स्वराजवादी (Swarajists)स्वराज पार्टी की स्थापना (Swaraj Party)

स्वराजवादी (Swarajists)स्वराज पार्टी की स्थापना (Swaraj Party)-असहयोग आन्दोलन और खिलाफत आन्दोलन की समाप्ति के उपरान्त 1922-28 के बीच देश की राजनीति में अनेक घटनाएं घटित हुई. नेताओं के बीच आन्दोलन के बाढ़ की निष्क्रियता से बचने के लिए उठाये जाने वाले कदमों के बारे में गहरे मतभेद थे.

स्वराजवादी Swarajists स्वराज पार्टी की स्थापना Swaraj Party

एक ओर जहां पंडित मोतीलाल नेहरु और चित्तरंजन दास आदि ने बदली हुई परिस्थितियों में एक नए प्रकार की राजनीतिक गतिविधि का सुझाव देते हुए विधान मंडलों का बहिष्कार समाप्त करके उनमें भाग लेने का सुझाव दिया, ताकि उन्हें राजनीतिक संघर्ष के लिए प्रयुक्त किया जा सके.

दूसरी ओर सरदार पटेल, डा. अंसारी, बाबू राजेन्द्र प्रसाद आदि ने विधान मंडलों में जाने का विरोध किया. इनका मानना था कि इससे जनता के बीच काम की उपेक्षा होगी तथा नेताओं के बीच प्रतिद्वंद्विता पैदा होगी. अत: इन्होंने आम जनता के बीच रचनात्मक कार्यक्रमों पर जोर दिया.

चित्तरंजन दास पंडित मोतीलाल नेहरु ने दिसंबर, 1922 में स्वराज पार्टी की स्थापना (Swaraj Party)की. इसने कौंसिल चुनावों में भाग लेने के अतिरिक्त कांग्रेसी कार्यक्रमों को ही स्वीकार किया. इस कारण स्वराज्यवादियों और अपरिवर्तनवादियों के बीच तीव्र राजनीतिक विवाद उठा खड़ा हुआ.

5 फरवरी, 1924 को स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण गांधीजी जेल से रिहा कर दिए गए. परन्तु वह भी इनके मतभेद दूर करने में असफल रहे. दोनों ही पक्ष 1907 के विभाजन की पुनरावृत्ति से भी बचना चाहते थे. अत: महात्मा गांधीजी की सलाह पर दोनों समूहों ने कांग्रेस के अन्दर रहकर ही अलग-अलग ढंग से काम करने का फैसला किया.

नवम्बर, 1923 के चुनावों में केन्द्रीय धारा-सभा की चुनाव से भरी जाने वाली 101 सीटों में से 42 में स्वराज्यवादियों को विजय प्राप्त हुई. अपने विभिन्न कार्यक्रमों से इन्होंने सरकार के खोखलेपन को उजागर किया तथा जिस समय राष्ट्रीय आन्दोलन फिर से शक्ति जुटाने में लगा रहा, ऐसे समय में उन्होंने राजनीतिक शून्य को भरा. परन्तु वे निरंकुश सरकार की नीतियां बदलवाने में असफल रहे. अतः मार्च, 1926 व जनवरी, 1930 में उन्हें केन्द्रीय धारा-सभा का बहिष्कार करना पड़ा.

अपरिवर्तनवादी इस बीच शांति के साथ रचनात्मक कार्यों में लगे रहे तथा उन्होंने आम जनता को राष्ट्रीय आन्दोलन में जोड़ने के लिए अनेक कार्यक्रम प्रारम्भ किए. इन दोनों के बीच कोई बुनियादी मतभेद नहीं थे तथा बाद में नए राष्ट्रीय संघर्ष के लिए ये दोनों आसानी से एकजुट हो गए.

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