भक्ति आन्दोलन मध्यकालीन भारत (The Bhakti Movement in Medieval India)

भक्ति आन्दोलन मध्यकालीन भारत  (The Bhakti Movement in Medieval India)

भक्ति आन्दोलन

  • भक्ति आन्दोलन से भाव उस आन्दोलन से है जो तुकों के आगमन से पूर्व से ही यहाँ चल रहा था तथा अकबर के काल तक चलता रहा.
  • इस आन्दोलन ने मानव और ईश्वर के मध्य रहस्यवादी सम्बन्धों को स्थापित करने पर बल दिया.
  • कुछ विद्वानों का विचार है कि भक्ति भावना का प्रारम्भ उतना ही पुराना है जितना कि आर्यों के वेद .
  • परन्तु इस आन्दोलन की जड़ें सातवीं शताब्दी से जमीं .
  • मध्यकाल में भक्ति आन्दोलन के उदय और प्रसार के अनेक कारण थे,
  • जैसे-हिन्दू धर्म के अनेक बुराइयाँ, हिन्दू-मुस्लिम समन्वय, गुरु शंकराचार्य का ज्ञान मार्ग, सूफी सन्तों के प्रचार कार्य, भक्त सन्तों के प्रचार कार्य, भक्त सन्तों का उदय आदि .
भक्ति आन्दोलन मध्यकालीन भारत (The Bhakti Movement in Medieval India)

भक्ति आन्दोलन की प्रमुख विशेषताएं

  • भक्ति आंदोलन की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
  1.  ईश्वर की एकता (एकेश्वरवाद) पर बल.
  2. भक्ति मार्ग को महत्व .
  3. आडम्बरों, अन्धविश्वासों तथा कर्मकाण्डों से दूर रह कर धार्मिकसरलता पर बल .
  4. मूर्ति पूजा का विरोध .
  5. गुरु पूजा का विरोध .
  6. जनसाधारण की भाषा में प्रचार.
  7. ईश्वर के प्रति आत्म समर्पण.
  8. मानवतावादी दृष्टिकोण .
  9. समाज सुधार (अधिकांश भक्त सन्त धर्म सुधारक होने के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे).

दो भिन्न-भिन्न धाराएँ

  • भक्ति आन्दोलन की दो भिन्न-भिन्न धाराएं थीं-
  1. निर्गुण
  2. सगुण.

निगुर्ण

  • सन्त कबीर तथा गुरु नानक निर्गुण परम्परा के सर्वाधिक प्रसिद्ध व लोकप्रिय सन्त थे.
  • वे निराकार प्रभु में आस्था रखते थे तथा उन्होंने वैयक्तिक साधना और तपस्या पर बल दिया.

सगुण

  • वल्लभाचार्य, तुलसी, सूरदास, मीरा, चैतन्य आदि इस परम्परा के प्रमुख भक्त सन्त थे.
  • इन्होंने राम अथवा कृष्ण की पूजा पर बल दिया.
  • इन्होंने मूर्तिपूजा, अवतारवाद, कीर्तन द्वारा उपासना इत्यादि का प्रचार किया.

 प्रमुख प्रचारक

रामानुज (1060 ई.-1118 ई.)

  • भक्ति आन्दोलन के प्रथम प्रचारक आचार्य रामानुज को माना जाता है.
  • आचार्य रामानुज को प्रथम वैष्णव आचार्य माना जाता है.
  • आचार्य रामानुज ने सगुण ब्रह्म की भक्ति पर जोर दिया तथा कहा कि उसकी सच्ची भक्ति, ज्ञान तथा कर्म ही मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं.
  • आचार्य रामानुज ने मूर्ति पूजा व जाति प्रथा का विरोध किया.
  • उनकी शिक्षाएं दक्षिणी भारत में अत्यन्त प्रभावशाली रहीं.

निम्बार्क (निम्बार्काचार्य)

  • निम्बार्काचार्य रामानुज के समकालीन थे.
  • निम्बार्काचार्य  ने द्वैताद्वैतवाद सिद्धान्त का प्रचार किया.
  • निम्बार्काचार्य के अनुसार भक्ति कृपा-स्वरूप प्राप्त की जा सकती है.
  • परम आनन्द की प्राप्ति के लिए भगवान श्री कृष्ण के चरण-कमलों में आत्म-समर्पण ही एकमात्र रास्ता है.

माधवाचार्य (1238-1317 ई.)

  • माधवाचार्य के अनुसार मानव जीवन का प्रमुख उद्देश्य हरिदर्शन करना है, जिससे परमानन्द की प्राप्ति होगी.
  • माधवाचार्य के अनुसार ज्ञान से भक्ति प्राप्त होती है और भक्ति से मोक्ष.
  • माधवाचार्य ने द्वैतवाद का प्रतिपादन किया.

गुरु रामानन्द

  • गुरु रामानन्द का जन्म इलाहाबाद के एक कन्याकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ.
  • गुरु रामानन्द ने एकेश्वरवाद पर जोर दिया.
  • उत्तर भारत में गुरु रामानन्द भक्ति आन्दोलन के प्रमुख प्रचारक हुए.
  • गुरु रामानन्द के द्वारा जाति-पाँति का घोर विरोध किया गया.
  • गुरु रामानन्द ‘श्री राम‘ के उपासक थे तथा इन्होंने शुद्ध आचरण और प्रभु की सच्ची भक्ति पर बल दिया.

संत कबीर (1495-1518 ई.)

  • कहा जाता है कि कबीर एक ब्राह्मण विधवा से पैदा हुए तथा मुसलमान जुलाहा दम्पति ‘नीरू और नीमा’ ने इनका पालन पोषण किया.
  • संत कबीर गुरु रामानन्द के शिष्य थे तथा निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे.
  • कबीर साम्प्रदायिकता, छुआछूत, अन्धविश्वासों तथा सामाजिक कुरीतियों के घोर विरोधी थे.
  • संत कबीर ने हिन्दू-मुसलमानों के मध्य एकता स्थापित करने हेतु सराहनीय प्रयास किए.
  • संत कबीर के संदेश तथा शिक्षा के तत्वों को उनकी कविताओं से समझा जा सकता है.
  • संत कबीर की प्रमुख रचनाएं थीं-साखी, सवद तथा रमैनी आदि.
  • संत कबीर के प्रयत्नों से ‘कबीरपंथ‘ सम्प्रदाय स्थापित हुआ और उनके अनुयायी कबीरपंथी कहलाए.

वल्लभाचार्य (1479-1531 ई.)

  • वल्लभाचार्य तैलंग ब्राह्मण थे.
  • बचपन में ही उन्होंने काफी ज्ञान प्राप्त कर लिया.
  • वल्लभाचार्य श्री कृष्ण के उपासक थे तथा इनका मत था कि गृहस्थ में रहते हुए भी मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है.
  • वल्लभाचार्य ने ‘शुद्धाद्वैतवाद‘ का प्रचार किया.
  • वल्लभाचार्य के अनुसार आत्मा और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं है तथा भक्ति द्वारा आत्मा अपने बन्धनों से छुटकारा पा सकती है.

चैतन्य महाप्रभु (1485-1534 ई.)

  • चैतन्य महाप्रभु का जन्म बंगाल में हुआ था.
  • चैतन्य महाप्रभु 25 वर्ष की आयु में वैष्णव धर्म के प्रचार हेतु देश-भ्रमण पर निकल गये.
  • चैतन्य महाप्रभु शास्त्रों के बड़े विद्वान थे.
  • चैतन्य महाप्रभु ने कृष्ण की प्रेममयी भक्ति और रस कीर्तन का उपदेश दिया.
  • प्रेम ही उनके जीवन का आधार था.
  • चैतन्य महाप्रभु जाति-पाँति के विरोधी थे.
  • चैतन्य महाप्रभुके अनुयायी’ उन्हें विष्णु का अवतार मानते थे.
  • कई मुसलमान भी उनके शिष्य थे.

गुरु नानक (1469-1538 ई.)

  • गुरु नानक का जन्म पाकिस्तान के शेरतूपुरा जिले के तलवंडी नामक गाँव में हुआ था.
  • इन्होंने ‘एकेश्वरवाद‘ का प्रचार किया और साम्प्रदायिकता, जात-पात, आडम्बर, मूर्तिपूजा, कर्मकाण्डों आदि का विरोध किया.
  • हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों ही उनके शिष्य बने.
  • गुरु नानक देव को सिक्ख धर्म का प्रवर्तक माना जाता है.
  • आज भी उन्हें “गुरु नानक, शाह फकीर, हिन्दू का गुरु, मुसलमान का पीर” कह कर याद किया जाता है.

संत मीरा बाई (1498-1546 ई.)

  • संत मीराबाई का जन्म राजस्थान में हुआ था तथा इनका विवाह 1516 ई. में राणा सांगा के सबसे बड़े लड़के व उत्तराधिकारी भोजराज से हुआ.
  • युवावस्था में ही मीराबाई विधवा हो गई थीं.
  • संत मीराबाई कृष्ण की उपासिका थीं तथा उन्होंने घूम-घूम कर कृष्ण भक्ति का प्रचार किया.
  • संत मीराबाई का संदेश था कि किसी को जन्म के कारण, गरीबी के कारण अथवा आयु के कारण परमात्मा से परे नहीं रखा जा सकता.
  • परमात्मा को मिलने का एकमात्र साधन भक्ति है.

तुलसीदास (1532-1623 ई.)

  • तुलसीदास का जन्म ब्राह्मण वंश में हुआ था.
  • तुलसीदास राम के बड़े भक्त हुए तथा उनकी ‘श्री राम के प्रति श्रद्धा का अनुमान उनके द्वारा रचित ‘रामचरितमानस‘ द्वारा लगाया जा सकता है.
  • तुलसीदास जी का कहना था कि ईश्वर एक है और उसका नाम राम है.
  • उसे भक्ति द्वारा प्राप्त किया जा सकता है.

सूरदास (1479-1584)

  • सूरदास एक कवि भी थे और सन्त भी.
  • उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की, यथा-सूरसागर, साहित्यरत्न तथा सुरसारावली आदि .
  • ‘सूरसागर’ में कृष्ण के बाल्यकाल का वर्णन है.
  • इसमें श्रीकृष्ण भगवान के प्रति अगाध भक्ति और प्रेम दर्शाया गया है.
  • यह पुस्तक ब्रज भाषा में है.

मलूक दास (1574-1682)

  • मलूक दास का जन्म इलाहाबाद जिले में ‘कारा’ नामक स्थान पर हुआ था.
  • उन्होंने तीर्थ यात्राओं, मूर्ति-पूजा आदि का घोर विरोध किया.
  • उनका मत था कि मुक्ति ज्ञान से, अहंकार को मारने से, विषयों पर नियंत्रण करने से, गुरु में विश्वास रखने से और ईश्वर से प्रेम करने से मिलती है.

दादूदयाल (1554-1606 ई.)

  • दादूदयाल जाति से ‘चमार’ तथा व्यवसाय से ‘जुलाहा’ थे.
  • बाल्यावस्था में ही दादूदयाल ने संसार छोड़ दिया था.
  • दादूदयाल ने प्रेम, एकता, भ्रातृभाव और सहिष्णुता पर जोर दिया.
  • दादूदयाल मूर्तिपूजा, अवतारवाद, धर्म के बाहरी आडम्बरों आदि के विरोधी थे.
  • दादूदयाल ने एक पंथ चलाया.
  • दादूदयाल के अनुयायी ‘दादूपंथी’ कहलाते हैं.
  • दादूदयाल के उपदेश ‘दादूराम की वाणी‘ नामक पुस्तक में मिलते हैं.

सुन्दरदास (1506-1589 ई.)

  • सुन्दरदास दादूदयाल के शिष्य, एक कवि और सन्त थे.
  • सुन्दरदास का जन्म राजस्थान में बनियों के घर में हुआ था.
  • सुन्दरदास के विचार ‘सुन्दर विलास’ नामक पुस्तक में मिलते हैं.

गुरु रविदास

  • गुरु रविदास जी बनारस में मोची का काम करते थे.
  • ईश्वर की एकता में विश्वास रखते थे तथा उन्होंने अवतारवाद को खण्डन किया.

बीरभान

  • बीरभान का जन्म 1543 ई. में पंजाब में नारनौल के समीप हुआ.
  • उन्होंने ‘सतनामियों’ के सम्प्रदाय की स्थापना की.
  • उन्होंने जातिवाद तथा मूर्ति पूजा का खण्डन किया तथा शुद्ध व पवित्र जीवन व्यतीत करने का उपदेश दिया.
  • सतनामियों की धर्म पुस्तक का नाम ‘पोथी’ है.

शंकर देव (1449-1568 ई.)

  • शंकरदेव असम के धर्म सुधारक थे.
  • उन्होंने विष्णु अथवा कृष्ण की भक्ति का प्रचार किया.
  • उनके अनुसार प्रार्थना फूलों से करनी चाहिए. वे मूर्ति पूजा के विरोधी थे.
  • उनके धर्म का नाम ‘महापुरुषीय धर्म’ था, जो शीघ्र असम देश में फैल गया.

संत ज्ञानेश्वर (1271-96 ई.)

  • संत ज्ञानेश्वर ने ‘भागवत गीता’ पर एक लम्बी टीका-‘भावार्थ दीपिका’ लिखी.
  • यह पुस्तक महाराष्ट्र के भक्तिवाद का स्रोत है तथा लम्बे भजन के रूप में धार्मिक उपदेश है.

नामदेव (1270-1350 ई.)

  • नामदेव का व्यवसाय दर्जी था.
  • वे जातिवाद, मूर्तिपूजा, कर्मकाण्ड और आडम्बरों के विरोधी थे.
  • उनके अनुसार मुक्ति, भक्ति अथवा ईश्वर-प्रेम से मिल सकती है.

एकनाथ (1533-99 ई.)

  • ये एक ब्राह्मण थे.
  • उन्होंने ‘रामायण’ तथा ‘भक्ति पुराण’ के 11वें भाग पर टीकाएं लिखीं.
  • उन्होंने गृहस्थी तथा भक्तिमय जीवन व्यतीय किया.
  • उनके नैतिकता पर आधारित भजन आज भी मराठी में मौजूद हैं.

संत तुकाराम (1598-1650 ई.)

  • संत तुकाराम महाराष्ट्र के सबसे महान् कवि हुए.
  • उन्होंने बहुत से भजन भक्ति की कविता में लिखे.
  • उन्होंने सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया तथा ईश्वर के प्रति उनका विचार ‘कबीर’ से मिलता-जुलता था.
  • तुकाराम के उपदेश ‘अभंगों में मौजूद हैं.

संत रामदास (1608-1681 ई.)

  • संत रामदास जी बाल्यावस्था में ही अनाथ हो गए थे.
  • कई वर्ष उन्होंने भ्रमण किया तथा तपस्या कर जीवन व्यतीत किया.
  • उनका मुख्य ग्रन्थ ‘दशबोधन’ है.
  • उन्होंने भक्ति और कर्मयोग दोनों पर बड़ा जोर दिया.

बहिनाबाई

  • बहिनाबाई महाराष्ट्र की एक संत थीं.
  • वह तुकाराम को अपना गुरु मानती थीं और उन्होंने तुकाराम जैसी कविताएं लिखीं..

चण्डीदास

  • ये भक्ति आन्दोलन के कवि थे.
  • इनका नाम बंगला साहित्य में श्रेष्ठ है.
  • इनके मतानुसार मोक्ष का एक मात्र मार्ग प्रभु के साथ प्यार है.
  • उनके कृष्ण कीर्तन में श्री कृष्ण और राधा के प्रेम का वर्णन है.

विद्यापति

  • विद्यापति ने अपनी रचनाएं मैथिली में कीं.
  • राधा और कृष्ण पर लिखे हुए उनके गीत बंगाल के वैष्णव समुदाय का एक अंग है.
  • उन्होंने चार पुस्तकें संस्कृत में लिखीं.
  • उनकी रचनाएं चण्डीदास के समान हैं.

(1) भक्ति आन्दोलन के कारण ही प्रान्तीय भाषाओं और साहित्य का विकास हुआ.

(2) हिन्दू-मुस्लिमों के मध्य प्रेमभाव उत्पन्न हुआ तथा वैर-भाव समाप्त हो गया.

(3) लोगों में धर्म के प्रति सहिष्णुता की भावना उत्पन्न हुई.

(4) सामाजिक कुरीतियों एवं अन्ध-विश्वासों का अन्त हुआ.

प्रमुख मत एवं उनके प्रवर्तक

प्रवर्तकमत
1. गुरु शंकराचार्यअद्वैतवाद
2. रामानुजाचार्यविशिष्ट अद्वैतवाद
3. निम्बार्काचार्यद्वैताद्वैतवाद
4. वल्लभाचार्यशुद्धाद्वैतवाद
5. माधवाचार्यद्वैतवाद
6.भास्कराचार्यभेदाभेदवाद
7. बलदेवअचिंत्य भेदाभेदवाद
8. श्रीकण्ठशैव विशिष्ट अद्वैत
9. श्रीपतिवीर शैव विशिष्ट अद्वैत
10. विज्ञान भिक्षुअविभाग अद्वैत

प्रमुख सम्प्रदाय एवं उनके प्रवर्तक

प्रवर्तकसम्प्रदाय
1. रामानुजाचार्यश्री सम्प्रदाय
2. माध्वाचार्यब्रह्म सम्प्रदाय
3. वल्लभाचार्यरुद्र सम्प्रदाय
4. गुरु नानकसिक्ख सम्प्रदाय
5. दादू दयालदादू पंथ एवं निपख सम्प्रदाय
6. हित हरवंशराधावल्लभ सम्प्रदाय

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