कोशिका-विभाजन (Cell Division)

कोशिका-विभाजन क्या है? (What is Cell Division?)-

समस्त जीवों में कोशिका-विभाजन की क्रिया में एक निश्चित समानता होती है तथा इस क्रिया में होने वाली मुख्य घटनायें केवल केन्द्रक में ही सीमित रहती हैं. 
कोशिका-विभाजन के पश्चात् मातृ कोशिका से सन्तति कोशिकाओं का निर्माण होता है. 
कोशिका निर्माण अर्थात् कोशिका विभाजन निम्न प्रकार का होता है–
1. सूत्री कोशिका विभाजन या माइटोसिस (Mitotic Cell Division or Mitosis)
2. अर्धसूत्री विभाजन या मिओसिस (Meiosis or Reduction Division)
3. स्वतंत्र कोशिका निर्माण 
4. मुकुलन 
5. एमाइटोसिस या असूत्री विभाजन
कोशिका-विभाजन के विभिन्न प्रकार के विभाजनों में से दो मुख्य रूप से महत्वपूर्ण हैं-सूत्री कोशिका विभाजन (Mitotic Cell Division or Mitosis)तथा अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis or Reduction Division) .

सूत्री कोशिका-विभाजन या माइटोसिस (Mitotic Cell Division or Mitosis)

  • सूत्री कोशिका-विभाजन जनन कोशिकाओं को छोड़कर अन्य सभी प्रकार की कायिक कोशिकाओं (Somatic Cells) में होता है. 
  • इस प्रकार का विभाजन सामान्य रूप से विभज्योंतक या मैरिस्टमी (Meristematic) कोशिकाओं में भी होता है. 
  • समसूत्री विभाजन या माइटोसिस में होने वाली घटनाओं को निम्न अवस्थाओं में बाँटा गया है

(A) अंतरावस्था या इन्टरफेज (Interphase)-

  • अंतरावस्था दो कोशिका विभाजनों के बीच की वह अवधि है जब कोशिका स्वयं को विभाजन के लिए तैयार करती हैं. 
  • इस अवस्था में गुणसूत्र जाल के समान महीन व अत्यधिक लम्बे होते हैं. 
  • इस प्रावस्था में केन्द्रक व कोशिकाद्रव्य दोनों में संश्लेषी व उपापचय क्रियाएँ चरम सीमा पर होती हैं और कोशिकाएँ उन सभी आवश्यक पदार्थों का संश्लेषण एवं संग्रह करती हैं जिनकी कोशिका-विभाजन के समय आवश्यकता होती है.

B) केन्द्रक-विभाजन या कैरियोकाइनेसिस (Karyokinesis)-

  • केन्द्रक-विभाजन को प्रमुख चार अवस्थाओं में बाँटा जा सकता है

(1) प्रोफेज या पूर्वावस्था (Prophase)-

  • प्रोफेज (Prophase) विभाजन की प्रथम अवस्था है. 
  • क्रोमेटिन जाल छोटे व मोटे धागों का रूप ले लेता है. 
  • इन धागों को गुणसूत्र (Chromosomes) कहते हैं. 
  • प्रत्येक गुणसूत्र में दो क्रोमेटिड (Chromatids) दिखाई देने लगते हैं. 
  • दोनों क्रोमेटिड सेन्ट्रोमीयर द्वारा एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं. 
  • पूर्वावस्था के अन्त तक केन्द्रक कला व केन्द्रिक विलोपित हो जाते हैं तथा गुणस मध्य रेखा की ओर बढ़ना शुरू कर देते हैं.

(2) मध्यावस्था या मेटाफेज (Metaphase)-

  • इस अवस्था में गुणसूत्र मध्य रेखा (Equatorial Plate) पर आ जाते हैं. 
  • इस प्रकार तर्कु (Spindle) के रूप की आकृति बन जाती है. 
  • तर्कु के दोनों सिरों को ध्रुव (Poles) तथा मध्य तल को इक्वेटर (Equator) कहते हैं. 
  • प्रत्येक क्रोमेटिड या अर्धगुणसूत्र (Chromatid) के सेन्ट्रीमीयर या गुणसूत्र बिन्दु (Centromere) से कुछ तन्तु तओं के सिरे पर स्थित ध्रुवों (Poles) से जुड़े रहते हैं. 
  • इन तन्तुओं को Tractile Fibres कहते हैं. 
  • प्रत्येक सेन्ट्रोमीयर मध्य रेखा की ओर तथा गुणसूत्र की भुजायें ध्रुवों की ओर रहती हैं. 
  • कुछ तन्तु एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव तक फैले रहते हैं. 
  • इन्हें आलम्बी तन्तु (Supporting Fibres) कहते हैं. 
  • कुछ समय पश्चात् प्रत्येक सेन्ट्रोमीयर या गुणसूत्र बिन्दु दो भागों में बँट जाता हैं और प्रत्येक गुणसुत्र के दोनों क्रोमेटिड एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं. 
  • प्राणि-कोशिकाओं में एक सेन्ट्रोसोम या तारककाय (Centrosome) होता है जो दो सेन्ट्रिओल्स में अलग हो जाता है. 
  • सेन्ट्रिओल्स विपरीत ध्रुवों पर पहुंचते हैं. 
  • इनसे तारक किरणें (Astral Rays) निकलती हैं. 
  • ये तर्कु (Spindle) तन्तु बनाती हैं. 
  • पौधों में तारककाय या सेन्ट्रोसोम अनुपस्थित होता है.

(3)पश्चावस्था (Anaphase)–

  • पश्चावस्था (Anaphase) में क्रोमेटिड U, V या L की आकृति ले लेते हैं और तर्कु (Spindle) के विपरीत ध्रुवों की ओर खिंचने लगते हैं. 
  • तर्कु तन्तुओं के आकुंचन के फलस्वरूप क्रोमेटिड तओ के आधे तन्तु एक ध्रुव की ओर तथा शेष आधे दूसरे ध्रुव की ओर चले जाते हैं. 
  • विपरीत ध्रुवों पर पहुँचे क्रोमेटिड्स को अब गुणसूत्र कहते हैं. 
  • प्रत्येक गुणसूत्र के साथ एक सेन्ट्रोमीयर लगा होता है.

(4) अन्त्यावस्था (Telophase)—

  • सन्तति गुणसूत्र विपरीत ध्रुवों पर एकत्रित हो जाते हैं . 
  • केन्द्रक कला (Nuclear Membrane) बन जाती है तथा केन्द्रिक ( Nucleus ) फिर से प्रकट हो जाता है. 
  • अन्त्यावस्था (Telophase) में तर्कु व तन्तु लुप्त होने लगते हैं और गुणसुत्र क्रोमेटिन के जाल का रूप ले लेते हैं. 
  • इस प्रकार से दो सन्तति केन्द्रक बन जाते हैं.

(C) कोशिकाद्रव्य विभाजन या साइटोकाइनेसिस (Cytokinesis)-

  • कोशिकाद्रव्य का विभाजन केन्द्रक के विभाजन के बाद होता है. 
  • पादप कोशिकाओं में मध्यरेखीय प्रदेश में गॉल्जी वेसीकल्स (Golgi Vesicles) तथा सूक्ष्मनलिकाएँ (Microtubules) एकत्रित होकर एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं. 
  • जिस प्रदेश में गॉल्जी वेसीकल्स एकत्रित होते हैं उसे फ्रेग्मोप्लास्ट (Phragmoplasts) कहते हैं. 
  • शुरू में य कण तर्क के मध्य में बनते हैं और धीरे-धीरे बाहर की ओर बढ़कर मध्य पटलिका (Middle Lamella) बनाते हैं. 
  • मध्य पटलिका के ऊपर सेलूलोस की भित्ति बन जाती है और दो सन्तति कोशिकाएँ बन जाती है .
  • प्राणि-कोशिकाओं में केन्द्रक के दो सन्तति केन्द्रकों में विभाजन पश्चात कोशिकाद्रव्य में बाहर से अन्दर की ओर कुछ अन्तर्वलन बनकर धीरे-धीरे गहरे होते जाते हैं और बीच में मिल जाते हैं. 
  • इस एक खाई-सी बन जाती है जो अंत में कोशिकाद्रव्य को दो भागों में बाँट देती है.

कोशिका चक्र (Cell Cycle)

  • समसूत्री विभाजन के फलस्वरूप केन्टक दो केन्द्रकों में बँट जाता है. 
  • जिससे एक मातृ कोशिका से दो संतति कोशिकाएँ बनती हैं. 
  • समस्त सन्तति कोशिका का केन्द्रक कोशिका विभाजन से पूर्व उपापचय (Metabolically) की दृष्टि से सक्रिय रहता है. 
  • इस अवस्था को अन्तरावस्था (Interphase) कहते हैं . 
  • अन्तरावस्था और सूत्री विभाजन को मिलाकर कोशिका चक्र (Cell Cycle) कहते हैं. 
  • कोशिका चक्र निम्न चार चरणों में पूर्ण होती हैपहला चरण G1-अवस्था या प्रारम्भिक वृद्धि काल (G1-Substage or Post-mitotic Phase) कहलाता है. 
  • इस अवस्था में कोशिका-विभाजन चक्र के पूर्ण समय का 30-40% समय लगता है. 
  • इस प्रवस्था में कोशिका वृद्धि करती है और DNA के संश्लेषण के लिए आवश्यक प्रोटीन्स एवं RNA का संश्लेषण होता है. 
  • इस प्रावस्था में गुणसूत्र लम्बे व पतले होते हैं और एक-दूसरे के ऊपर लिपटे रहते हैं. 
  • दूसरा चरण S-अवस्था या DNA संश्लेषण की अवधि (S-Phase or Period of DNA Synthesis) कहलाता है. 
  • इस अवस्था में कोशिका-चक्र के कुल समय का 10-20% समय लगता है. 
  • इसमें DNA एवं हिस्टोन्स के संश्लेषण के फलस्वरूप DNA की पुनरावृत्ति होती है. 
  • इस समय DNA के दोनों रज्जुक एक-दुसरे के इतने समीप होते हैं कि इन्हें अलग-अलग पहचानना संभव नहीं होता. 
  • तीसरा चरण G2-अवस्था या द्वितीय वर्धन काल (G2-Phase or Premitotic) कहलाता है. 
  • इस प्रावस्था में कोशिका-चक्र की कुल अवधि का 10-20% समय लगता है. 
  • इस उपावस्था में सूत्री कोशिका विभाजन की तैयारी होती है तथा विभाजन के लिए आवश्यक प्रोटीन्स का संश्लेषण होता है. 
  • DNA की मात्रा भी कायिक कोशिकाओं की तुलना में दुगुनी हो जाती है. 
  • चौथे चरण M-अवस्था या समसूत्री अवस्था (M-Phase or Mitotic Phase) कहलाता है. 
  • यह G2-उपावस्था के बाद की प्रावस्था है जिसमें कोशिका चक्र के कुल समय का 5-10% समय लगता है. 
  • इस अवस्था में समसूत्री विभाजन की विभिन्न क्रियाएँ पूरी होती हैं. 

अर्धसूत्री या न्यूनकारी विभाजन (Cell Division or Reduction Division) 

  • अर्धसूत्री विभाजन केवल द्विगुणित जनन-कोशिकाओं में युग्मक कोशिकाओं के बनने के समय होता है जिसके फलस्वरूप युग्मक (गैमीट) बनते हैं. 
  • अतः अर्धसूत्री विभाजन द्वारा गुणसूत्रों की संख्या कम होकर मूल संख्या से आधी रह जाती है. 
  • नर एवम् मादा युग्मकों का युग्मन लैंगिक रूप से जनन करने वाले समस्त जीवों के जीवन-चक्र में होने वाली एक महत्वपूर्ण घटना है. 
  • संयुग्मन की इस क्रिया को निषेचन (Fertilization) कहते हैं. इस प्रकार से बने निषेचित अण्डे को जाइगोट (Zygote) या युग्मक कहते हैं. 
  • इससे दोनों लैंगिक कोशिकाओं या युग्मकों (गैमीट) के गुणसूत्रों में समूहों के युगल में आने से गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित हो जाती है. 
  • सूत्री विभाजन द्वारा द्विगुणित युग्मनज (जाइगोट) बारम्बार विभाजित होकर प्रौढ़ जीव बनाता है.
  • प्रौढ़ जीव की सभी कोशिकाओं में उपस्थित गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित होती है. 
  • यदि पेड़-पौधों व जन्तुओं के युग्मकों में भी गुणसूत्रों की संख्या वही होती तो लैंगिक जनन के फलस्वरूप बने संतति जीवों में गुणसूत्रों की संख्या मूल-संख्या से दुगुनी हो जाती और इनमें कुछ और ही लक्षण दिखाई देने लगते हैं. 
  • इसके विपरीत हम जानते हैं कि एक जाति के समस्त जीवों में पीढ़ी दर पीढ़ी गुणसूत्रों की संख्या सदैव स्थिर रहती है तथा गुणसूत्र संख्या जाति की विशेषता है.
  • अर्घसूत्री विभाजन को भी समसूत्री विभाजन की भाँति अनेक पदों में बाँटा गया है किंतु इसमें ये अवस्थायें दो बार होती हैं. 
  • प्रथम अर्धसूत्री विभाजन में गुण-सूत्रों की संख्या आधी रह जाती है. 
  • दूसरा अर्धसूत्री विभाजन समविभाजन (Homotypic) कहलाता है. 
  • यह सूत्री विभाजन के समान होता है जिसमें संतति कोशिकायें गुणसूत्रों की संख्या में बगैर किसी परिवर्तन के विभाजन करती है. 
  • उपर्युक्त दोनों विभाजनों के फलस्वरूप चार सन्तति कोशिकायें बनती हैं जिनमें से प्रत्येक में गुणसूत्रों की संख्या आधी होती है.

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