पिघलने से ही समुद्र तल अपनी वर्तमान स्थिति में पहुँचा है.
  • जब समुद्र तल नीचा था तब उत्तर अमेरिका और एशिया महाद्वीप आपस में स्थल सेतुओं से जुड़े थे.
  • आज उसी भाग में बैरिंग जलसंधि है.

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