मुहम्मद बिन तुगलक की योजनाएं Schemes of Muhammad bin Tughluq

मुहम्मद बिन तुगलक की योजनाएं Schemes of Muhammad bin Tughluqमुहम्मद बिन तुगलक (Muhammad bin Tughluq) दिल्ली सल्तनत के सभी सुल्तानों से सर्वाधिक सुशिक्षित, योग्य व तीव्र बुद्धि वाला अनुभवी निपुण सेनापति तथा महान विजेता था.

किन्तु इतने अधिक गुण होते हुए भी वह इतिहास में सर्वाधिक विवादास्पद व्यक्ति रहा है. उसे विवादास्पद बनाने वाली उसकी वे विचित्र योजनाएं है जो उसने अपनी विद्वता से प्रेरित होकर शुरू कीं. ये योजनाएं थीं-

मुहम्मद बिन तुगलक की योजनाएं Schemes of Muhammad bin Tughluq

दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि (1326-27 ई.)

प्रथम योजना के अन्तर्गत सुल्तान ने दोआब क्षेत्र में लगभग 50% तक कर में वृद्धि की. दुर्भाग्यवश उसी वर्ष भयानक अकाल पड़ा किन्तु तुगलक के अधिकारियों ने जबरन कर वसूल किया.

फलस्वरूप विद्रोह की स्थिति उत्पन्न हो गई और तुगलक की यह योजना असफल रही.

राजधानी परिवर्तन (1326-27 ई.)

मुहम्मद बिन तुगलक (Muhammad bin Tughluq)की दूसरी योजना दिल्ली से राजधानी देवगिरी (वर्तमान में दौलताबाद, औरंगाबाद, महाराष्ट्र ) को स्थानान्तरित करने की थी. इसके विभिन्न कारण-‘देवगिरी’ उसके साम्राज्य के मध्य में स्थित होना, दक्षिण भारत पर नियन्त्रण बनाए रखना, मंगोलों के आक्रमणों से सुरक्षित रहना आदि माने जाते हैं.

सुल्तान ने देवगीरि का नाम दौलताबाद रखा. मगर उसकी यह योजना भी पूर्णतः असफल रही तथा 1335 ई. में उसने लोगों को दिल्ली वापस जाने की अनुमति दे दी. उसकी इस योजना के कारण जन-धन की बहुत हानि हुई.

सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन (1329-30 ई.)

अपनी तीसरी योजना के दौरान उसने फरिश्ता के अनुसार ‘पीतल’ तथा बरनी के अनुसार ‘तांबा’ धातुओं की सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन किया, जिनका मूल्य चांदी के टंके के बराबर रखा गया .

मगर इस योजना में भी सुल्तान को असफलता मिली व राज्य की अत्यधिक आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा.

खुरासान एवं कराचिल का अभियान

अपनी चौथी योजना के दौरान सुल्तान ने खुरासान व कराचल पर अभियान भेजा. खुरासान विजय करने हेतु उसने लगभग 3,70,000 सैनिकों को वर्ष भर का अग्रिम वेतन दे दिया.

लेकिन राजनीतिक परिस्थितियों में परिवर्तन के कारण, दोनों देशों के बीच संधि हो गई तथा सुल्तान को आर्थिक रूप से अत्यधिक क्षति हुई. कराचिल अभियान के दौरान एक विशाल सेना दुर्गम जंगली व पहाड़ी रास्तों में भटक गई व स्थानीय लोगों ने पत्थरों से ही सेना को खदेड़ दिया.

इब्नबतूता के अनुसार इतनी विशाल सेना में से लगभग 3 सैनिक ही बच कर दिल्ली आ पाए थे. इस प्रकार सुल्तान की यह योजना भी असफल रही.

फरिश्ता के अनुसार जब 1327 ई. में मंगोल आक्रमणकारी तरमाशरीन खाँ ने भारत पर आक्रमण करके लाभधान व मुल्तान आदि में लूट-पाट की तो .

“सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने उसको बहुत अधिक रुपया देकर लौटा दिया, इस तरह उसने अपने आप को अपमानित किया.”

मगर डा. मेहदी हुसैन के मतानुसार, 

“तरमाशरीन खाँ भारत में शरणार्थी के रूप में आया क्योंकि 1326 ई. में उसकी गजनी के समीप अमीर चौबान के हाथों पराजय हो गई थी. वह अपनी सेना सहित दिल्ली भाग आया जहाँ सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने उसकी सहायता के लिए 5000 दीनार दिए और वह वापस चला गया.’

मुहम्मद बिन तुगलक (Muhammad bin Tughluq) के व्यक्तित्व के अध्ययन से निष्कर्ष के रूप में कहा जा . सकता है कि उसका चरित्र व व्यक्तित्व गुण और दोर्षों का मिश्रण था.

जियाउद्दीन बरनी ने उसे विपरीत तत्वों का मिश्रण बताया है. स्मिथ, सेवेल, लेनपूल और वुल्जले हेग भी उसे गुण और अवगुणों का मिश्रण मानते हैं.

डा. मेहदी हुसैन के विचारानुसार मुहम्मद बिन तुगलक (Muhammad bin Tughluq) के विरोधी गुण उसके जीवन के विभिन्न अवसरों पर प्रकट हुए और उनके लिए स्पष्ट कारण थे. अतः उसे विरोधी तत्वों का मिश्रण स्वीकार नहीं किया जा सकता.

आधुनिक शोधों से स्पष्ट हो गया है कि मुहम्मद बिन तुगलक (Muhammad bin Tughluq) एक असाधारण प्रतिभा का शासक था.

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