द्वितीय विश्वयुद्ध और राष्ट्रीय आंदोलन (Second World War and the National Movement) भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन (Indian National Movement)
- द्वितीय विश्व युद्ध 3 सितम्बर, 1939 को आरंभ हुआ था, जब जर्मन प्रसारवाद की हिटलर की नीति के अनुसार नाजी जर्मनी ने पौलैंड पर आक्रमण कर दिया.
- इससे पूर्व वह मार्च, 1938 में आस्ट्रिया और मार्च, 1939 में चेकोस्लोवाकिया पर अधिकार कर चुका था.
- ब्रिटेन और फ्रांस ने हिटलर को खुश रखने के लिए बहुत कुछ किया था मगर अब वे पोलैंड की सहायता करने को बाध्य हो गए.
- भारत सरकार राष्ट्रीय कांग्रेस व केन्द्रीय धारा सभा के चुने हुए सदस्यों से परामर्श किए बिना तुरन्त युद्ध में शामिल हो गई.
- कांग्रेस फांसीवादी आक्रमण के विरुद्ध संघर्ष में लोकतांत्रिक शक्तियों की सहायता करने को तैयार थी, परन्तु एक गुलाम राष्ट्र दूसरों की सहायता किस प्रकार कर सकता था, यह महत्वपूर्ण प्रश्न था.
- अतः कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य की मांग की.
- ब्रिटिश सरकार ने इस मांग को मानने से इन्कार कर दिया, बल्कि उल्टा धार्मिक अल्पसंख्यकों और राजा-महाराजाओं को कांग्रेस के खिलाफ खड़ा करने का प्रयास किया.
- इसलिए कांग्रेस ने अपने मंत्रिमंडलों को त्यागपत्र देने का आदेश दिया.
- वायसराय लार्ड लिनलिथगो ने 10 जनवरी, 1940 को बम्बई में ब्रिटिश सरकार की नीति बताई और कहा कि युद्ध के बाद भारत को ‘डोमीनियम स्टेट’ बना दिया जाएगा.
- वायसराय ने यह भी कहा कि वह अपनी कार्यपालिका परिषद् में अन्य दलों के नेताओं को नियुक्त करके उनकी संख्या बढ़ा देगा.
- महात्मा गांधी ने इसे अस्वीकार कर दिया और कहा कि भारत को अपना संविधान स्वयं बनाने का अधिकार होना चाहिए.
- अक्टूबर, 1940 में गांधीजी ने कुछ चुने हुए व्यक्तियों को साथ लेकर सीमित पैमाने पर सत्याग्रह चलाने का निर्णय किया.
- सत्याग्रह को सीमित इसलिए रखा गया कि देश में व्यापक उथल-पुथल न हो और ब्रिटेन के युद्ध प्रयासों में बाधा न पड़े.
- गांधीजी ने इस आंदोलन के उद्देश्यों की व्याख्या वायसराय के नाम लिखे पत्र में इस प्रकार की, –
“कांग्रेस नाजीवाद की विजय की उतनी ही विरोधी है जितना कि कोई अंग्रेज हो सकता है. लेकिन उसकी आपत्ति को युद्ध में उसकी भागीदारी की सीमा तक नहीं खींचा जा सकता और चूंकि आपने तथा भारत सचिव महोदय ने घोषणा की है कि पूरा भारत स्वेच्छा से युद्ध प्रयास में सहायता कर रहा है, इसलिए यह स्पष्ट करना आवश्यक हो जाता है कि भारत की जनता का विशाल बहुमत इसमें कोई दिलचस्पी नहीं रखता. वह नाजीवाद तथा भारत पर शासन कर रही दोहरी निरंकुशता में कोई अंतर नहीं करता.”