फ्रांसीसी गवर्नर जनरल डूप्ले (FRENCH GOVERNOR GENERAL DUPLEIX) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
जीवन परिचय (Life Introduction)
- डुप्ले का जन्म 1697 में हुआ था.
- उसका पूरा नाम जोजेफ फ्रांसीस डुप्ले था.
- वह फ्रांसीसी इंडिया कम्पनी के डायरेक्टर जनरल का पुत्र था.
- उसके पिता के प्रभाव के कारण उसे 1720 में पांडिचेरी में एक उच्च अधिकारी के रूप में नियुक्त कर दिया गया.
- अपनी नियुक्ति के बाद डूप्ले ने निजी व्यापार के द्वारा काफी धन जमा किया.
- उल्लेखनीय है कि उस समय निजी व्यापार की अनुमति थी.
- 1726 में कुछ आरोपों एवं सन्देहों के कारण डूप्ले को उक्त पद से निलम्बित कर दिया गया.
- किन्तु ये आरोप निराधार साबित हुए तथा डूप्ले को सम्मान सहित पुनः बहाल कर दिया गया.
- 1730 में डूप्ले को चन्द्रनगर का गवर्नर नियुक्त किया गया.
- 1741 में उसे फ्रांसीसी बस्तियों का निदेशक नियुक्त किया गया.
- इस पद पर डूप्ले ने 1754 तक कार्य किया.
- दक्कन के सूबेदार मुजफ्फर जंग ने 1750 में डूप्ले को कृष्णा नदी तथा कन्याकुमारी के बीच के समस्त प्रदेश का नवाब नियुक्त किया.
डुप्ले एक प्रशासक के रूप में (Dupleix, as an Administrator)
- चन्द्रनगर के प्रशासक (गवर्नर) के रूप में अपनी नियुक्ति के बाद डूप्ले ने अपनी प्रशासनिक क्षमता का परिचय दिया.
- उसने व्यापार के महत्व को समझते हुए चन्द्रनगर में व्यापार को प्रोत्साहित किया.
- उसने व्यापार में स्वयं भी पूंजी लगाई तथा अन्य लोगों को भी प्रेरित किया.
- फारस की खाड़ी, चीन तथा तिब्बत के साथ उसने व्यापारिक संबंध स्थापित किए.
- इस प्रकार शीघ्र ही चन्द्रनगर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र बन गया.
- चन्द्रनगर में डूप्ले की असाधारण सफलता को देखते हुए फ्रांसीसी इंडिया कम्पनी के निदेशक मंडल ने उसे पांडिचेरी का गवर्नर जनरल नियुक्त कर दिया.
- अपनी नियुक्ति के बाद डुप्ले ने देखा कि मराठों के आक्रमण के भय के कारण पांडिचेरी की सुख-समृद्धि में वृद्धि नहीं हो रही है.
- पांडिचेरी की किला बन्दी भी निराशाजनक थी.
- आंग्ल-फ्रांसीसी युद्ध की संभावना भी प्रबल थी.
- किन्तु दूसरी ओर फ्रांसीसी इंडिया कम्पनी के निदेशक मंडल को उत्तरी अमेरिका की चिन्ता अधिक थी.
- इस कारण उन्होंने आदेश दे रखा था कि कम से कम व्यय किया जाए तथा अनावश्यक किला बन्दी न की जाए.
- किन्तु डुप्ले ने निदेशकों के आदेश की अवहेलना करते हुए पांडिचेरी में सुदृढ़ किला बन्दी आरंभ कर दी यहां तक कि उसने इस कार्य में अपना निजी धन भी लगा दिया.
- पांडिचेरी की किला बन्दी के सुपरिणाम जब सामने आए तो आदेश की अवहेलना के लिए डूप्ले की निंदा नहीं वरन् प्रशंसा की गई.
डुप्ले एक कूटनीतिज्ञ के रूप में (Dupleix as a Diplomat)
- कर्नाटक के प्रथम दो युद्ध डूप्ले की सफल कूटनीति के दो प्रमुख उदाहरण थे.
- प्रथम कर्नाटक युद्ध के दौरान वह कर्नाटक के नवाब से यह आदेश जारी करवाने में सफल रहा कि नवाब अंग्रेजों को अपने क्षेत्र में युद्ध करने की अनुमति नहीं देगा.
- कुछ समय बाद जब वह मद्रास को जीतने की स्थिति में था तो उसने नवाब को यह झांसा देने में सफलता प्राप्त की कि वह मद्रास को जीत कर नवाब को सौंप देगा.
- मद्रास को जीतने के बाद उसने मद्रास को नवाब को देने से इन्कार कर दिया और 1746 में सेन्ट टॉम के युद्ध में नवाब को पराजित कर दिया.
- 1748 में उसने अपने कूटनीतिक चातुर्य से दक्कन तथा कर्नाटक के सिंहासन पर अपने समर्थकों (क्रमश: मुजफ्फरजंग और चन्दा साहिब) को बैठाने में सफलता प्राप्त की.
डूप्ले एक नेता के रूप में (Dupleix as a Leader)
- डूप्ले एक महान कूटनीतिज्ञ होते हुए भी असफल क्यों रहा? यह एक विचारणीय प्रश्न है.
- वास्तव में डूप्ले एक सफल अभियान की योजना तो बना सकता था किन्तु युद्ध में स्वयं कार्यकुशल नेता के रूप में कार्य नहीं कर सकता था नेता के रूप में वह लॉरेन्स, क्लाइव अथवा डाल्टन से कम था.
डुप्ले को वापस बुलाना (Recall of Dupleix)
- त्रिचनापली में फ्रांसीसियों की हार के बाद डूप्ले के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया.
- त्रिचनापली की घेराबन्दी में अपार धन का व्यय हुआ था.
- अत: फ्रांसीसी सरकार ने डूप्ले को वापस बुला लिया.
- किन्तु फ्रांसीसी सरकार को यह कृत्य नि:सन्देह फ्रांसीसियों के लिए घातक सिद्ध हुआ.
- डूप्ले का उत्तराधिकारी गाडेह, डूप्ले की नीतियों को पूर्णरूपेण बदल नहीं सका.
- उसमें डूप्ले जैसा चातुर्य नहीं था.
- वह फ्रांसीसियों के हितों की रक्षा नहीं कर सका.
- इसके अलावा डुप्ले की वापसी के आदेश को फ्रांसीसियों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जाएगा क्योंकि यह उस समय जारी किया गया जब तंजोर और मैसूर के राजा तथा मराठे आदि सभी अंग्रेजों का साथ छोड़ चुके थे और फ्रांसीसियों को सफलता मिलने ही वाली थी.
- मालसेन के मत में, यदि डूप्ले दो वर्ष और भारत में रह जाता तो बंगाल का धन अंग्रेजों के स्थान पर फ्रांसीसियों की गोद में जा गिरता.
- कुल मिलाकर यह कहना होगा कि डूप्ले का भारत के इतिहास में विशेष स्थान है.
- उसने अपनी असाधारण दूरदर्शिता से एक ऐसी योजना बनाई जिसके कारण अन्तत: यूरोपीय लोग भारत पर विजय प्राप्त करने में सफल हुए.
- उसने ही पहली बार वे साधन अपनाए जो आगे चलकर भारत को जीतने के लिए अंग्रेजों के मार्गदर्शक बने.
- डुप्ले ही ऐसा पहला व्यक्ति था जिसने यूरोपीय सेनाओं को भारतीय राजदरबारों में भारतीय खर्चे पर नियुक्त करवाया.
- प्रथमतः उसने ही यूरोपीय हितों के लिए भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप किया.
- संक्षेप में, वह पहला व्यक्ति था जिसने भारत में यूरोपीय साम्राज्य की बुनियाद रखी.