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भारत की प्रागैतिहासिक जातियाँ और संस्कृतियाँ (Pre-Historic Races and Cultures in India) प्राचीन भारत (ANCIENT INDIA)
- भारत की इतिहास पूर्व जातियों और संस्कृतियों के विषय में निश्चय पूर्वक कुछ नहीं लिखा जा सकता.
- सर हरबर्ट रिस्ले (Sir H. Risley) ने इन जातियों को सात भागों में विभाजित किया है.
जातियों का वर्ग
द्रविड़
- रंग काला, काली आँखे, लम्बा सिर, चौड़ी नाक, चपटा चेहरा तथा वे भारत के दक्षिण में रहते थे.
इण्डो आर्य
- लम्बा कद, रंग गोरा, काली आँखे, तीखी नाक, तथा वे कश्मीर, पंजाब व राजपूताना में मिलते थे.
तुर्क इरानियन
- उत्तर पश्चिमी सीमान्त प्रान्त (N.W.F.P.) और बलोचिस्तान में पाये जाते थे.
साईयो द्रविड़
- पूर्वी सिन्ध, गुजरात व बम्बई में मिलते थे.
आर्य द्रविड़
- पूर्वी पंजाब, बिहार और उत्तर प्रदेश में
मंगोल
- बर्मा, असम और हिमालय के विभिन्न प्रदेशों में तथा
मंगोल द्रविड़
- प्रायः बंगाल और उड़ीसा में पाये जाते थे.
सर रिस्ले का विचार स्पष्ट करता है कि द्रविड़ जाति ही भारत की आदि निवासी जाति थी. मगर अब स्पष्ट हो गया है कि द्रविड़ों से पहले भी भारत में कुछ जातियाँ रहती थीं.
- 1933 ई. में डा. एच.जे. हड्डुन (Dr. H.J.Hutton) ने कहा कि भारत में निम्न आठ जातियों ने प्रवेश किया.
- हब्शी (Negritos),
- मौलिक-आस्ट्रेलाएड (Proto-Australoids),
- प्राथमिक मैडीटेरेनियन (Early Mediterraneans),
- सभ्य या उन्नत मैडीटेरेनियन (Civilized or Advanced Mediterraneans),
- आर्मेनाइड (Armenoids),
- एल्पाइन (Alpines),
- वैदिक आर्य (Verlic Aryans) या नाडिक (Nordics) और
- मंगोल (Mongoloids) .
भारत के मानव विज्ञान सर्वेक्षण के निदेशक (Director of Anthropological Survey of India) डा. बी. एस. गुहा (Dr. B. S. Guha) ने अपनी पुस्तक “Racial Element in the Population” में कहा है कि भारत में निम्न छहः जातियों ने प्रवेश किया था.
- हब्शी (Negritos),
- मौलिक-आस्ट्रेलाइड (Proto-Australoids),
- मंगोल (Mongoloids),
- मैडीटेरेनियन (Mediterraneans),
- पश्चिमी ब्रेकिसैफेल (Western brachycephals) और
- नार्डिक (Nordics).
यहाँ भारतीय संस्कृति पर प्रभाव डालने वाली विभिन्न संस्कृतियों और जातियों का वर्णन करना उचित रहेगा.
हब्शी जाति
- हब्शी जाति भारत की सर्वप्रथम मानव जाति थी जो मूलतः अफ्रीका से अरब-ईरान और बलूचिस्तान के रास्ते यहाँ आये .
- यद्यपि अब भारत से उनका नाम तक उठ गया तो भी अंडमान, मलाया और इण्डोनेशिया में उनका अस्तित्व अब भी विद्यमान है.
- वे स्वयं सभ्य नहीं थे, इसी कारण भारतीय सभ्यता में उनका कोई योगदान नहीं रहा.
मौलिक आस्ट्रेलाएड जाति
- इन लोगों ने कई बार भिन्न-भिन्न भागों से भारत में प्रवेश किया.
- निश्चय ही इस जाति का मिश्रण हब्शी और मंगोल जैसी भारतीय जातियों से हुआ होगा.
- भारत में रहने वाले कोल, मुण्ड और नॉन-ख्मेर (Non-Khmer) और असम, बर्मा और हिन्द-चीन में रहने वाले लोगों में मौलिक ऑस्ट्रेलॉएड जाति के तत्व पाये जाते हैं.
- मुण्ड भाषाएं आस्ट्रो एशियाई परिवार से सम्बन्धित हैं और आजकल मध्य भारत के पूर्व में हिमालय की दक्षिणी सीमा पर और कश्मीर तथा पूर्वी नेपाल में पाई जाती हैं.
द्रविड़ जाति
- द्रविड़ लोग पूर्वी भू-मध्य सागर खंड की ओर से भारत आये थे. ये तीन शाखाएं थीं तथा सभी द्रविड़ भाषा बोलते थे.
- उत्तरी भारत में द्रविड़ों की सभ्यता का कोई मुख्य केन्द्र नहीं था. अतः आर्यों ने सुगमता से यहां अपना विस्तार किया.
- हेरोडोट्स के अनुसार लायसियन वास्तव में क्रीट नामक द्वीप से भारत में आये थे.
- तमिल तथा द्रविड़ शब्द सम्भवतः ‘द्रमिल’ या ‘द्रमिज’ शब्दों से निकले हैं.
- एशिया माइनर की लायसियन जाति ने अपने आपको शिलालेखों में ‘तृम्मिलि’ कहा है.
- द्रविड़ों ने भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति व धर्म को प्रभावित किया.
- आज हिन्दू धर्म में पूजे जाने वाले देवता शिव, भगवती, नाग आदि द्रविड़ों के प्रमुख देवी-देवता थे.
- सिन्धु घाटी की लिपि यदि पढ़ने में आ जाए तो अनेक महत्वपूर्ण तथ्य हमारे सामने आ जाएंगे.
द्रविड़ जाति का उद्भव
- विभिन्न विद्वानों ने इस विषय में अपने मत दिये हैं—डा. काल्डवैल इन्हें “मध्य एशिया” का मानते हैं तो कन कस भाई पिल्लई मंगोल जाति की शाखा.
- कुछ सेमिटिक सभ्यता का मानते हैं तो इलियट स्मिथ मिस्त्र का जो समुद्र के मार्ग से भारत आयी.
- मगर यह सम्भव प्रतीत नहीं होता.
- कुछ भी हो प्रायः इस बात को स्वीकार किया गया है कि द्रविड़ विदेशी थे जो मेसोपोटामिया और बलूचिस्तान के रास्ते भारत में आये थे.
प्राचीन भारतीय इतिहास का महत्व (The Importance of Ancient Indian History)