इल्तुतमिश (1210-36 ई.)गुलाम वंश | दिल्ली सल्तनत | Iltutmish in Hindi

इल्तुतमिश (1210-36 ई.)गुलाम वंश- दिल्ली सल्तनत-Iltutmish in Hindi-इल्तुतमिश के साथ इल्बारी (शक्शी) वंश का शासन आरम्भ हुआ. यह भी एक दास था तथा अपनी योग्यता के बल पर वह बदायूँ का प्रान्ताध्यक्ष बना और मुहम्मद गोरी के आदेश पर उसे दासता से मुक्ति तथा ‘अमीर-उल-उमरा’ की उपाधि मिली. इल्तुतमिश आरामशाह को पराजित करके शम्सुद्दीन के नाम से सिंहासन पर बैठा .

इल्तुतमिश (1210-36 ई.)गुलाम वंश | दिल्ली सल्तनत |Iltutmish in Hindi

सुल्तान बनते ही उसने कुत्बी तथा मुईज्जी सरदारों के विद्रोहों का दमन किया. उसने अपने चालीस गुलाम सरदारों का एक गुट बनाया जिसे ‘तुर्कान-ए-चिहालगानी‘ या ‘चारगान’ कहा गया.

ताजुद्दीन यल्दौज ने 1214 ई. में लाहौर पर अधिकार कर लिया. इल्तुतमिश ने उसे तराइन के युद्ध में पराजित किया. 1217 ई. में नारिरुद्दीन कुबाचा को पराजित किया गया. 1227 ई. में उसे पूर्ण रूप से पराजित किया गया तथा कुबाचा की सिन्धु नदी में डूब कर मृत्यु हो गई. अपने शासन काल में इल्तुतमिश को बड़े संकट का सामना करना पड़ा.

उसने बड़ी बुद्धिमत्ता से मंगोलों के आक्रमण से स्वयं को बचा लिया. ख्वारिज्म शाह का पुत्र जलालुद्दीन मांगबरनी मंगोल नेता चंगेज खाँ के भय से भारत की ओर भागा और इल्तुतमिश(Iltutmish) ने बड़ी बुद्धिमत्ता से उसे संरक्षण देने से टाल दिया. चंगेज खाँ जलालुद्दीन मांगबरनी का पीछा करने हुए 1220-21 ई. में सिन्ध तक आ गया. 1228 ई. में जलालुद्दीन मागबरनी के वापस लौटने के मंगोल आक्रमण का भय टल गया.

कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद अली मरदान ने ‘अलाउद्दीन‘ की उपाधि धारण करके स्वयं को बंगाल का स्वतन्त्र शासक घोषित किया. उसके बाद उसका पुत्र हिसाम-उद-दीन इवाज़ उसका उत्तराधिकारी बना.

1225 ई. में इल्तुतमिश (Iltutmish)ने उसके विरुद्ध अभियान भेजा तथा उसने सुल्तान की अधीनता स्वीकार कर ली. मगर शीघ्र ही विद्रोह कर दिया. 1926 ई. में इल्तुतमिश के पुत्र नासिरुद्दीन महमूद ने उसे पराजित करके लखनौती पर अधिकार कर लिया.

मगर दो वर्ष बाद नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु होने पर बल्का खिलजी ने बंगाल पर उसका अधिकार कर लिया. 1930 ई. में इल्तुतमिश(Iltutmish) ने उसे पराजित किया व बल्का खिलजी मारा गया. इस प्रकार बंगाल एक बार फिर सल्तनत के अधीन हो गया.

इल्तुमिश(Iltumish) ने 1226 में रणथंभौर पर तथा 1227 ई. परमारों की राजधानी मन्दौर पर अधिकार कर लिया. 1231 ई. में उसने ग्वालियर, 1233 ई. में चंदेलों के विरुद्ध तथा 1234-35 ई. में उज्जैन एवं भिलसा के विरुद्ध अभियानों में सफलता प्राप्त की.

18 फरवरी, 1229 ई. को बगदाद के खलीफा के राजदूत ने दिल्ली आकर उसे मानाभिषेक पत्र (मंसूर) प्रदान किया. खलीफा ने उसे ‘सुल्तान-ए-आजम‘ की उपाधि प्रदान की. ‘खिलअत’ प्राप्त होने के पश्चात् इल्तुतमिश ने ‘नासिक-अमीर-अल-मोमिन‘ की उपाधि धारण की. उसका अन्तिम अभियान ‘बनमयान’ के विरुद्ध था. मगर मार्ग में ही वह बीमार हो गया तथा 29 अप्रैल 1236 ई. को उसका देहान्त हो गया.

इल्तुमिश(Iltumish) प्रथम मुस्लिम शासक था जिसने शासन व्यवस्था में सुधार करने का प्रयास किया तथा चाँदी-सोने के अरबी ढंग के सिक्के चलाए. उसने चाँदी का टंका (लगभग 175 ग्रेन का) तथा ताँबे का जीतल चबाया. उसने ‘इक्ता व्यवस्था’ का प्रचलन भी किया. अपनी राजधानी को लाहौर से दिल्ली स्थानान्तरित किया.

1231-32 ई. में इल्तुतमिश ने दिल्ली में मेहरोली के निकट सुप्रसिद्ध कुतुबमीनार का निर्माण (Qutub Minar) पूरा करवाया. उसने ‘अजमेर की मस्जिद‘ का निर्माण भी करवाया तथा सम्भवतः भारत में पहला मकबरा स्थापित करने का श्रेय भी इल्तुतमिश को ही दिया जाता है.

रूहानी, मलिक ताजुद्दीन रेजाब तथा ‘तबकात-ए-नासिरी’ के लेखक मिन्हाज-उस-सिराज आदि विद्वानों को इल्तुतमिश ने अपने दरबार में संरक्षण दिया. अवफी ने इल्तुतमिश के शासन काल में ही ‘जिवामी-उल-हिकायत‘ की रचना की.

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