जीवाणु (Bacteria)

जीवाणु (Bacteria), जीवाणु की संरचना (Structure of Bacteria)

  • जीवाणु सबसे प्राचीन, छोटा, सरल तथा बहुतायत में पाए जाने वाले प्रोकैरिऑटी किंगडम मोनेरा के सूक्ष्म जीव हैं. 
  • इस किंगडम में विभिन्न प्रकार के जीवाणु होते हैं . 
  • जहाँ पर भी जीवन संभव है, जैसे गरम झरनों में, बर्फ के नीचे, समुद्र की गहरी तलहटी में, सबसे गरम तथा शुष्क मरुस्थल में, और अन्य जीवों के शरीर में मोनेरा के सदस्य पाए जाते हैं. 
  • उन्हें हवा उड़ा कर ले जा सकती है. वे बहुत अधिक संख्या में होते हैं.
  • सन 1683 में हॉलैंड के एण्टोनी वान ल्यूवेनहॉक (Antony Van Leeuwenhock) ने अपने द्वारा बनाये हुए सूक्ष्मदर्शी की सहायता से दाँत की खुरचन में जीवाणुओं को देखा तथा उन्हें सूक्ष्म जीव (Animal Cules) कहा. 
  • इसी कारण ल्यूवेनहॉक को जीवाणु विज्ञान का पिता (Father of Bacteriology) की संज्ञा दी जाती है. 
  • सन 1829 में एहरेनवर्ग (Ehrenberg) ने इन्हें जीवाणु (Bacteria) नाम दिया. 
  • सर्वप्रथम 1881 में राबर्ट कोच (Robert Koch) ने जीवाणुओं का कृत्रिम संवर्धन (Artificial Culture) किया तथा कालस्फाट (Anthrax) क्षयरोग (Tuberculosis) के जीवाणुओं को अलग किया, जिसके लिए उन्हें 1905 में नोबेल पुरस्कार मिला.

जीवाणु की संरचना (Structure of Bacteria) 

  • जीवाणु छड़ाकार, गोलाकार अथवा कुंडलित हो सकते हैं. 
  • कुछ जीवाणु तंतु के रूप में (जिसमें छड़ाकार जीवाणु जुड़े होते हैं, एक्टीनोमाइसिटीज) वृद्धि करते हैं. 
  • जीवाणुमें सत्य केन्द्रक तथा लवक का अभाव होता है. 
  • कोकस (Coccus) प्रकार के जीवाणुओं का व्यास (0.5 – 2.5u) होता है. 
  • द्रव की एक बूंद में 5 करोड़ जीवाणु समा सकते हैं. 
  • बैसीलस (Bacillus) प्रकारों में जीवाणुओं की लम्बाई (3-15u) तक होती है.
  • जीवाणु में फ्लैजिला अथवा हंटर की तरह की छोटी-छोटी संरचनाएं, हो भी सकती हैं अथवा नहीं भी हो सकती है. 
  • इनका उपयोग तैरने में किया जाता है. 
  • फ्लैजिला जीवाणु के एक अथवा दोनों सिरों पर हो सकते हैं, यह जीवाणु के प्रकार पर निर्भर करता है.
  • उनकी कोशिका भित्ति की संरचना तथा ग्राम रंग से रंगने के आधार पर जीवाणु दो प्रकार के होते हैं: 
  1. ग्राम धनात्मक तथा 
  2. ग्राम ऋणात्मक . 
जीवाणु की संरचना (Structure of Bacteria)
  • कणकीय बैगनी रंग से रंगने पर सभी जीवाणु नीले रंग के हो जाते हैं और जब इन रंगे हुए जीवाणुओं पर आयोडीनपोटेशियम आयोडाइड का घोल डाल कर एल्कोहॅल से धोया जाता है तब कुछ जीवाणुओं में नीला रंग रह जाता है तथा कुछ में नीला रंग नहीं रहता. 
  • जिन जीवाणुओं में नीला रंग रह जाता है उन्हें ग्राम धनात्मक जीवाणु तथा जिनमें नीला रंग नहीं रहता उन्हें ग्राम ऋणात्मक जीवाणु कहते हैं. उसके बाद ग्राम ऋणात्मक जीवाणुओं को एक अन्य रंग सैफ्रनिन जैसे रंग से रंग कर देखते हैं.
  • सभी यूवैक्टीरिया की कोशिका भित्ति का पदार्थ म्यूरिन अथवा पेप्टीडोग्लाइकान होता है. 
  • इसमें पॉलिसैकेराइड होता है जो छोटी-छोटी ऐमीनो एसिड की श्रृंखला से क्रॉस संबंधित होता है. 
  • पेप्टीडोग्लाइकान किसी भी यूकैरिऑट अथवा आरकी बैक्टीरिया में नहीं पाया गया है.
  • ग्राम ऋणात्मक जीवाणुओं में पेप्टीग्लाइकान भित्ति के ऊपर एक अन्य सतह और होती है जिसे बाह्य झिल्ली कहते हैं. 
  • इसमें लियोपॉलिसै केराइड (जटिल लिपिड-पॉलिसैकोराइड अणु) होता है जो झिल्ली में धसा रहता है. 
  • लियोपॉलिसैकेराइड के कारण इन कोशिकाओं में विशिष्ट चिपकने के गुण होते हैं . 
  • यह जीवाणु को विशिष्ट यूकैरिऑटी कोशिकाओं से चिपकने में सहायता करता है.
  • जीवाणु की भीतरी रचना इसकी पतली काट लेकर केवल इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के द्वारा देख सकते हैं . 
  • उपरोक्त चित्र में एक विशिष्ट जीवाणु की भीतरी रचना दिखाई गई है. 
  • झिल्ली-युक्त प्रोटोप्लाज्म के चारों ओर एक भित्ति होती है राइबोसोम स्थित होने के कारण प्रोटाप्लाज्म दोनेदार दिखाई पड़ता है. 
  • चक्राकार तथा कुंडलित जीवाणु क्रोमोसोम (यह वास्तव में कोरा डी.एन.ए. है) एक बिंदु पर कोशिका झिल्ली से जुड़ा रहता है. 
  • फ्लेंजिला की आधारी संरचना कोशिका झिल्ली में होता है जहां पर यह घूम सकता है, लेकिन यह तब घूमता है जब फ्लेंजिला में गति होती है जो जीवाणु गति करता है. 

जीवाणु में प्रजनन (Reproduction in Bacteria) 

  • जीवाणु प्रायः अलैंगिक द्विखंडन विधि द्वारा जनन करता है. 
  • कोशिका दो समान पुत्री कोशिकाओं (Daughter Cells) में विभक्त हो जाती है. 
  • पुनः विभाजित होने से पहले दोनों पुत्री कोशिकाओं की मात्रा में वृद्धि होती है. 
  • इस प्रक्रिया के समय जीवाणु के अकेले चक्राकार क्रोमोसोम में सबसे पहले एक इसके समान दूसरा क्रोमोसोम बनता है (अर्थात् द्विगुणान होता है). 
  • पुत्री क्रोमोसोम कोशिका झिल्ली से चिपक जाती है और जब कोशिका में वृद्धि होती है तब यह अलग हो जाता है. 
  • अलग होते हुए पुत्री क्रोमोसोमों के बीच एक भित्ति बन जाती है जिससे कोशिका दो भागों में विभक्त हो जाती है. 
  • कुछ जीवाणु इष्टतम परिस्थिति में प्रत्येक 20-30 मिनट बाद विभक्त हो जाते हैं. 
  • कुछ जीवाणु जो बहुत शीघ्र विभक्त हो सकते हैं वे भोज्य पदार्थों को खराब कर देते हैं. 
  • जैसे-दूध से दही बना देते हैं अथवा कुछ जीवाणु संक्रमण रोग फैला देते हैं.
  • बहुत से जीवाणुओं में (जैसे एशकरिया कोली) लैंगिक जनन जैसी प्रक्रिया होती है जिसे जीवाणु संयुग्मन कहते हैं. 
  • इस प्रक्रिया के दौरान एक दात्री जीवाणु (नर के समान) डी.एन.ए. का एक छोटा भाग जिसे प्लास्मिड कहते हैं ग्राही जीवाण (मादा समान) में छोड़ता है. 
  • प्लास्मिड चक्राकार फालतू क्रोमोसोमी डी.एन.ए. होता है जो बहुत से प्रकार के जीवाणुओं में पाया जाता है. 
  • यदि प्लास्मिड में भी कोई विशिष्ट “ F जीन” हो तो वह जीवाणु दात्री होता है. 
  • एक दात्री जीवाणु जिसमें “F जीन” होता है वह तंतुमयी उर्ध्व बनाता है, जिसे लिंग पिली कहते हैं. 
  • पिली वास्तव में कोशिका भित्ति से निकले कोशिका झिल्ली के उद्धर्व होते हैं. 
  • पिली ग्राही जीवाणु को दात्री जीवाणु के पास खींच सकती है और उससे जुड़ सकती है. 
  • दात्री प्लास्मिड पिली द्वारा ग्राही में चला जाता है. 
  • कभी-कभी दात्री क्रोमोसोम का एक भाग या उसकी पूरी कॉपी भी प्लास्मिड सहित ग्राही में चला जाता है. 
  • संयुग्मन के बाद ग्राही की संतति में दात्री के भी कुछ गुण आ जाते हैं. 
  • जीवाणु संयुग्मन यद्यपि यूकैरिऑटी के लैंगिक जनन (जिसमें मिऑसिस तथा संयुग्मन होता है) से भिन्न है.

जीवाणु में अनुकूलन

  • जब स्थिति प्रतिकूल होती है तब कुछ ग्राम धनात्मक जीवाणु बीजाणु बनाते हैं. 
  • प्रोटोप्लाज्म का कुछ भाग क्रोमोसोम तथा शेष बचे प्रोटोप्लाज्म के चारों ओर एक अपारगम्य भित्ति बना देता है शेष कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं. 
  • बीजाणु में उपापचयी क्रियाएं निष्क्रिय होती हैं और बीजाणु प्रतिकूल तापक्रम, पी एच तथा सूखे में भी जीवित रह सकता है. 
  • जब बीजाणु सूख जाता है तब वह कई घंटों तक 100°C तापमान में भी जीवित रहता है. 
  • अनुकूल परिस्थितियों में बीजाणु पानी का अवशोषण करता है और पुन: उपापचयी क्रियाएं करने के लिए सक्रिय हो जाता है. 

जीवाणु में पोषण

  • जीवाणु के रहने के तरीके में प्रकाश स्वपोषण, रसायन स्वपोषण तथा विषम पोषण आते हैं. 
  • जीवाणु ऑक्सीजन अथवा ऑक्सीजन रहित वातावरण में भी रह सकता है. 
  • जब जीवन के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है तब उन्हें अविकल्पी वायु-जीव कहते हैं. 
  • यदि वे ऑक्सीजन की उपस्थिति में वृद्धि न कर सकें तो उन्हें पूर्ण अविकल्पी अवायु जीव कहते हैं. 
  • कुछ जीवाणु दोनों ही प्रकार के वातावरण में रह सकते हैं. ऐसे जीवाणुओं को विकल्पी कहते हैं.

प्रकाश स्वपोशी जीवाणु

  • ये अनॉक्सी, प्रकाश संश्लेषी जीवाणु छड़ाकार, गोलाकार या कुंडलित होते हैं. 
  • रंग के आधार पर जीवाणु हरे अथवा बैंगनी होते हैं . 
  • वे कार्बनडाई ऑक्साइड के अपचयन के लिए प्रकाश ऊर्जा का उपयोग करते हैं. 
  • लेकिन जीवाणु अपचयित ऊर्जा प्राप्त करने के लिए प्रकाश संश्लेषी यूकैरिऑट अथवा सायनोबैक्टीरिया की तरह पानी को नहीं छोड़ते. 
  • अत: इस प्रकार जीवाणु कोई ऑक्सीजन नहीं बनाते . 
  • इसलिए इस प्रक्रिया को अनॉक्सीजेनिक (जिसमें ऑक्सीजन का उत्पादन न हो) प्रकाश संश्लेषण कहते हैं. 
  • पानी के बजाय ये जीवाणु हाइड्रोजन सल्फाइड, हाइड्रोजन थायोसल्फेट अथवा कुछ कार्बनिक यौगिकों से अपचयित ऊर्जा प्राप्त करते हैं. 
  • उनमें एक वर्णक होता है जिसे जीवाणु क्लोरोफिल कहते हैं, जो पादप क्लोरोफिल से भिन्न होता है. 
  • ये झीलों तथा तालाबों की तलहटी में जीवित रह सकते हैं. जहाँ पर ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम होती है और अपचयित सल्फर अथवा अन्य यौगिक उपलब्ध रहते हैं.

रसायन स्वपोषी जीवाणु

  • रसायन स्वपोषी वे जीव होते हैं जो ए.टी.पी. के रूप में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए अकार्बनिक पदार्थों को आणविक ऑक्सीजन से ऑक्सीकृत करते हैं. 
  • कार्बनिक पदार्थ प्राप्त करने के लिए वे ए.टी.पी. का उपयोग CO2 को अपचयित करने में प्रयोग करते हैं. 
  • विशिष्ट जीवाणु विशिष्ट अकार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीकरण करते हैं. 
  • नाइट्रीफाइंग जीवाणु की एक जाति अमोनिया को ऑक्सीकृत करके नाइट्राइट बना देती है और दूसरी जाति का जीवाणु नाइट्राइट को नाइट्रेट में परिवर्तित कर देता है. 
  • सल्फर को ऑक्सीकृत करने वाले जीवाणु सल्फर को सल्फेट में परिवर्तित कर देते हैं. 
  • आयरन जीवाणु फेरस को फेरिक में परिवर्तित कर देते हैं. 
  • नाइट्रीफाइंग तथा सल्फर को ऑक्सीकृत करने वाले जीवाणु प्रकृति में नाइट्रोजन तथा सल्फर चक्र में भाग लेते हैं.

विषमपोषी जीवाणु

  • इस वर्ग में अनेक प्रकार के मुक्त जीवी सहजीवी अथवा परजीवी जीवाणु आते हैं. 
  • उन्हें ऊर्जा तथा वृद्धि के लिए कार्बन स्रोत के रूप में कम से कम एक कार्बनिक यौगिक की आवश्यकता होती है. 
  • कुछ परजीवियों की वृद्धि के लिए विशेष कार्बनिक यौगिक (वृद्धि कारक) की आवश्यकता हो सकती है जो कि वे स्वयं नहीं बना सकते. 
  • इनमें से कुछ पूर्ण वायुजीवी होते हैं, कुछ अवायुजीवी होते हैं और अन्य पूर्ण विकल्पी वायुजीवी होते हैं. 
  • प्रोकैरिऑट वर्ग में मुक्त जीवी प्रकार के जीवाणु प्रकृति में मुख्य अपघटक होते हैं जैसे यूकैरिऑट में कवक. 

जीवाणुओं का आर्थिक महत्व 

लाभदायक जीवाणु

  1. जीवाणु भूमि की उर्वरता बढ़ाते हैं. राइजोवियम लेग्यूमिनस पौधे की जड़ों से सहजीवी संगठन बनाते हैं जिससे मूल ग्रंथियाँ बनती हैं. ये वातावरण की नाइट्रोजन को अमोनिया में स्थिर कर देते हैं. अमोनिया से ऐमीनों ऐसिड बनता है जिसे पौधे अपने उपयोग में ले लेते हैं. एजेटोबैक्टर नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाला मुक्त जीवाणु है जो मिट्टी को उपजाऊ बनाता है. 
  2. कुछ अवायुजीवों के उपयोग कार्बोहाइड्रेट से किण्वन विधि द्वारा एसिटोन, ब्यूटॉनाल तथा एथनॉल बनाने के लिए कारखानों में भी किया जाता है. 
  3. जीवाणु सड़े-गले, मृत अवशेषों का क्षय करते हैं. 
  4. लैक्टिक ऐसिड जीवाणु दूध में स्थिर लैक्टोज को लैक्टिक ऐसिड में तथा अंतत: दूध को दही में परिवर्तित कर देते हैं.
  5. जीवाणु का उपयोग सिरका बनाने में होता है. 
  6. ये जूट, पटसन और सन को सड़ा देते हैं जिससे रेशा निकलता

औषधि उद्योग में जीवाणुओं का आर्थिक महत्व 

  • मिट्टी में तंतुमयी एक्टीनोमाइसिटीज प्रमुख अपघटक हैं. 
  • इनमें से बहुत से ऐसे रसायनों का उत्पादन करते हैं जो अन्य सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को रोकते हैं. 
  • इस प्रकार ये रसायन भोजन को प्राप्त करने के लिए अन्य सूक्ष्म जीवों में होने वाली स्पर्धा को कम कर सकते हैं. 
  • इन रसायनों को एंटीबायोटिक कहते हैं. 
  • ये रसायन मनुष्यों में जीवाणु द्वारा होने वाले रोगों की रोकथाम में बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं. 
  • कुछ महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक निम्न हैं–
एन्टीबायोटिकजीवाणु जिससे प्राप्त होता है 
स्ट्रेप्टोमाइसिन(Streptomycin)स्ट्रेप्टोमाइसीज ग्रीसकुअस (Streptomyces griescues) 
क्लोरोमाइसीटिन (Chloromycetin) स्ट्रेप्टोमाइसीज वैनिजुएला(S. venezuela) 
ऑरोमाइसिन(Aureomycin)स्ट्रेप्टोमाइसीज ओरियोफेसिएन्स(S. aureofaciens)
नोवोबायेसीन(Novobiocin) स्ट्रेप्टोमाइसीज नीवियस (S. niveus) 
टैरामाइसीन(Terramycin) स्ट्रेप्टोमाइसीज रिमोसस (S. rimosus) 
नाइस्टेटीन(Nystatin) स्ट्रेप्टोमाइसीज नौर्सी (S. noursei) 
इरीथ्रोमाइसीन(Erythromycin) स्ट्रेप्टोमाइसीज इरीथस (S. erythreus) 
टाइरोथ्राइसीन-A(Tyrothrycin-A) बैसीलस ब्रेवीस (Bacillus brevis) 
पालीमाइक्सीन-B(Polymyxin-B) बैसीलस पालीमिक्सा (Bacillus polymixa)
बैसीट्रोसीन(Bacitracin)बैसीलस सबटिलिस (Bacillus subtilis)

हानिकारक जीवाणु

विनाइट्रीकरण (Denitrification)

  • कुछ जीवाणु नाइट्रेट,नाइट्राइट व अमोनियम यौगिकों को स्वतंत्र नाइट्रोजन में तोड़ देते हैं. 
  • जैसे—बैसीलस, थायोबैसिलस, माइकोकोकस आदि . 

भोजन को विषाक्त करना (Food Poisoning)

  • कुछ जीवाणु भोजन को विषाक्त बना देते हैं. 
  • जैसे—स्टेफाइलोकोकस, क्लोस्ट्रिडियम बोटूलिनियम (Clostridium Botulinium).

मनुष्यों में रोग कारक जीवाणु

डिप्थेरिया (Diphtheria)
रोग का नामडिप्थेरिया (Diphtheria)
जीवाणु का नामCorynebacterium diptheriae
संचरणप्रत्यक्ष सम्पर्क तथा छोटी बूंदों (Droplets) एवं भोजन के द्वारा ये जीवाणु श्वसन-तंत्र को संक्रमित करते हैं.
संचरण अवधि (Incubation Period)1 से 7 दिन.
मुख्य लक्षणगले में तकलीफ होना, बुखार होना, उल्टी होना, सांस लेने में कठिनाई होना. 
न्यूमोनिया (Pneumonia)
रोग का नामन्यूमोनिया (Pneumonia)
जीवाणु का नामडिप्लो को कस न्यूमोनी (Diplococcus pneumoniae)
संचरणजीवाणु फेफड़े, श्वसन तंत्र (Respiratory Tract) को संक्रमित करता है.
मुख्य लक्षणठंड लगना, छाती में दर्द होना, जल्दी-जल्दी साँस लेना, पेट में दर्द होना, पिलिया (Jaundice) से ग्रसित होना.
उपचार
तपेदिक या क्षयरोग (Tuberculosis)
रोग का नामतपेदिक या क्षयरोग (Tuberculosis)
जीवाणु का नाममाइकोबेक्टिरियम टयूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis)
संक्रमण विधिप्रत्यक्ष सम्पर्क, भोजन, दूध आदि के द्वारा जीवाणु का संरचण फेफड़ो हड्डी तथा अन्य अंगों तक होना.
मुख्य लक्षणभिन्न-भिन्न अंगों के संक्रमित होने की स्थिति में लक्षण का भिन्न-भिन्न होना. जैसे–कफ, सायंकाल में बुखार, थकान, वजन में हास आदि. X -किरण तस्वीर में फेफड़ों में संक्रमण का दिखाई पड़ना.. 
उपचारआराम, संयमित भोजन, स्ट्रेप्टोमायसिन, सर्जरी आदि .
हैजा (Cholera)
रोग का नामहैजा (Cholera)
जीवाणु का नामविब्रियो कालरी (Vibrio cholerae)
संचरणदूषित भोजन तथा पानी के द्वारा.
संक्रमण अवधिकुछ घंटों से लेकर कुछ दिन.
मुख्य लक्षणउल्टी होना, डायरियाँ होना.
बचावकारी उपायभोजन को गर्म करके खाना, पानी, दूध E lemnos आदि को उबाल कर पीना, वर्ण्य पदार्थों को सावधानी पूर्वक विसर्जित करना, वैक्सिन (Vaccine) का उपयोग अल्पकालीन रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है.
प्लेग (Plague)
रोग का नामप्लेग (Plague)
जीवाणु का नामपाश्चुरेला पेस्टिस (Pasteurella pestis) 
संचरणपिस्सू के काटने से (Flea Bite) अथवा संक्रमित चूहों के सम्पर्क से. चूहों के शरीर पर पलने वाले पिस्सूओं (Fleas) द्वारा चूहों से यह रोग मनुष्य में आ जाता है. 
कोढ़ (Leprosy)
रोग का नामकोढ़ (Leprosy)
जीवाणु का नाममाइोकोबैक्टिरियम लेप्री (Mycobacterium Leprae)
संक्रमणज्यादा समय तक संक्रमित अंग के सम्पर्क में रहना.
मुख्य लक्षणसंक्रमित अंग की त्वचा का सड़ना, संक्रमित अंग का शून्य पड़ जाना, हाथ पैर की अंगुलियों में विकृति उत्पन्न हो जाना, संक्रमित अंगों में फोड़े निकल आना.
उपचारस्ट्रैप्टोमाईसीन (Streptomycin) तथा सल्फोन्स (Sulphones)
टेटनस (Tetanus)
रोग का नामटेटनस (Tetanus)
जीवाणु का नामक्लोििडयम टिटनी (Clostridium Tetani)
संचरणघाव के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष टीका सक्रमण द्वारा .
संक्रमण अवधि सामान्यत: तीन से चार सप्ताह.
मुख्य लक्षणमांस पेशियों में, खासकर गले तथा जबड़े में जोरका खिंचाव, थोरासिक मांस पेशियों (Thorasic Muscles) का लकवाग्रस्त हो जाना. संक्रमण सिर्फ प्रत्यक्ष सम्पर्क के द्वारा होता है.
उपचारटेटनेस के टीके द्वारा.
खांसी (Whooping Cough) 
रोग का नामखांसी (Whooping Cough) 
जीवाणु का नामहीमोफिलस पटुंसिस (Hemophilous pertussis)
संचरणहवा के द्वारा.
मुख्य लक्षणशुरू में सिर्फ रात्रि काल में ही खांसी होती है परन्तु फिर दिन में भी होने लगती है. यह रोग अधिकांशतः शिशुओं एवं बच्चों को ही होता है. खांसते-खांसते दम फूलने लगता है तथा सांस लेने के लिए भी खांसी नहीं रूकती. 
जीवाणु कृत पेचिश (Bacillary Dysentery)
रोग का नामजीवाणु कृत पेचिश (Bacillary Dysentery)
जीवाणु का नामशिगेला डिसेन्ट्री(Shingella dysenteriae) 
संचरणमक्खियों, भोजन, मल, जल के द्वारा.
संक्रमण अवधि 1 से 4 दिन. 
मुख्य लक्षणपेट में अत्यधिक दर्द होना, बुखार हो जाना, मल के साथ खून का आना तथा अतिसार (Diarhoea) हो जाना.
उपचारएन्टीबोयोटिक्स तथा तरल पदार्थ (Liquids) का उपयोग करना. 
सूजाक (Gonorrhoea)
रोग का नामसूजाक (Gonorrhoea)
जीवाणु का नाम(Neisseria gonorrhoeae)
संचरणसंभोग (Sexual Intercourse) के द्वारा.
संक्रमण अवधि 2 से 8 दिन.
मुख्य लक्षणयूरेथ्रा (Urethra) का लाल हो जाना, फूल जाना तथा उससे पीव आना तथा बार-बार तथा जलनयुक्त पेशाब आना.
उपचारपेनसिलिन (Penicillin), टैट्रासाइक्लिन (Tetracycline), स्पेक्टिनोमायसिन (Spectinomycin) आदि का प्रयोग.
सिफलिस (Syphilis)
रोग का नामसिफलिस (Syphilis)
जीवाणु का नामट्रैपोनेमा पेलिडियम (Treponema pollidum)
संचरणमुख्यतः संभोग के द्वारा.
मुख्य लक्षणGenitalia पर कड़ा पीड़ा रहित फोड़े का होना, शरीर के किसी भाग के ऊतकों का नष्ट होना, चमड़े पर फुसियों का होना.
टायफाइड (Typhoid)
रोग का नामटायफाइड (Typhoid)
जीवाणु का नामइबर्थेला टाइफोसा (Eberthalla typhosq)
संचरणदूषित भेजन व जल तथा मक्खियों द्वारा.
संक्रमण अवधि 10 से 14 दिन .
मुख्य लक्षणबुखार होना, नाड़ी (Pulse) की गति का धीमा पड़ जाना, गुलाबी रंग के चकत्ते (Rash) का होना .

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