पृथ्वी की उत्पत्ति वैज्ञानिक संकल्पना (Origin of Earth Scientific Concept)–इसके अन्दर कास्तेद बफन का नाम सबसे पहले आता है जिन्होंने 1749 में इस सम्बन्ध में अपना मत दिया था.
इसके बाद अनेक विद्वानों ने अपने-अपने मत दिए, जिससे आज तक अनेक परिकल्पनाओं तथा सिद्धान्तों का प्रतिपादन हो चुका है, परन्तु किसी भी मत को पूर्णरूप से मान्यता नहीं मिल सकी है.
ग्रहों की उत्पत्ति में भाग लेने वाले तारों की संख्या के आधार पर वैज्ञानिक संकल्पनाओं को दो वर्गों में बांटा जाता है.
- पहला है अद्वैतवादी संकल्पना (Monistic Concept) और
- दूसरा है द्वैतवादी (Dualistic Concept)
अद्वैतवादी संकल्पना (Monistic Concept)
- इस बहुमान्य परिकल्पना के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति एक तारे के निर्माण के परिणामस्वरूप हुई है.
- इस दिशा में सर्वप्रथम प्रयास फ्रान्सीसी विद्वान कास्ते द बफन ने 1749 में किया था जिसका नाम पुच्छलतारा परिकल्पना (Cornet Hypothesis) रखा था.
- इनके बाद इमैनुएल केन्ट (Immanual Kant) ने वायव्य राशि परिकल्पना (Gaseous Hypothesis) का 1755 में प्रतिपादन किया जिसका आधार न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम थे.
- लाप्लास ने अपना मत सन् 1796 में व्यक्त किया जिसे निहारिका परिकल्पना के नाम से जाना गया.
- इसके बाद 1919 में लॉकियर (Lockier) ने उल्कापिण्ड परिकल्पना (Meteoric Hypothesis) प्रस्तुत की.
- इन सभी विद्वानों द्वारा दी गई परिकल्पनाओं का आधार सिर्फ एक तारे की उपस्थिति थी.
- अन्तर सिर्फ इनके परिकल्पना को प्रस्तुत करने में था.
- लाप्लास के अनुसार निहारिका से केवल एक ही छल्ला बाहर निकला तथा बाद में यह छल्ला नौ छल्लों में विभाजित हो गया जबकि कार के अनुसार निहारिका से ही नो छल्ले बाहर निकले और प्रत्येक छल्ला एक दूसरे से दूर हटता गया.
- लगभग 4 अरब 60 करोड़ वर्ष पहले अंतरिक्ष में धूल और गैसों का एक विशालकाय बादल भंवरदार गति से घूम रहा था.
- इस धूल और गैसों के बादल को नेबुला के नाम से भी जाना जाता है.
- यह नेबुला घूमते-घूमते अपने ही गुरुत्व के प्रभाव से धीरे-धीरे सिकुड़ने लगा .
- जैसे-जैसे यह सिकुड़ता गया वैसे-वैसे इसकी आकृति चपटी डिस्क के समान होती गई.
भंवरदार गति को भौतिक राशि के द्वारा नापा जाता है. इसे कोणीय संवेग कहते हैं. यह वस्तु के आकार तथा उसकी घूर्णन की गति पर आधारित होता है.
- जैसे-जैसे गैसों और धूल का यह बादल या नेबुला सिकुड़कर ओटा होने लगा वैसे-वैसे कोणीय संवेग का संरक्षण करने के लिए इसकी घूर्णन गति तीव्रतर होती गई.
- घूर्णन की तेज गति इस नेबुला को एकाकार नहीं रख पाई और इसके अनेक छोटे-छोटे खंड बन गए.
- नेबुला का केन्द्रीय भाग काफी धीरे-धीरे घूमता हुआ, अन्ततोगत्वा नए तारे सूर्य के रूप में बदल गया.
- तारे का केन्द्रीय भाग तापनाभिकीय अभिक्रिया को प्रारम्भ करने के लिए पर्याप्त गर्म था.
- नेबुला के कोणीय संवेग का अधिकांश भाग छोटे खंडों में बचा हुआ था. इन खंडों से ग्रहों का निर्माण हुआ .
- प्रत्येक खंड और अधिक संकुचित होता गया. इस प्रक्रिया में उनका केन्द्रीय भाग भी गर्म होता गया.
धीरे-धीरे धूल के भारी कण घूमती हुई डिस्क के केन्द्र की ओर जमा होने लगे तथा गैस बाहर की ओर रह गई. इसलिए आज सौर परिवार के बाह्य ग्रह गैसों से बने हल्के विशालकाय पिंड हैं जबकि इसके विपरीत आंतरिक ग्रह शैल निर्मित और भारी हैं.
इस प्रकार नेबुला से एक-एक करके नौ ग्रह बन गए और पृथ्वी इन ग्रहों में से एक है.
द्वैतवादी संकल्पना (Binary Concept) पृथ्वी की उत्पत्ति वैज्ञानिक संकल्पना
- इस विचारधारा के अनुसार ग्रहों की रचना दो तारों के संयोग से मानी गयी है.
- इसी वजह से इस संकल्पना को Bi-Parental Concept भी कहते हैं.
- इस परिकल्पना के समर्थकों में बफन का नाम सबसे आगे है जिन्होंने 1749 में पुच्छलतारा परिकल्पना (Comet Hypothesis) दी थी.
- इनके बाद इमैनुएल केन्ट (Immanual Kant) ने वायव्य राशि परिकल्पना (Gaseous Hypothesis) 1755 में दी थी, फिर लाप्लास (Laplas) ने 1796 में निहारिका परिकल्पना (Nebular Hypothesis) दी और 1919 में लॉकियर (Lockicr) ने उल्कापिंड परिकल्पना (Meteoric Hypothesis) दी.
- वैतारक परिकल्पनाओं (Binary Star Hypothesis) में ग्रहों और सूर्य का जन्म दो तारों के योगदान से माना जाता है. इसके प्रमुख समर्थकों में टी.सी.चैम्बरलिन (T.C.Chamberlin) का नाम अग्रणी है जिन्होंने 1905 में ग्रहाणु परिकल्पना (Planetesimal Hypothesis) दी थी.
- इसके बाद जेम्स जिन्स ने ज्वारीय परिकल्पना का 1919 में प्रतिपादन किया और विखण्डन का सिद्धान्त (The Fission Theory) का रॉसजन ने प्रतिपादन किया था.
- 1944 में डा. वॉन वीजसैकर ने नीहारिका मेघ सिद्धान्त (The Nebular Cloud Theory) को जन्म दिया जिसे अन्तरिक्ष धूलीय हार परिकल्पना (Necklace of Space dust Hypothesis) के नाम से भी जाना जाता है.
- इसके बाद रूसी वैज्ञानिक ऑटो शिमड ने 143 में अन्तरतारक धूलि परिकल्पना (Inter-Steller Dust Hypothesis) का प्रतिपादन किया .
इसके बाद घूर्णन एवं ज्वारीय परिकल्पना (Rotational and Tidal Hypothesis) को रॉसन के द्वारा जन्म दिया गया और आखिर में 1947 में इ.म.ड्रोवी शेवस्की ने बृहस्पति-सूर्य द्वैतारक परिकल्पना (Jupiter-Sun Binary System Hypothesis) का प्रतिपादन किया. इन सभी विद्वानों में चैम्बरलिन की ग्रहाणु परिकल्प (Planetesimal Hypothesis of Chamberlin) बहुत महत्वपूर्ण है.
- चैम्बरलिन के अनुसार प्रारम्भ में ब्रह्माण्ड में दो विशाल तारे थे.
- एक सूर्य था और दूसरा उसका साथी विशाल तारा .
- ब्रह्माण्ड में घूमते हुए इस सूर्य तारे के पास एक विशालकाय तारा पहुँच गया.
- इस प्रकार पास आते हुए तारे की आकर्षण शक्ति के कारण सूर्य के धरातल से छोटे-छोटे कण अलग हो गए .
- प्रारम्भ में मौलिक अवस्था में ये कण धूलिकणों के रूप में थे.
- इन बिखरे हुए कणों को ग्रहाणु अथवा ‘प्लानेटिसिमल‘ कहा जाता है.
- बिखरे हुए ग्रहाणुओं में कुछ ग्रहाणु अपेक्षाकृत बड़े आकार वाले थे और बड़े ग्रहाणु भावी ग्रहों के निर्माण के लिए केन्द्र भाग बने.
- इस प्रकार बड़े ग्रहाणुओं के चारों तरफ के छोटे-छोटे ग्रहाणुओं ने उनसे मिलकर बृहद् रूप धारण करना प्रारम्भ कर दिया.
इस तरह बहुत सारे ग्रहाणुओं ने सम्मिलित होकर बड़े आकार में परिवर्तित होकर ग्रहों का रूप धारण कर लिया जिसमें से पृथ्वी एक थी.
अभी भी ये सारी परिकल्पनाएं सर्वमान्य प्रमाणों के अभाव में कामयाबी प्राप्त नहीं कर पाई हैं क्योंकि इनके प्रतिपादित होते ही इनका खण्डन होना शुरू हो जाता था और इस प्रक्रिया में नए सिद्धान्तों का जन्म हो जाता था.
पृथ्वी की उत्पत्ति वैज्ञानिक संकल्पना (Origin of Earth Scientific Concept in Hindi)