- जैव मंडल के पादप किंगडम ( Plant Kingdom ) में बहुकोशिकीय प्रकाश संश्लेषी उत्पादक होते हैं.
- वे मुख्यत: जलीय, समुद्री लाल, भूरे व हरे शैवाल तथा स्थलीय पौधे होते हैं.
- स्थलीय पौधों के मुख्यतः दो वर्ग होते हैं:
- ब्रायोफाइट (Bryophytes) में मांस तथा लिवरवर्ट आते हैं जो नम स्थानों पर पाए जाते हैं तथा
- ट्रेकिओफाइट (Tracheophytes) (ट्रेकिया = वायुनली, जो संवहन मंडलों तथा जंतुओं में वायुनली के समक्ष होती हैं, फाइटोन = पौधे) अथवा संवहन पौधे.
- शैवाल का विस्तृत अध्ययन पिछले भाग में किया गया है. इस भाग में अन्य पौधों, उनके प्रकार तथा जीव-सम्बन्धी सिद्धान्तों का अध्ययन किया जा रहा है.
ब्रायोफाइटा (Bryophyta)
- ब्रायोफाइटा में मॉस (Moss) तथा लिवरवर्ट (Liverworts) आते हैं .
- ब्रायोफाइटा, एम्ब्रियोफाइटा का सबसे सरल व साधारण रचना वाले आदिम पौधों का समूह है.
- ब्रायोफाइटा समूह के पौधे आकार में छोटे होते हैं.
- ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि ब्रायोफाइटा वह प्रथम स्थलीय पौधे हैं जो सम्भवतः शैवाल से विकसित हुए हैं.
- ये प्राय: नम व छायादार स्थानों में पाये जाते हैं; जैसे-पहाड़ी चट्टानों, गीली व पुरानी दीवारों, वृक्षों की छाल, गीली व दलदली भूमि आदि .
- वर्षा ऋतु में तो ब्रायोफाइटा फाइलम (Bryophyta Phylum) के पौधे भूमि पर हरे झुक्कों के रूप में दूर-दूर तक उगते हुए दिखाई देते हैं जिससे पूरी सतह हरी मखमल के समान प्रतीत होती है.
- मॉस के पौधे की संरचना एक सीधे तने की भाँति होती है जिस पर पत्तियों की छोटीछोटी संरचनाएं कुंडलित रूप में सजी रहती हैं.
- मॉस अवस्तर से मूलाभ द्वारा जुड़ी रहती है.
- मूलाभ की संरचना जड़ की तरह होती है.
- लिवरवर्ट में चपटा, हरा पालि अथवा कांटे वाला थैलस होता है जैसे-रिक्सिया. जो पृथ्वी से पतले मूलाभों द्वारा जुड़ा रहता है.
- ब्रायोफाइटा में पानी तथा लवण के संवहन के लिए संवहन ऊतक (Vascular Tissue) नहीं होते हैं.
- इनमें पदार्थों का संवहन एक कोशिका से दूसरी कोशिका में होता है.
- ब्रायोफाइटा में वास्तविक जड़ अनुपस्थित होने के कारण उनकी-कोशिकाएँ सीधे ही पृथ्वी से पानी का संवहन करती हैं इसलिए ये केवल नम स्थानों (Moist Places) पर ही पाए जाते हैं.
- मॉस मिट्टी को बाँधे रहते हैं और मृदा अपरदन को रोकते हैं.
- स्पेग्नम नामक मांस बहुत ही अधिक मात्रा में पानी अवशोषित करता है (अपने वजन का 18 गुना).
- इसका उपयोग कटे हुए पौधों के अंगों को नम रखने में किया जाता है.
- पीट कोयले की तरह बहुमूल्य ईंधन मॉस तथा अन्य पौधे हजारों वर्षों तक जमीन में दबे रहे.
संवहनी पौधे (Vascular Plants)
- संवहनी पौधे मुख्यत: बहुत अधिक और प्रभावी होते हैं ये सबसे ऊँचे तथा दीर्घतम आयु वाले पौधे हैं जो सामान्यतः 100 मीटर ऊँचे तथा लगभग 6,000 वर्ष की आयु के होते हैं.
- प्रकृति में असंख्य स्थलीय जंतु तथा अधिकांश कवक अपने अस्तित्व के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संवहनी पौधों पर निर्भर हैं.
- संवहनी पौधों, स्थलीय जंतुओं तथा उच्चवर्गीय कवकों में आपसी प्रभाव के कारण वर्तमान में स्थित बहुकोशिकीय जीवन में विपुल विविधता है.
- मनुष्य के लिए आर्थिक दृष्टि से वनस्पतिक उत्पादन पौधों से ही प्राप्त होता है.
- संवहनी पौधों के प्रमुख लक्षण-जड़, तना तथा पत्तियाँ हैं.
- परिभाषा के अनुसार इन अंगों में संवहनी ऊतक-जाइलम तथा फ्लोएम होते हैं.
- अत: हम जानते हैं कि ब्रायोफाइटा के अंगों को “पत्ती की तरह” तथा “तने की तरह” कहा जाता है, इसका कारण यह है कि इनमें संवहन ऊतक नहीं होते.
- संवहनी पौधों के तीन वर्ग होते हैं-
- फर्न (Ferns) (बीज विहीन संवहनी पौधे),
- जिम्नोस्पर्म (Gymnosperms) (पुष्पविहीन बीज वाले पौधे) तथा
- एंजियोस्पर्म (Angiosperms) (पुष्पीपादप जिसमें फल तथा बीज लगते हैं).
फर्न (Ferns)
- फर्न अथवा टैरिडोफाइट (टैरिस = फर्न; फाइटोन = पौधे) आदिम संवहनी पौधों में सबसे बड़ा जीवित वर्ग है.
- इसमें 10,000 स्पीशीज हैं. यद्यपि ये मुख्यत: नम उष्ण स्थानों पर मिलता है.
- लेकिन बहुत से फर्न सब-आकर्टिक परिस्थितियों में भी पाए जाते है.
- ब्रायोफाइटा की तरह फर्न में भी पीढी एकांतरण होता है इसके जीवन चक्र में बहुकोशिकीय बीजाणुभिद, युग्मकोभिद् अवस्था से एकांतरण करता है.
- फर्न का पौधा स्पोरोफाइट (बीजाणुउभिद) होता है और स्पोर या बीजाणुओं द्वारा अलैंगिक जनन करता है.
- स्पोरोफाइट तना, जड़ व पत्तियों में विभक्त होता है.
- फर्न की पत्तियाँ (Leaves) हरी व आकार में बड़ी (1 फुट से 3 फुट) होती हैं और पौधे का मुख्य भाग बनाती हैं.
- पत्तियाँ द्विपृष्ठाधारी (Dorsoventral), सवृन्त (Petiolate) तथा द्विपिच्छकी संयुक्त (Bipinnotely Compound) होती हैं.
- शिशु अवस्था में पत्तियाँ शीर्ष से नीचे की ओर घड़ी के स्प्रिंग की भाँति कुण्डलित रहती हैं.
- यह फर्न की विशेषता है और इसे कुण्डलित पर्णविन्यास (Circinate Varnation) कहते हैं.
- प्रत्येक पत्ती एक लम्बे वृन्त द्वारा सीधे राइजोम (प्रकन्द) से जुड़ी रहती है.
- पत्ती पर मध्य शिरा रेकिस (Rachis) कहलाती है.
- रेकिस पर दोनों ओर पिच्छकों (Pinnae) की कतारें होती हैं जो पुनः विभाजित होकर पिच्छिकाएँ (Pinnules) बनाती हैं.
- ऐसी पत्ती को द्विपिच्छकी संयुक्त पत्ती कहते हैं.
- पुरानी पत्तियों के आधार पर अपस्थानिक कलिकायें होती हैं जो अलग होने पर फर्न के नये पौधे बनाती हैं.
- पिच्छिकाओं की मध्यशिरा से अनेक पार्श्व शिराएँ निकलती हैं जो किनारों पर जाकर द्विशाखित हो जाती हैं.
- टेरिस में पत्तियाँ पिच्छाकार संयुक्त (Pinnately Compound) होती हैं और नेफ्रोलेपिस में ये लम्बी, संकरी व पिच्छाकार होती हैं.
- राइजोम की निचली सतह से अपस्थानिक रेशेदार जड़ें निकलती हैं.
- ये छोटी व धागों के समान होती हैं.
- पुराने राइजोम में ये इतनी सघन होती हैं कि उसे चारों ओर से ढक लेती हैं.
- फर्न का तना भूमिगत व बहुवर्षी होता है और राइजोपस या प्रकन्द कहलाता है.
- यह लगभग 8 इंच लम्बा होता है और भूमि में तिरछा उगता है जिससे इसका केवल अगला सिरा भूमि में से कुछ बाहर निकला रहता है.
- राइजोम (प्रकन्द) अनियमित आकृति का होता है और इसकी सतह मृत-पत्तियों के चिरलग्न पर्णाधारों (Leaf Bases) से ढकी रहती है जिससे यह अधिक मोटा प्रतीत होता है.
- फर्न का तना वायवीय शाखायें धारण नहीं करता.
- इसकी ऊपरी सतह से पत्तियाँ तथा निचली सतह से अपस्थानिक जड़े विकसित होती हैं.
- जैसे-जैसे तना वृद्धि करता चला जाता है इसका पिछला भाग नष्ट हो जाता है.
जिम्नोस्पर्म (Gymnosperms)
- जिम्नोस्पर्म पौधे लम्बे, काष्ठीय व वर्षानुवर्षी वृक्ष या शाक होते हैं.
- सिकोया (Sequoia) संसार में सबसे लम्बे वृक्ष हैं. यह 120 मी. तक ऊँचे होते हैं.
- समतल स्थानों पर जिम्नोस्पर्म बहुत कम होते हैं.
- स्थानीय पौधा जो गरम जलवायु में उगता है वह है साइकेड.
- साइकेड जिम्नोस्पर्म का एक छोटा सा वर्ग है, जिसकी पत्तियाँ खजूर के पेड़ की तरह होती हैं.
- वैसे पत्तियाँ दो प्रकार की होती हैं- शुल्क पत्र व सत्य पत्र .
- सत्य पत्र आकार में काफी बड़े होते हैं, जैसे साइकस में .
- सत्य पत्र तने पर सर्पिलाकार क्रम में विन्यासित होते हैं और इन पर क्यूटिकल का मोटा आवरण होता है.
- पत्तियाँ मरुद्भिद लक्षण प्रदर्शित करती हैं.
- इनमें पुष्प एकलिंगी होते हैं.
- नर एवं स्त्री पुष्प अलग-अलग पौधों पर विकसित होते हैं.
- ये एक लम्बे अक्ष के चारों ओर सर्पिलाकार क्रम में विन्यसित होकर शंकु (Cones) बनाते हैं.
- नर शंकु में पुंकेसर या लघुबीजाणुपर्ण (Microsporophylls) तथा स्त्री शंकु में अण्डप (Carpels) या गुरूबीजाणु (Megasporophylls) होते हैं.
- साइकस में गुरूबीजाणु स्त्री शंकु बनाकर तने के अग्रक पर दूर-दूर सर्पिलाकार क्रम में विन्यसित होते हैं.
- प्रत्येक लघुबीजाणुपूर्ण की सतह पर अनेक लघुबीजाणुधानियाँ या परागकोष (Pollen Sacs) होते हैं.
- इनमें परागकण (Pollen Grains) या लघुबीजाणु (Microspores) विकसित होते हैं.
- गुरूबीजाणु बीजांड (Ovules) या गुरूबीजाणुधानियाँ (Megasporangia) धारण करते हैं.
- प्रत्येक बीजाण्ड में 3-4 स्त्रीधानियाँ (Archegonia) विकसित होती हैं.
- निषेचन पराग-नलिका (Pollen Tube) द्वारा होता है.
- साइकस व गिंकों में पुमणु पक्ष्माभिकी (Ciliated) होते हैं.
- निषिक्तांड का परिवर्धन मीरोब्लास्टिक (Meroblastic) होता है क्योंकि निषिक्तांड का केवल निचला भाग भ्रूण के विकास में भाग लेता है.
- स्त्री गैमीटोफाइट पर अनेक स्त्रीधानियों का विकास होने के कारण जिम्नोस्पर्म में बहुभ्रूणता देखने को मिलती है.
- इसके फलस्वरूप बीजांड में अनेक भ्रूण बनते हैं किन्तु इनमें से केवल एक भ्रूण जीवित रहता है तथा शेष नष्ट हो जाते हैं.
- भ्रूण प्राय: एक लम्बे निलम्बक द्वारा भ्रूणपोष में धंसा रहता है.
- निषेचन के बाद बीजाण्ड परिपक्व होकर बीज बनाता है तथा इसके अध्यावरण बीज चोल या टेस्टा Seed Coat or Testa) बनाते हैं.
- जिम्नोस्पर्म में अण्डाशय नहीं होता, अत: इनमें वास्तविक फलों का अभाव होता है.
- शंक वृक्ष प्रभावी जिम्नोस्पर्म हैं जिसकी पत्तियाँ शुष्क तथा शीत जलवायु के अनुकूल होती हैं.
- ये सूई की तरह (जैसे–चीड), छोटी, उपटी तथा लचीली (आरू के रियाफ) अथवा शल्क की तरह (जैसे थूला) होती हैं.
- उनमें एक मोटी क्यूटीकल होती है और गर्त स्टोमैटा होते हैं.
- इन गुणों के कारण वाष्पोत्सर्जन होने वाले पानी की मात्रा में कमी हो जाती है.
- शंकु-वृक्ष में लंबे तथा छोटे दो प्रकार के प्ररोह होते हैं.
- लंबे की वद्धि असीमित होती है. छोटे प्ररोह की वृद्धि सीमित होती है.
- चीड़ के छोटे प्ररोह में 1 से 5 तक सूई आकार की पत्तियाँ होती हैं.
- पत्तियों की यह संख्या स्पीशीज पर निर्भर करती है.
- शंकु में चपटी पत्ती की तरह की संरचनाएं, बीजाणु पर्ण होते हैं, जो स्तंभ पर घूमकर लगे रहते हैं बीजाणुपर्ण पर पहले बीजांड तथा उसके बाद बीज बनते हैं.
- शंकु वृक्षों का उपयोग मकान बनाने, पैकिंग करने, प्लाईवुड, पार्टीकल बोर्ड तथा कागज के कारखानों के लिए किया जाता हैं.
- चीड के रेजिन से तारपीन का तेल तथा रेजिन बनाया जाता है.
- एफिडरा से प्राप्त एफिडरिन दमा तथा सांस के अन्य रोगों में बहुत लाभदायक है.
एंजियोस्पर्म
- पुष्पी पादप मनुष्यों के लिए सबसे महत्वपूर्ण पादप हैं.
- एंजियोस्पर्म का अर्थ हैं “ढके हुए बीज” .
- इसमें बीज फूलों में स्थित अंडाशय में बनता है.
- एंजियोस्पर्म की 250,000 स्पीशीज हैं और वे पादप विकास में सर्वोपरि है.
- एंजियोस्पर्म एक वर्षीय, दो वर्षीय अथवा बहुवर्षीय होते हैं.
- ये कुछ वर्षों तक जीवित रहते हैं और उनमें असीमित वृद्धि होती है.
- उनका माप मि.मी. (वुल्फिया)से लेकर 100 मीटर (यूकैलिपट्स) तक होता है.
- एंजियोस्पर्म की जड़ें तथा पत्तियाँ विभिन्न कार्यों के लिए रूपान्तरित होती हैं .
- वे शुष्क अवास (मरुद्भिद) जलीय अवासी (जलोद्भिद्) अथवा विविध माध्यमिक अवस्थाओं (समोदभिद्) में उगने के अनुकूल होते हैं.
- कुछ की उत्पत्ति विषमपोषी परजीवी (अमरबेल, स्ट्रींगा) के रूप में हुई है.
- कुछ पौधों की पत्तियाँ कीट भक्षी कीटों तथा अन्य छोटे-छोटे जन्तुओं को पकड़ने के लिए अनुकूलित होती हैं. जैसे- घटपर्णी .
एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री (Monocotyledons and Dicotyledons)
- एंजियोस्पर्मी एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री वर्ग में विभाजित होता है.
- इनका नामकरण बीज, पत्रों अथवा भ्रूण अवस्था तथा प्राय: पत्ती की संरचना के आधार पर करते हैं.
- एकबीजपत्री में प्रायः एक बीजपत्र होता है और द्विबीजपत्री में दो बीजपत्र होते हैं.
- जंतुओं की तरह बहुत से पौधों का जीवन काल नहीं होता है.
- इनमें सालोंसाल नई जड़े, प्ररोह, पत्तियाँ, फूल तथा फल, लकड़ी तथा छाल बनती रहती हैं.
- जिसके कारण इनके स्तंभ तथा वृक्ष की पुरानी शाखाओं का व्यास बढ़ जाता है और पुरानी छाल उतर जाती है.
- द्विबीजपत्री जैसेआम तथा अमरूद, प्रत्येक वर्ष अपने आस-पास के स्थानों पर वृक्षों की एक नई रेखा बना देते हैं.
- एकबीजपत्री जैसे नारियल वृक्ष कुछ भिन्न होते हैं जो ऊँचाई में वृद्धि करते हैं, जिस पर लगातार नई-नई पत्तियाँ (फूल तथा फल) लगते रहते हैं.
- लेकिन इन वृक्षों के स्तंभ के व्यास में वृद्धि नहीं होती है.
- एकबीजपत्री पौधों में फूलों के तीन भाग होते हैं- बाह्यदल, पंखुड़ी, पुंकेसर व स्त्रीकेसर.
- इनकी पत्तियाँ प्राय: समानांतर शिरा विन्यास में होती हैं.
- एकबीजपत्र पौधों में तना संवहन बंडल के रूप में फैला हुआ होता है तथा मूलतंत्र केवल अपस्थानिक होता है.
- सामान्यत: द्विबीजपत्री पौधों में फूलों के चार या पाँच भाग होते हैं.
- लेकिन कभी-कभी तीन भाग भी देखने को मिल जाते हैं.
- इन पौधों की पत्तियाँ बहुधा जालिका शिरा विन्यास के रूप में होती हैं व तना संवहन बंडल (एक घेरे के मध्य में पिथ) की भाँति होती है.
- द्विबीजपत्री की लगभग 200,000 स्पीशीज तथा एक बीज पत्री की 50,000 स्पीशीज ज्ञात हैं एकबीजपत्री पौधे मुख्यत: घास, बांस, गन्ना, अनाज, केला, खजूर, लिली तथा आक्रिड जो महत्वपूर्ण उपयोगी पौधे हैं.
- द्विबीजपत्री में लगभग सभी काष्ठीय वृक्ष, दालें तथा अधिकांश फल, सब्जियां, मसाले, पेय पदार्थ देने वाली फसलें तथा सजावटी पौधे आते हैं.