भारतीय प्रेस का इतिहास (THE HISTORY OF INDIAN PRESS) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

भारतीय प्रेस का इतिहास (THE HISTORY OF INDIAN PRESS)

  • भारत में समाचार-पत्रों का इतिहास यूरोपीय लोगों के आगमन के साथ-साथ आरम्भ होता है.
  • सर्वप्रथम पुर्तगालियों ने भारत में मुद्रणालय (Printing Press) की स्थापना की.
  • भारत में सर्वप्रथम 1557 में गोआ के पादरियों ने पहली पुस्तक प्रकाशित की.
  • 1684 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बम्बई में एक मुद्रणालय की स्थापना की.
भारतीय प्रेस का इतिहास (THE HISTORY OF INDIAN PRESS) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
  • जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने भारत में 1780 में पहला समाचार-पत्र प्रकाशित किया.
  • इस समाचार-पत्र का नाम “द बंगाल गैस गैजेट” (The Bengal Gazette) था.
  • किंतु सरकार की निष्पक्ष आलोचना के कारण यह समाचार-पत्र ज़ब्त कर लिया गया.
  • कालांतर में
  1. कलकत्ता गजट (1784),
  2. बंगाल जनरल (1785),
  3. द ओरिएन्टल मैग्जीन ऑफ कलकत्ता (The Oriental Magazine of Calcutta, 1785),
  4. कलकत्ता क्रॉनिकल (1786) और
  5. मद्रास कोरियर (1788)

आदि अनेक समाचार-पत्र छपने आरंभ हुए.

  • इन समाचार-पत्रों का दृष्टिकोण सरकार के पक्ष में था.
  • ये समाचार-पत्र पूर्णतया कम्पनी के अधिकारियों की दया पर निर्भर थे.

समाचार-पत्र पत्रेक्षण अधिनियम, 1799 (The Censorship of Press Act, 1799)

  • लार्ड वैल्ज़ली ने 1799 में समाचार-पत्र पत्रेक्षण अधिनियम पारित किया.
  • इस अधिनियम के अनुसार-
  1. समाचार-पत्र को अपने सम्पादक, मुद्रक और स्वामी का नाम स्पष्ट अक्षरों में छापना पड़ता था.
  2. समाचार-पत्र के प्रकाशक को प्रकाशित किए जाने वाले सभी तत्वों को सरकार के सचिव के सम्मुख पूर्व-पत्रेक्षण (Pre-censorship) के लिए भेजना पड़ता था.

1823 का अनुज्ञप्ति नियम (The Licensing Regulation of 1823)

  • इस नियम के अनुसार-
  • (1) मुद्रक तथा प्रकाशक को मुद्रणालय स्थापित करने से पूर्व सरकार से अनुज्ञप्ति लेनी होगी.
  • (2) अनुज्ञप्ति के अभाव में किसी भी साहित्य का मुद्रण एवं प्रकाशन दण्डनीय अपराध घोषित किया गया.
  • अनुज्ञप्ति के नियम का उल्लंघन करने के कारण राजा राम मोहन राय की ‘मिरा-उल-अकबर’ पत्रिका को बन्द होना पड़ा.
  • लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने समाचार-पत्रों के प्रति उदारता की नीति अपनाई.

अनुज्ञप्ति अधिनियम, 1857 (Licensing Act, 1857)

  • 1857 के विद्रोह से उत्पन्न स्थिति का सामना करने के लिए अनुज्ञप्ति व्यवस्था कड़ी कर दी गई.
  • इस संबंध में एक अधिनियम पारित किया गया जिसके अनुसार सरकार को किसी भी समाचार पत्र, पुस्तक या अन्य किसी मुद्रित सामग्री के संबंध में नियंत्रित अधिकार प्रदान किए गए.
  • यह एक संकटकालीन व्यवस्था थी जो कि एक वर्ष तक प्रभावी रही.

समाचार-पत्र पंजीकरण अधिनियम, 1867(The Newspaper Registration Act, 1867)

  • 1867 में पारित इस अधिनियम का उद्देश्य समाचार पत्रों पर रोक लगाना नहीं वरन् उन्हें नियमित करना था.
  • इसके द्वारा समाचार पत्रों का पंजीकरण करवाना अनिवार्य कर दिया गया.
  • अब प्रत्येक मुद्रित सामग्री पर मुद्रक, प्रकाशक और प्रकाशन स्थान का उल्लेख किया जाना अनिवार्य था.

भारतीय भाषा समाचार पत्र अधिनियम, 1878 (The Vernacular Press Act, 1878)

  • इस अधिनियम के द्वारा सरकार ने भारतीय भाषाई समाचार पत्रों को और अधिक नियंत्रित करने का प्रयास किया.
  • इस अधिनियम के द्वारा जिला दण्डनायकों को एक महत्वपूर्ण अधिकार दिया गया.
  • इस अधिकार के तहत वह समाचार पत्र के प्रकाशक को यह आदेश दे सकता था कि वे कोई ऐसी सामग्री प्रकाशित नहीं करें जिससे सरकार विरोधी भावना भड़कती हो.
  • इस अधिनियम को मुंह बंद करने वाला अधिनियम कहा गया.
  • भारत सचिव लार्ड क्रेन बुक के प्रयत्नों से सितम्बर, 1878 में एक समाचार-पत्र आयुक्त की नियुक्ति की गई.
  • इस अधिकारी का काम सच्चे यथार्थ समाचार प्रदान करना था.
  • इस अधिकारी की नियुक्ति के बाद पूर्व-पत्रेक्षण की व्यवस्था समाप्त कर दी गई.

समाचार पत्र अधिनियम, 1908 (The Newspaper Act, 1908)

  • 1908 में पारित इस अधिनियम के अनुसार –
  1. जो समाचार पत्र आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित करता था उसका मुद्रणालय जब्त कर लिया जाता था.
  2. सरकार किसी भी समाचार पत्र के पंजीकरण को रद्द कर सकती थी.
  3. मुद्रणालय के जब्त होने की स्थिति में 15 दिन के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती थी.

भारतीय समाचार-पत्र अधिनियम, 1910 (The Indian Newspaper Act, 1910)

  • इस अधिनियम के अनुसार सरकार किसी मुद्रणालय के स्वामी या प्रकाशक से पंजीकरण-जमानत मांग सकती थी, जो कम से कम 500 और अधिक 2000 रुपये थी.
  • सरकार को जमानत जब्त करने और पंजीकरण रद्द करने का भी अधिकार था.
  • पुनः पंजीकरण के लिए कम से कम 1000 रुपये और अधिक से अधिक से 10,000 रुपये जमानत के रूप में सरकार को देने पड़ते थे.
  • यदि समाचार पत्र पुन: आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित करें तो सरकार पुनः उसका पंजीकरण रद्द कर सकती थी.
  • पीड़ित पक्ष दो मास के भीतर उच्च न्यायालय के विशेष न्यायाधिकरण में अपील कर सकता था.
  • प्रत्येक प्रकाशक को अपने समाचार-पत्र की दो प्रतिया बिना मूल्य के सरकार को देनी पड़ती थी.

सप्रू समिति, 1921 (The Supru Committee, 1921)

  • 1921 में सर तेजबहादुर सप्रू की अध्यक्षता में एक समाचार-पत्र समिति की नियुक्ति की गई.
  • इस समिति का उद्देश्य समाचार पत्रों से संबंधित कानूनों की समीक्षा करना था.
  • इस समिति की सिफारिशों के आधार पर 1908 और 1910 के समाचार पत्र अधिनियम रद्द कर दिए गए.

भारतीय समाचार पत्र (संकटकालीन शक्तियां) अधिनियम, 1931 (The Indian Newspapers (Emergency Powers) Act, 1931)

  • इस अधिनियम के द्वारा भारत सरकार ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रचार और प्रसार को दबाने के लिए प्रान्तीय सरकारों को विशेष संकटकालीन शक्तियां प्रदान की.
  • इस अधिनियम की धारा 4 के अनुसार वे सभी गतिविधियां प्रतिबंधित कर दी गई.
  • जिनसे सरकार की प्रभुसत्ता को हानि पहुंचाई जा सकती थी.

समाचार-पत्र जांच समिति (The Newspaper Enquiry Committee)

  • 1947 में गठित इस समिति की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थीं –
  1. 1931 का अधिनियम रद्द किया जाए.
  2. समाचार-पत्रों के पंजीकरण के अधिनियम में संशोधन किया जाए.
  3. भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124 ए और 153 ए में परिवर्तन किया जाए.

समाचार-पत्र (आपत्तिजनक विषय) अधिनियम, 1951 (The Newspaper (Objectionable Matters) Act, 1951)

  • 26 जनवरी, 1950 को भारत का नया संविधान लागू हुआ.
  • 1951 में भारत सरकार ने समाचार पत्र (आपत्तिजनक विषय) अधिनियम पारित किया.
  • इस अधिनियम के द्वारा सरकार को समाचार पत्रों तथा मुद्रणालयों से आपत्तिजनक विषय प्रकाशित करने पर जमानत मांगने तथा जब्त करने का अधिकार दिया गया.
  • इसके अलावा सरकार डाक द्वारा भेजी गई आपत्तिजनक सामग्री को रोक सकती थी, उसकी जांच कर सकती थी, उसे नष्ट अथवा जब्त भी कर सकती थी.
  • यह अधिनियम 1956 तक लागू रहा.
  • सरकार ने 1955 में कार्यकर्ता पत्रकार (सेवाशर्त) एवं विविध आदेश अधिनियम, 1956 में “समाचार-पत्र पन्ना तथा मूल्य अधिनियम” और 1960 में “संसदीय कार्यवाही (सरंक्षण एवं प्रकाशन) अधिनियम” पारित किया.

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