भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े नेता
(Leaders Associated with India’s Struggle for Freedom)

दादाभाई नौरोजी-Dadabhai Naoroji in Hindi
दादाभाई नौरोजी 1825-1917 Dadabhai Naoroji -भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े आरम्भिक नेताओं में दादाभाई नौरोजी का नाम अग्रणी है. इसी कारण इन्हें श्रद्धा से “भारत के वयोवृद्ध नेता’ (Grand Old Man of India) के नाम से स्मरण किया जाता है.
4 सितम्बर, 1825 को उन्होंने बम्बई के एक पारसी परिवार में जन्म लिया. इन्होंने एलफिन्स्टन कालेज(Elphinstone College) में शिक्षा प्राप्त करने के बाद उसी कालिज में एक सहायक अध्यापक(Assistant teacher) के रूप में जीवन आरम्भ किया. बाद वे एक पारसी व्यापार संस्था के साथ साझेदार के रूप में लन्दन चले गए. परन्तु 1962 में वहीं पर स्वतंत्र रूप से व्यापार शुरू किया.
व्यापार में अधिक सफलता न मिल पाने के कारण 1869 में वापस बम्बई आ गये. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से उसके आरम्भ से लेकर अपने जीवन के अन्तिम क्षण तक जुड़े रहे. वे इसके तीन बार 1886, 1893 तथा 1906 में अध्यक्ष रहे.
Dadabhai Naoroji 1892 में उदारवादी दल द्वारा चुने जाने वाले ब्रिटिश संसद के प्रथम भारतीय सदस्य थे. उन्होंने बम्बई में ज्ञान प्रसारक मण्डली व एक महिला हाई स्कूल की भी स्थापना की तथा बम्बई में 1852 में पहली राजनीतिक संस्था ” बम्बई एसोसिएशन ” (Bombay Association) की स्थापना का श्रेय भी इन्हीं को है.
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अपने लन्दन प्रवास के दौरान उन्होंने “लन्दन इण्डिया एसोसिएशन” तथा ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन’ की स्थापना भी की. यद्यपि दादाभाई नौरोजी यह समझते थे कि भारत में अंग्रेजी राज्य से बहुत लाभ हुए हैं तथापि 1906 में कांग्रेस के मंच से पहली बार (‘न्याय’ के रूप में ही सही) स्वराज्य की मांग की थी.
दादाभाई ने सर्वप्रथम अपनी महत्वपूर्ण पुस्तक ‘Indian Poverty and Un-British Rule in India (1901)‘ (भारत में भारतीय गरीबी और गैर-ब्रिटिश नियम 1901)में अंग्रेजी राज्य की शोषक नीतियों का अनावरण किया. 30 जून, 1917 को इनकी मृत्यु हो गई.
दादाभाई नौरोजी पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ):
दादाभाई नौरोजी एक भारतीय नेता, अर्थशास्त्री, और शिक्षक थे। उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापकों में से एक माना जाता है। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई और ‘भारत की गरीबी’ का कारण समझाने के लिए प्रसिद्ध हुए।
दादाभाई नौरोजी का जन्म 4 सितंबर 1825 को बॉम्बे (वर्तमान मुंबई), महाराष्ट्र में हुआ था। वह एक पारसी परिवार से थे।
दादाभाई नौरोजी को उनके दीर्घकालिक संघर्ष, धैर्य, और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अमूल्य योगदान के कारण ‘भारत का वयोवृद्ध पुरुष’ कहा जाता है। वह भारतीय राजनीति में लंबे समय तक सक्रिय रहे और ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य बनने वाले पहले भारतीय थे।
दादाभाई नौरोजी की कई प्रमुख उपलब्धियाँ हैं:
वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सह-संस्थापक थे।
उन्होंने ब्रिटिश संसद में भारतीयों की स्थिति को सुधारने के लिए कार्य किया।
‘पॉवर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया’ (भारत में गरीबी और गैर-ब्रिटिश शासन) नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश शासन को भारत की गरीबी का कारण बताया।
वह 1892 में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के लिए चुने जाने वाले पहले भारतीय बने।
‘ड्रेन थ्योरी’ दादाभाई नौरोजी द्वारा दी गई एक अवधारणा है। इसके अनुसार, उन्होंने तर्क दिया कि ब्रिटिश शासन भारत के धन और संसाधनों को ब्रिटेन में ले जा रहा है, जिससे भारत की गरीबी बढ़ रही है। यह सिद्धांत उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘Indian Poverty and Un-British Rule in India‘ में विस्तार से समझाया गया है।
दादाभाई नौरोजी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीयों को संगठित किया, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की, और ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई। उनके शांतिपूर्ण और तार्किक दृष्टिकोण ने भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष को एक नई दिशा दी।
दादाभाई नौरोजी ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में चुने जाने वाले पहले भारतीय थे। यह उपलब्धि भारतीयों के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर थी, क्योंकि उन्होंने वहां भारतीयों के पक्ष में कई मुद्दों को उठाया, जैसे भारत में गरीबी, कराधान, और आर्थिक शोषण। उन्होंने ब्रिटेन में भारतीयों के लिए न्याय और समानता की मांग की।
दादाभाई नौरोजी का निधन 30 जून 1917 को हुआ था। उनके निधन के बाद भी, उनके विचार और योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरणादायक बने रहे।
दादाभाई नौरोजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सह-संस्थापकों में से एक थे। 1885 में कांग्रेस की स्थापना के दौरान, उन्होंने इसके उद्देश्य और नीतियों को निर्धारित करने में प्रमुख भूमिका निभाई। कांग्रेस के मंच से उन्होंने भारतीयों के अधिकारों और ब्रिटिश शासन की आलोचना की।
दादाभाई नौरोजी की प्रारंभिक शिक्षा बॉम्बे (मुंबई) में हुई। उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज से स्नातक किया और बाद में वहीं गणित के प्रोफेसर बने। शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान महत्वपूर्ण था, और वह पहले भारतीय थे जिन्हें किसी कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था।
दादाभाई नौरोजी के आर्थिक विचार, विशेष रूप से ‘ड्रेन थ्योरी’, ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने यह बताया कि किस प्रकार ब्रिटिश शासन भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर कर रहा है। उनके विचारों ने भारतीय नेताओं को ब्रिटिश नीतियों का विरोध करने के लिए प्रेरित किया और भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए नए रास्ते खोले।
दादाभाई नौरोजी के जीवन और कार्यों के बारे में अधिक जानकारी आप उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों और उनके जीवन पर आधारित कई ऐतिहासिक दस्तावेजों में पा सकते हैं। इसके अलावा, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित किताबों में भी उनके योगदान का वर्णन किया गया है।
दादाभाई नौरोजी का जीवन और उनका कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरणादायक था। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और भारतीय इतिहास में उनका स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। उनके सिद्धांत और योगदान भारतीयों को हमेशा गर्व से याद रहेंगे।
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