भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े नेता
(Leaders Associated with India’s Struggle for Freedom)

Bal Gangadhar Tilak बाल गंगाधर तिलक 1856-1920 ‘लोकमान्य’ और ‘बेताज बादशाह’ के नाम से प्रसिद्ध बाल गंगाधर तिलक ने देशभक्ति की भावना को जगाने में बहुत अहम भूमिका निभाई. बाल गंगाधर तिलक का जन्म कोंकण तट के रत्नागिरि नामक स्थान पर उच्च जाति के चितपावन मराठा ब्राह्मण के घर 23 जुलाई, 1856 को हुआ. 1879 में कानून में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात तिलक ने आगरकर के सहयोग से ऐसी संस्थाएं बनाने की सोची जो कम मूल्य की शिक्षा दे सकें. इसी सन्दर्भ में उन्होंने जनववरी, 1900 में पूना नवीन इंग्लिश विद्यालय (Poona New English School) स्थापित किया.
बाल गंगाधर तिलक दक्कन एज्यूकेशनल सोसाइटी (Deccan Educational Society)और फरग्यूशियस कालेज पूना की स्थापना से भी सम्बन्धित थे. तिलक पहले राष्ट्रवादी नेता थे जिन्होंने आम जनता से निकट सम्बन्ध स्थापित केये और लोगों में राष्ट्रवाद की भावना का विकास किया.
सर्वप्रथम लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने “स्वतंत्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा’ की उद्घोषणा की. जिसने देश के कोने-कोने में उत्तेजना की एक नई लहर उत्पन्न कर दी. अंग्रेज उन्हें अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे. उनके राजनीतिक जीवन के अधिकांश वर्ष अंग्रेजों की जेल में व्यतीत हुए. उन्होंने ‘द मराठा’ तथा और ‘केसरी’ नामक समाचार-पत्र आरम्भ किये और गणेश उत्सव एवं शिवाजी उत्सव के माध्यम से जनसाधारण में राष्ट्रीय चेतना जागृत की.
1907 में उन्होंने लाल लाजपत राय और विपिन चन्द्र पाल के सहयोग से कांग्रेस के भीतर उग्र राष्ट्रीयता (गरमदल) का संगठन किया. जो चाहते थे कि कांग्रेस अपनी मांगे मनवाने के लिए कारगर कदम उठाये. तिलक ने 1916 में होमरुल लीग की स्थापना की. अगस्त, 1920 में बाल गंगाधर तिलककी मृत्यु हो गई.
बाल गंगाधर तिलक पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ):
बाल गंगाधर तिलक एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और राष्ट्रवादी नेता थे। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा दी और “स्वराज” (स्वयं शासन) का नारा दिया।
तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के चिखली/चिखलदरा गाँव में हुआ था।
तिलक को “लोकमान्य” इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने लोगों के बीच गहरा सम्मान अर्जित किया। “लोकमान्य” का अर्थ है “जनता द्वारा सम्मानित,” और यह उपाधि उनके अनुयायियों ने उन्हें उनके जनसेवा और नेतृत्व के कारण दी।
तिलक ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा” (Swaraj is my birthright, and I shall have it) का नारा दिया। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ‘उग्रवादी‘ धड़े के प्रमुख नेता थे, और उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशक्त संघर्ष की वकालत की।
तिलक ने दो प्रमुख अखबार शुरू किए थे:
केसरी (मराठी में)
मराठा (अंग्रेज़ी में)
इन अखबारों के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई और भारतीय जनता को जागरूक किया।
तिलक के लिए “स्वराज” का मतलब था कि भारतीयों को खुद पर शासन करने का अधिकार होना चाहिए। वह मानते थे कि ब्रिटिश शासन भारत के लिए शोषणकारी था, और भारतीयों को अपने राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष करना चाहिए। उनके “स्वराज” के विचार ने भारतीयों में स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता बढ़ाई।
तिलक ने शिक्षा के महत्व को समझा और भारतीय युवाओं को जागरूक और शिक्षित करने के लिए काम किया। उन्होंने दक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारतीय युवाओं के लिए उच्च शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा देना था। उनके प्रयासों से भारतीय युवाओं में राष्ट्रीय भावना जागृत हुई।
बाल गंगाधर तिलक की विचारधारा कांग्रेस के ‘उदारवादी’ नेताओं से अलग थी। जबकि उदारवादी नेता ब्रिटिश सरकार से सुधार की मांग करते थे, तिलक ‘स्वराज’ और पूर्ण स्वतंत्रता के पक्षधर थे। वह सशक्त और उग्र आंदोलन के समर्थक थे, जिससे उन्हें “उग्रवादी” धड़े का नेता माना गया।
तिलक ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं, जिनमें प्रमुख हैं:
गीता रहस्य (Gita Rahasya)
द आर्कटिक होम इन द वेदाज (The Arctic Home in the Vedas)
इन पुस्तकों में उन्होंने वेदों और भगवद गीता की व्याख्या की और भारतीय संस्कृति और धर्म को एक नई दृष्टि से प्रस्तुत किया।
बाल गंगाधर तिलक को ब्रिटिश सरकार ने कई बार जेल भेजा। 1908 में उन्हें ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह भड़काने के आरोप में 6 साल के लिए बर्मा (अब म्यांमार) की मांडले जेल में भेजा गया था। जेल में रहते हुए उन्होंने गीता रहस्य नामक पुस्तक लिखी।