मुगल कालीन सांस्कृतिक अवस्था- स्थापत्य कला (वास्तुकला) और चित्रकला Architecture, Painting

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मुगल कालीन सांस्कृतिक अवस्था- स्थापत्य कला (वास्तुकला), चित्रकला और संगीत कला  Mughal period cultural status- Architecture,Painting and Music

मुगल कालीन शिक्षा (Education)

  • मुगल सम्राटों ने शिक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया.
  • प्राथमिक शिक्षा ‘मक्तबों’ में दी जाती थी.
  • बाबर के समय ‘शुहरते आम‘ नामक विभाग स्कूल तथा कॉलेजों की व्यवस्था करता था.
  • हुमायूँ की भी अध्ययन में विशेष रुचि थी .
  • अकबर परिस्थितियों के कारण अधिक औपचारिक शिक्षा प्राप्त न कर सका, किन्तु शिक्षा के क्षेत्र में उसने स्मरणीय कार्य किए.
  • उसने भी हुमायूं की तरह एक प्रसिद्ध पुस्तकालय की स्थापना की.
  • उसने हिन्दुओं के ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद हेतु अनुवाद विभाग की स्थापना की.
  • अकबर ने अनेक खानकाह एवं मदरसों की स्थापना की.
  • जहाँगीर को तुर्की एवं फारसी भाषा का अच्छा ज्ञान था.
  • शाहजहाँ ने भी दिल्ली में एक कॉलेज की स्थापना करवाई तथा ‘दारुल बक’ नामक कॉलेज की स्थापना की.
मुगल कालीन सांस्कृतिक अवस्था- स्थापत्य कला (वास्तुकला) और चित्रकला Mughal period cultural status- architecture and painting
  • आगरा, फतेहपुर सीकरी, दिल्ली, लाहौर, स्यालकोट, गुजरात, जौनपुर अजमेर आदि मुगल कालीन शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे.
  • मुगलों ने फारसी को अपनी राजभाषा बनाया.

मुगल कालीन स्थापत्य कला वास्तुकला चित्रकला (architecture and painting)

स्थापत्य कला (वास्तुकला) Architecture

  • अन्य कलाओं के अनुरूप वास्तुकला के क्षेत्र में मुगलकाल नवीनताओं और सांस्कृतिक पुनरुत्थान के साथ-साथ तुर्क अफगान काल में प्रारंभ प्रवृत्तियों के विकास के चरमोत्कर्ष की ओर उन्मुख प्रक्रियाओं का युग था.
  • सम्पूर्ण मुगलकाल की वास्तुकलात्मक शैली पर हिन्दू प्रभाव बना रहा.
  • इस कला में फारस, तुर्की, मध्य एशिया, गुजरात, जौनपुर, बंगाल आदि शैलियों का अनोखा मिश्रण हुआ.
  • स्मिथ ने मुगल वास्तुकला को ‘कला की रानी’ कहा तथा पर्सी ब्राउन ने इस कला को भारतीय वास्तु कला ‘ग्रीष्म काल‘ कहा, जो प्रकाश व उर्वरा का प्रतीक है.
  • मुगल स्थापत्यकला के विकास की पहली सीढ़ी ‘फतेहपुर सीकरी’ आदि के निर्माण में तथा इसकी चरम परिणति शाहजहाँ के शाहजहानाबाद नगर के निर्माण में दिखाई देती है.
  • इस काल के वास्तुकला के क्षेत्र में पहली बार आकार एवं डिजाइन की विविधता का प्रयोग तथा निर्माण के लिए पत्थर के अलावा पलस्तर एवं गच्चीकारी (Stuceo) का प्रयोग किया गया.
  • सजावट के लिए संगमरमर पर जवाहरात से की गई जड़ावट ‘पित्रा ड्यूरा’ (Pietra Duro) का प्रयोग किया गया.
  • पित्रा ड्यूरा का प्रयोग इस काल की एक विशेषता थी.
  • पित्रा ड्यूरा के लिए पत्थरों को काटकर फूल-पत्ते, बेलबूटे को सफेद संगमरमर में जड़ा जाता था.
  • इस काल के बुर्जा एवं गुम्बदों को ‘कलश’ से सजाया जाता था.

बाबर शासनकाल में वास्तुकला

  • बाबर के अल्पकालीन शासनकाल में वास्तुकला का कोई विशेष साक्ष्य उपलब्ध नहीं है.
  • उसके बाबरनामा से स्पष्ट होता है कि तत्कालीन स्थानीय वास्तुकला में संतुलन या सुडौलपन का अभाव था.
  • निर्माण कार्य ग्वालियर के मानसिंह एवं विक्रमाजीत सिंह के महलों से प्रभावित हैं.
  • बाबर ने अपने उद्यान निर्माण कार्य में इस बात का विशेष ध्यान रखा कि उसका निर्माण सामंजस्यपूर्ण और पूर्णतः ज्यामितीय हो .
  • उसने आगरा में ज्यामितीय विधि पर आधारित एक उद्यान का निर्माण करवाया.
  • पानीपत के काबुली बाग में निर्मित मस्जिद (1524 ई.) की विशेषता, उसका ईंटों द्वारा किया गया निर्माण थी.
  • रूहेलखण्ड के सम्भल नामक स्थान पर निर्मित जामी मस्जिद (1529 ई.) तथा आगरा के पुराने लोदी के किले के भीतर की मस्जिद बाबर द्वारा निर्मित अन्य स्मारक हैं.

हुमायूँ शासनकाल में वास्तुकला

  • प्रतिकूल राजनीतिक परिस्थितियों के कारण हुमायूँ के शासनकाल में कोई महत्वपूर्ण निर्माण कार्य करने का पर्याप्त अवसर नहीं मिला.
  • शासन के आरंभिक वर्षों में उसने दिल्ली में ‘दीनपनाह‘ (धर्म का शरण स्थल) नामक नगर का निर्माण करवाया, किन्तु इस प्रथम मुगल नगर का कोई अवशेष आज उपलब्ध नहीं है.
  • द्वारा निर्मित 1540 ई. में फतेहाबाद की दो मस्जिदें फारसी शैली में हैं.

शेरशाह शासनकाल में वास्तुकला

  • वास्तुकला के क्षेत्र में का शासनकाल ‘संक्रमण का काल’ माना जाता है.
  • उसने दिल्ली को जीतने के पश्चात् ‘शेरगढ़’ या ‘दिल्ली शेरशाही’ का निर्माण करवाया.
  • वर्तमान में इस नगर के केवल ‘लाल दरवाजा‘ तथा ‘खूनी दरवाजा‘ ही शेष हैं.
  • शेरशाह ने हुमायूँ द्वारा निर्मित ‘दीनपनाह’ को तुड़वाकर उसके मलवे पर ‘पुराना किला’ का निर्माण करवाया.
  • इस किले के अन्दर 1542 ई. में किला-ए-कुहना नामक मस्जिद का निर्माण करवाया.
  • उसने रोहतास (बिहार में) में एक किले का निर्माण करवाया.
  • सासाराम (बिहार) में झील के अन्दर एक ऊँचे टीले पर निर्मित मकबरा (शेरशाह का) हिन्दू-मुस्लिम वास्तुकला का श्रेष्ठ नमूना है.
  • किला-ए-कुहना मस्जिद के परिसर में एक अष्टभुजी तीन मंजिला मण्डप निर्मित है, जिसे ‘शेरमण्डल’ कहा जाता है.

अकबर शासनकाल में वास्तुकला

  • अबुल फजल ने के विषय में लिखा है कि-

“सम्राट सुन्दर इमारतों की योजना बनाते हैं और अपने मस्तिष्क एवं हृदय के विचार से पत्थर एवं गारे का रूप दे देते हैं.”

  • अकबर के निर्माण कार्य में हिन्दू-मुस्लिम शैलियों का व्यापक समन्वय दिखता है.

हुमायूँ का मकबरा

  • यह मकबरा भारतीय तथा फारसी शैली के समन्वय का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.
  • इस मकबरे ने स्थापत्य कला को एक नई दिशा प्रदान की.
  • इस मकवरे का खाका ईरान के मुख्य वास्तुकार ‘मीरक मीर्जा गियास’ ने तैयार किया था.
  • 1564 ई. में निर्मित इस मकबरे में ईरानी प्रभाव के साथ-साथ हिन्दू शैली की ‘पंचरथ’ से प्रेरणा ली गई है.
  • इसका निर्माण कार्य अकबर की सौतेली माँ हाजी-बेगम की देख-रेख में हुआ था.
  • मकबरे का मुख्य दरवाजा पश्चिम की ओर है.
  • इसकी मुख्य विशेषता सफेद संगमरमर से निर्मित गुम्मद हैं.
  • यह भारत का पहला मकबरा है, जिसमें उभरी हुई दोहरी गुम्बद है.
  • यह तराशे गए लालू रंग के पत्थरों द्वारा निर्मित है.
  • उद्यानों में निर्मित मकवरों का आयोजन प्रतीकात्मक रूप में करते हुए मकवरों में दफनाए गए व्यक्तियों के देवी स्वरूप की ओर संकेत किया गया है.
  • इस परम्परा में, निर्मित यह मकवरा भारत का पहला स्मारक है.
  • यह मकबरा ‘ताजमहल का पूर्वगामी’ है तथा इस परम्परा की परिणति ताजमहल में हुई है.
  • अकबर ने मेहराबी एवं शहतीरी शैली का समान अनुपात में प्रयोग किया.
  • उसने ऐसी इमारतों का निर्माण करवाया जो अपनी सादगी से ही सुन्दर लगती थीं.
  • उसके अपने निर्माण कार्यों में अधिकतर लाल पत्थर का प्रयोग किया.

आगरा का किला 

  • अकबर के मुख्य वास्तुकार कासिम खाँ के नेतृत्व में 1566 ई. में इस .
  • किले का निर्माण कार्य शुरू किया.
  • यमुना नदी के किनारे 1½ मील में फैले इस किले के निर्माण में 15 वर्ष तथा 35 लाख रुपये खर्च हुए.
  • अकबर ने इसकी मेहराबों पर कुरान की आयतों के स्थान पर पशु-पक्षी, फूल-पत्तों की आकृतियों को खुदवाया.
  • इस किले के पश्चिमी भाग में स्थित ‘दिल्ली दरवाजे’ का निर्माण 1566 ई. में किया गया.
  • किला का दूसरा दरवाजा ‘अमरसिंह दरवाजा’ के नाम से प्रसिद्ध है.
  • किले के अन्दर अकबर ने लगभग 500 निर्माण कराए हैं, जिनमें लाल पत्थर तथा गुजराती एवं बंगाली शैली का प्रयोग हुआ है.

जहाँगीरी महल

  • जहाँगीरी महल ग्वालियर के राजा मानसिंह के महल की नकल है.
  • यह अकबर का उत्कृष्ट निर्माण कार्य है.
  • महल के चार कोनों में चार बड़ी छतरियाँ हैं तथा महल में प्रवेश के लिए बनाया गया दरवाजा नोकदार मेहराव का है.
  • पूर्णतः हिन्दू शैली में निर्मित इस महल में संगमरमर का अत्यल्प प्रयोग हुआ है.
  • कड़ियाँ तथा तोड़े का प्रयोग इसकी विशेषता है.
  • जहाँगीरी महल के दाहिनी ओर अकबरी महल का निर्माण हुआ था.
  • जहाँगीरी महल की सुन्दरता का अकवरी महल में अभाव है.

फतेहपुर सीकरी 

  • शेख सलीम चिश्ती के प्रति आदर प्रकट करने के उद्देश्य से अकबर ने 1571 ई में फतेहपुर सीकरी के निर्माण का आदेश दिया.
  • अकबर ने 1570 ई. में गुजरात को जीतकर इसका नाम फतेहपुर सीकरी या विजय नगरी रखा तथा 1571 ई. में इसे राजधानी बनाया.
  • लगभग 7 मील लम्बे पहाड़ी क्षेत्र में फैले इस नगर में प्रवेश के लिए अजमेर, आगरा, ग्वालियर, दिल्ली, धौलपुर आदि नाम के 9 प्रवेश द्वार हैं.
  • सीकरी के निर्माण का श्रेय वास्तु विशेषज्ञ बहाउद्दीन को जाता है.
  • फग्र्युसन के अनुसार, ‘फतेहपुर सीकरी पत्थर में प्रेम तथा एक महान व्यक्ति के मस्तिष्क की उपज है.’

जोधाबाई महल

  • सीकरी के सभी भवनों में यह महल सबसे बड़ा है.
  • इस महल में गुजराती प्रभाव है तथा यह दक्षिण के मंदिरों से प्रभावित है.
  • महल के उत्तर में ग्रीष्म विलास तथा दक्षिण में शरद् विलास का निर्माण हुआ है.
  • इस महल के समीप ही ‘मरियम की कोठी’ एक छोटी इमारत है.
  • मरियम के महल में फारसी विषयों से संबंधित भिति चित्र बनाए गए हैं.
  • सुल्तान के महल पर पंजाब के काष्ठ निर्माण कला का प्रभाव है.

पंचमहल

  • ‘हवा महल’ के नाम से भी विदित पिरामिड के आकार वाले इस स्मारक की पाँच मंजिलें हैं.
  • महल के खम्भों पर फूल-पत्तियों तथा रूद्राक्ष के दानों से सुन्दर सजावट की गई है.
  • इस महल में हिन्दू धर्म तथा बौद्ध विहारों का स्पष्ट प्रभाव दिखायी देता है.

बीरबल का महल

  • इस महल का निर्माण मरियम के महल की शैली पर किया गया है.
  • इस महल की दो मंजिलें हैं.
  • महल के छज्जे कोष्ठकों पर आधारित हैं.
  • छज्जों में कोष्ठकों का प्रयोग इस इमारत की विशेषता है.

खास महल

  • इस महल का प्रयोग अकबर द्वारा व्यक्तिगत आवासगृह के रूप में किया जाता था.
  • महल के चारों कोनों पर 4 छतरियों का निर्माण किया गया था.
  • महल के दक्षिण में शयनगार था जिसमें 4 दरवाजे लगे थे.
  • महल के उत्तरी हिस्से में ‘झरोखा दर्शन’ की व्यवस्था की गई थी.

तुर्की सुल्तान की कोठी 

  • यह एक मंजिल की छोटी तथा आकर्षक इमारत है.
  • इमारत के अन्दर की दीवारों पर पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों की चित्रकारी की गई है.
  • इसके अलंकरण में काष्ठकला का प्रभाव है.
  • यह इमारत रूकिया बेगम या सलीमा बेगम के लिए बनवाई गई थी.
  • पर्सी ब्राउन इसे ‘कलात्मक रत्न’ तथा ‘स्थापत्य कला का मोती’ कहते हैं.

दीवान-ए-आम

  • यह इमारत ऊँची कुर्सी पर निर्मित खंभों पर निकली हुई बरामदों की आयताकार कक्ष है.
  • इसमें मनसबदारों एवं उनके नौकरों के लिए मेहराबी बरामदे बने हैं.
  • इसके बरामदे में लाल पत्थर से बना अकबर का दफ्तरखाना है.
  • दीवाने आम में अकबर अपने मंत्रियों से सलाह-मशविरा करता था.

दीवान-ए-खास

  • 47 फीट वर्गाकार यह भवन हिन्दू एवं बौद्ध कला शैली से प्रभावित है.
  • भवन के मध्य में बने एक ऊँचे चबूतरे पर बादशाह अकबर अपने कर्मचारियों की बहस को सुनता था.
  • यही भवन अकबर का इबादतखाना था, जहाँ प्रत्येक बृहस्पतिवार की शाम को वह विभिन्न धर्मों के धर्माचार्यों से चर्चाएँ करता था.
  • दीवान-ए-खास के उत्तर में ‘कोषागार’ का निर्माण तथा पश्चिम में एक वर्गाकार चंदोवा जैसा ‘ज्योतिषी की बैठक का निर्माण किया गया है.
  • अबुल फज़ल भवन, सराय, हिरन मीनार, शाही अस्तबल आदि फतेहपुर सीकरी के अन्य निर्माण थे.

जामा मस्जिद

  • 542 फीट लम्बी तथा 438 फीट चौड़ी आयताकार यह मस्जिद मुक्का की प्रसिद्ध मस्जिद से प्रेरित है.
  • इस मस्जिद के मध्य में शेख सलीम चिश्ती का मकबरा, उत्तर में इस्लाम खाँ का मकबरा तथा दक्षिण में बुलन्द दरवाजा निर्मित है.
  • इसी मस्जिद से अकबर ने 1582 ई. में ‘दीन-ए-इलाही’ की घोषणा की थी.
  • फग्र्युसन ने इसे ‘पत्थर में रूमानी कथा’ कहा है.

शेख सलीम चिश्ती का मकबरा

  • 1571 ई. में जामा मस्जिद के अहाते में इस मकबरे का निर्माण कार्य शुरू हुआ.
  • इसका निर्माण लाल एवं बलुआ पत्थर से किया गया है.
  • बाद में जहाँगीर ने लाल बलुआ पत्थर के स्थान पर संगमरमर लगवाया.
  • मकवरे की फर्श रंग-बिरंगी है.
  • इस मकबरे के बारे में पर्सी ब्राउन ने कहा कि-

“इसकी शैली इस्लामी शैली की बौद्धिकता तथा गांभीर्य की अपेक्षा मंदिर निर्माता की स्वतंत्र कल्पना का परिचय प्रदान करती है.”

बुलन्द दरवाजा

  • गुजरात विजय के उपलक्ष्य में अकबर ने जामा मस्जिद के दक्षिणी द्वारा पर बुलंद दरवाजा का निर्माण करवाया.
  • लाल एवं बलुआ पत्थर से निर्मित जमीन की सतह से इसकी ऊँचाई 176 फीट है.
  • इसका मेहरावी मार्ग दक्षिण विजय के उपलक्ष्य में बनवाया गया था, जो इसकी विशेषता है.
  • इसके दरवाजे पर एक लेख है जिसके द्वारा अकबर ने मानव समाज को विश्वास, भाव एवं भक्ति का संदेश दिया है.

इस्लाम खाँ का मकबरा

  • यह मकबरा शेख सलीम चिश्ती के मकबरे के दक्षिण में स्थित है.
  • इस मकबरे में ‘वर्णाकार मेहराब’ का प्रयोग हुआ है.
  • वर्णाकार मेहराब का प्रयोग का पहला उदाहरण है.

लाहौर का किला

  • 1570 से 1585 तक फतेहपुर सीकरी मुगल साम्राज्य की राजधानी रही.
  • इसके पश्चात् उजबेकों के आक्रमण का सामना करने के लिए अकबर लाहौर लौटा.
  • यहाँ पर उसने लाहौर किला का निर्माण करवाया.
  • यह किला आगरा में वने जहाँगीरी महल से प्रेरित है.
  • एकमात्र अंतर यह है कि किले के कोष्ठकों पर हाथी एवं सिंहों की आकृति तथा छज्जों पर मोर की आकृतियाँ उकेरी गई

इन इमारतों के अतिरिक्त अकबर ने 1583 में 40 स्तंभों वाला ‘इलाहाबाद का किला’, 1581 में ‘अटक का किला’ आदि का निर्माण करवाया.

अकबर के निर्माण में मुगल काल के पूर्व की शाही शैली तथा गुजरात, मालवा, और चंदेरी की आंचलिक शैलियों का संयोजन है.

जहाँगीर शासनकाल में वास्तुकला

  • ने स्थापत्य कला से अधिक रूचि चित्रकारी तथा बाग-बगीचों में ली.
  • फिर भी उसने स्थापत्य के क्षेत्र में कुछ उत्कृष्ट निर्माण करवाए.

अकबर का मकबरा

  • सिकन्दरा स्थित इस मकबरे की योजना स्वयं सम्राट अकबर ने तैयार की थी, किन्तु जहाँगीर ने इसे 1612 ई. में अंतिम रूप से पूर्ण करवाया.
  • यह मकबरा पिरामिड के आकार का है तथा इसमें पाँच मंजिलें हैं .
  • उपरी मंजिल का निर्माण संगमरमर द्वारा जहाँगीर ने करवाया.
  • प्रवेश-द्वार बलुआ पत्थर द्वारा निर्मित है.
  • इस मकबरे के प्रवेश द्वार तीन हैं, किन्तु दक्षिणी द्वार का ही अधिक प्रयोग होता है.
  • फग्र्युसन ने इस मकबरे के बारे में कहा है कि —

“यदि इस मकबरे की पाँचवीं मंजिल के ऊपर गुम्बद बनाने की योजना सफल हो गई होती तो यह मकबरा ताजमहल के बाद द्वितीय स्थान प्राप्त करता.”

  • पूरा मकबरा उद्यान के बीच विशाल चबूतरे पर स्थित है.
  • इसकी ऊँचाई 100 है.

एतमादुद्दौला का मकबरा .

  • इस मकबरे का निर्माण 1626 ई. में नूरजहाँ बेगम ने करवाया था.
  • मुगलकालीन वास्तुकला की यह प्रथम इमारत है जो पूर्ण रूप से सफेद संगमरमर से निर्मित है.
  • सर्वप्रथम इसी इमारत में ‘पित्रा ड्यूरा’ का प्रयोग किया गया.
  • मकबरे के अंदर सोने एवं अन्य रत्नों से जड़ावट का काम किया गया है.
  • मकबरे के अन्दर निर्मित एतमादुद्दौला एवं उसकी पत्नी की कद्रे पीले किस्म के कीमती पत्थर से निर्मित है.
  • पर्सी ब्राउन के अनुसार, “आगरा में यमुना नदी के तट पर स्थित एतमादुद्दौला का मकबरा अकबर एवं शाहजहाँ की शैलियों के मध्य एक कड़ी है.”
  • इस मकबरे पर ईरानी प्रभाव अधिक है.

मरियम-उज-जमानी का मकबरा

  • सिकन्दरा में स्थित यह मकबरा अकबर के मकबरे से दो फर्लाग की दूरी पर है.
  • इसका निर्माण लाल-पत्थर एवं ईंटों से किया गया है.
  • मकबरे का मध्य भाग सफेद संगमरमर से निर्मित है.

जहाँगीर के समय में ही अब्दुर्रहीम खानखाना के मकबरे का निर्माण ईरानी शैली में हुआ है.

शाहजहाँ शासनकाल में वास्तुकला

  • का काल सफेद संगमरमर के प्रयोग में चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया.
  • शाहजहाँ का काल स्थापत्य के क्षेत्र में स्वर्ण काल माना जाता है.
  • संगमरमर जोधपुर के मकराना से लिया जाता था.
  • पर्णिल या नक्काशी युक्त मेहराबें, बंगाली शैली के मुड़े हुए कंगूरे, जंगले के खम्भे आदि शाहजहाँ के निर्माण की विशेषता है.

मोती मस्जिद

  • शाहजहाँ द्वारा 1654 ई. में आगरा में इस मस्जिद का निर्माण करवाया.
  • यह आगरा के किले की सर्वोत्कृष्ट इमारत है. दीवान-ए-आम 1627 ई. में शाहजहाँ द्वारा आगरा के किले में इसका निर्माण करवाया.
  • शाहजहाँ के काल का यह प्रथम निर्माण था, जो संगमरमर से बना था.
  • इसमें शाहजहाँ के लिए मयूर सिंहासन रखा गया था, जिसे तख्त-ए-ताउस कहा गया है.

दीवान-ए-खास

  • शाहजहाँ द्वारा इसका निर्माण 1637 ई. में आगरा के किले में करवाया गया था.
  • संगमरमर से निर्मित फर्श तथा स्वर्ण एवं रंगों से सजे मेहराब वाली इस इमारत में केवल अमीर एवं उच्चाधिकारी ही आ सकते थे.
  • इस इमारत की अंदर की छत चाँदी की बनी थी तथा उसमें संगमरमर, सोने और बहुमूल्य पत्थरों की मिली-जुली सजावट थी.
  • दीवान-ए-खास पर एक अभिलेख है —

‘ अगर फिरदौस बररूयीं जमीं हमीं अस्त, उ हमीं अस्त, उ हमीं अस्त .’

अर्थात् पृथ्वी पर कही परमसुख का स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, दूसरा कोई नहीं.

मुसम्मन बुर्ज

  • आगरा किला में खास महल के उत्तर में निर्मित यह इमारत छह मंजिली है.
  • इसका निर्माण शाहजहाँ ने करवाया था.
  • इस बुर्ज में शाही परिवार की स्त्रियाँ पशुओं का युद्ध देखा करती थीं.
  • इस बुर्ज में जहाँगीर ने हाथी पर सवार राणा अमर सिंह एवं उनके पुत्र करण सिंह की मूर्तियों का निर्माण करवाया था.
  • बाद में औरंगजेब ने इन मूर्तियों को ध्वस्त करवा दिया.
  • शाहजहाँ ने खास महल का निर्माण सफेद संगमरमर से हरम की स्त्रियों के लिए करवाया था.
  • झरोखा दर्शन, अंगूरी वाग, शीश महल, नगीना मस्जिद, मच्छी भवन, नहर-ए-बहिश्त आदि आगरा के किले के अंदर के अन्य महत्वपूर्ण निर्माण थे.

जामा मस्जिद 

  • शाहजहाँ की पुत्री जहाँआरा ने 1648 ई में आगरा के किले में, लकड़ी एवं ईंट से निर्मित, इस मस्जिद का निर्माण करवाया था.
  • इस मस्जिद को ‘मस्जिदे-जहाँ-नामा’ भी कहा जाता है.

ताज महल (Taj Mahal)

  • एल. मुखर्जी ने ताज महल (Taj Mahal) के बारे में लिखा है कि-

“शाहजहाँ अपनी प्रिय पत्नी मुमताजमहल की समाधि पर निर्मित, भव्य एवं आकर्षक मकबरा-विश्वविख्यात ताजमहल, मुगलकला का सर्वोत्कृष्ट पुष्प है.”

  • इसका निर्माण ‘उस्ताद ईसा खाँ’ (शाहजहाँ की देख-रेख में) द्वारा सम्पन्न करवाया गया था.
  • मकबरे की योजना ‘उस्ताद अहमद लाहौरी‘ ने तैयार की थी.
  • शाहजहाँ ने लाहौरी को ‘नादिर-उल-अस्र’ की उपाधि प्रदान की थी.
  • ताज के निर्माण में सहायता के लिए लाहौरी ने बगदाद तथा शिराज से हस्तकला विशेषज्ञ, कुस्तुनतुनिया से गुम्बदकला विशेषज्ञ, बुखारा से फूल-पत्ते की खुदाई विशेषज्ञ, समरकन्द से शिखर निर्माण एवं बाग-बगीचा निर्माण विशेषज्ञों को बुलाया था.
  • ताज में भारत, ईरान तथा मध्य एशिया की भवन निर्माण शैलियों का सामंजस्यपूर्ण संयोजन हुआ है.
  • ताज का रूपांकन तथा कार्यान्वयन पूर्णतया नवीन नहीं था.
  • इसके कुछ विशेष तत्व शेरशाह और हुमायूँ के मकवरों में उपलब्ध हैं.
  • इसके अंदर के भाग में पित्रा ड्यूरा शैली का बखूबी प्रयोग हुआ है.
  • अर्जूमन्द बानू बेगम (मुमताज महल)की स्मृति में बने ताजमहल का निर्माण कार्य 1631 ई. में आरंभ हुआ तथा 1653 ई. में सम्पन्न हुआ.
  • हैवेलने ताजमहल को भारतीय नारीत्व की साकार प्रतिमा कहा है.
  • कला इतिहासकार वेन बेगले के अनुसार, —

“यह मकबरा सम्राट् की पत्नी की यादगार न होकर ईश्वरीय सिंहासन और बहिश्त की प्रतिकृति है.”

शाहजहाँनाबाद (लाल किला)

  • शाहजहाँ ने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली लाने के लिए यमुना के दाहिने तट पर 1638 ई. में शाहजहाँनावाद नाम के एक नगर की नींव रखी.
  • इस नगर (पुरानी दिल्ली) में एक चतुर्भुज के आकार का एक ‘लाल किला’ नाम के एक किले का निर्माण करवाया.
  • लाल किले का निर्माण कार्य 1648 ई. में पूर्ण हुआ.
  • इस किले के निर्माण में लगभग एक करोड़ रुपये खर्च हुए.
  • 3100 फीट लम्बे तथा 1650 फीट चौड़े इस किले का निर्माण हमीद तथा अहमद नामक वास्तुकारों के निर्देशन में हुआ.
  • इस किले के पश्चिमी दरवाजे का नाम ‘लाहौरी दरवाजा’ तथा दक्षिणी दरवाजे का नाम ‘दिल्ली दरवाजा’ है.

जामा मस्जिद

  • दिल्ली की प्रसिद्ध जामा मस्जिद का निर्माण शाहजहाँ द्वारा 1648 ई. में करवाया गया.
  • ऊँचे चबूतरे पर बनी इस मस्जिद में शाहजहाँनी शैली में फूलदार अलंकरण की मेहराबें बनी हैं. 

शीस महल, नहर-ए-बहिश्त, मोती महल, हीरा महल आदि लाल किला के अन्दर बनी इमारतें थीं.

दीवाने आम, शाह बुर्ज, शीश महल, नौलखा महले, ख्वाबगाह निर्माण कार्य लाहौर के किले में शाहजहाँ द्वारा करवाए गए.

शाहजहाँ के काल में ही कश्मीर में शालीमार बाग एवं निशांत बाग फारसी शैली में बनाए गए थे.

औरंगजेब शासनकाल में वास्तुकला

  • के काल में बहुत थोड़े भवनों का निर्माण हुआ.
  • जो भी निर्माण कार्य हुए उनमें से एक को भी श्रेष्ठ इमारत नहीं कहा जा सकता.

मोती मस्जिद

  • 1659 ई. में दिल्ली की मोती मस्जिद के अधूरे निर्माण कार्य को पूरा करवाया.

बादशाही मस्जिद

  • 1674 ई. में उसने लाहौर में ‘बादशाही मस्जिद’ का निर्माण करवाया.

बीबी का मकबरा

  • 1678 ई. में उसने भी बेगम रबिया दुर्रानी की स्मृति में औरंगाबाद में एक मकबरे का निर्माण करवाया.
  • यह मकबरा ‘बीबी का मकबरा’ के नाम से प्रसिद्ध है.
  • यह ताजमहल की फूहड़ नकल है.

औरंगजेब के बाद के इमारतों में सफदरजंग (अवध के दूसरे नवाव) का मकबरा दिल्ली में 1753 ई. में बना.

मुगल काल में चित्रकला (Painting in Mughal period)

  • मुगल चित्रकला शैली मुख्यतः फारसी या ईरानी चित्रकला से प्रभावित है, जो स्वयं में चीनी, बौद्ध, भारतीय, वैक्ट्रियाई तथा मंगोलियाई चित्रकला शैलियों की विशेषताओं का समिश्रण थी .
  • इस चित्रकला का प्रेरणा स्रोत ‘समरकन्द’ एवं हेरात रहा है.

बाबर के समय में चित्रकला

  • बेहजाद, जिसे ‘पूर्व का राफेल’ कहा जाता है, को तैमूर चित्रकला शैली को चरमोत्कर्ष पर ले जाने का श्रेय जाता है.
  • बेहजाद बाबर के समय का महत्वपूर्ण चित्रकार था.
  • अपनी आत्मकथा बाबरनामा या जुजुक-ए-बाबरी में बेहजाद की प्रशंसा की गई है.

हुमायूँ के समय में चित्रकला

  • अफगानिस्तान एवं फारस में अपने निर्वासन के दौरान मीर सैयद अली (बेहजाद का अनुयायी) तथा अब्दुस समद नामक दो ईरानी चित्रकारों की सेवाएँ प्राप्त की.
  • भारत लौटने पर वह दोनों चित्रकारों को साथ लाया.
  • प्रवास के दौरान हुमायूँ की अस्थाई राजधानी काबुल में अब्दुस समद द्वारा बनाई गई कछ कलाकृतियाँ जहाँगीर की ‘गुलशन चित्रावली’ में संकलित हैं.
  • इन्हीं दोनों चित्रकारों ने हुमायूँ तथा अकबर को चित्रकला की शिक्षा दी तथा अकबर के लिए एक उन्नत कला संगठन की स्थापना की.
  • इन्हीं दोनों चित्रकारों को फारसी भाषा की विख्यात कृति ‘दास्तान-ए-अमीर-हम्जा या ‘हम्जनामा’ के चित्र बनाने के लिए नियुक्त किया गया.
  • मुगल चित्रशाला की इस प्रथम कृति में लगभग 1200 चित्र (12 भागों में विभाजित–प्रत्येक भाग में लगभग 100 पृष्ठ) हैं.
  • इस संग्रह में लाल, नीला, पीला, हरा, काला एवं कासनी रंगों का प्रयोग मिलता है.

अकबर  के समय में चित्रकला

  • अबुल फज़ल ने आईने अकबरी में अकबर के दरबार से संबंधित 17 चित्रकारों का उल्लेख किया है, जिनमें मीर सैयद तथा अब्दुस समद के अतिरिक्त-दसवंत, बसावन, मिशिकीन, केशवलाल,मुकुंद, फारुक कमलक, महेश, माधो जगन, खेमकरण, तारा, सांवल, हरिवंश एवं राम शामिल हैं.
  • हस्तलिपियों में किए गए चित्रांकनों द्वारा लगभग एक सौ पचास चित्रकारों के नाम दिखते हैं.
  • अब्दुस समद ने अन्य चित्रकारों को ईरानी सूक्ष्म चित्रकारी की सभी तकनीकी विशेषताओं से अवगत कराया.
  • दसवंत एक साधारण कलाकार की हैसियत से कार्य आंरभ किया तथा बाद में ‘साम्राज्य का प्रथम अग्रणी कलाकार बना.
  • दसवंत द्वारा बनाए गए चित्र ‘रज्मनामा’ नामक पाण्डुलिपि में मिलते हैं.
  • दसवंत की अन्य दो कृतियाँ हैं-तूतीनाम एवं खानदान-ए-तैमुरिया .
  • बाद में दसवंत मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गया तथा 1584 ई. में उसने आत्महत्या कर ली.
  • बसावन को चित्रकला के सभी क्षेत्रों में-रेखांकन, रंगों के प्रयोग, भू-दृश्य,छवि चित्रकारी आदि-में महारत हासिल था इसलिए इसे अकबर के समय का सर्वोत्कृष्ट कृति–एक दुबले पतले घोड़े के साथ मजनू का निर्जन एवं उजाड क्षेत्र में भटकता हुआ चित्र था.
  • भित्ति चित्रकारी की शुरुआत पहली बार अकबर के काल में ही हुई.
  • सन् 1580 में अकबर के दरबार में पहली बार जेस्रस्ट पुरोहितों का आना हुआ और उन्होंने अकबर को पालीग्लाट वाइवल की एक प्रति भेंट की, जिसपर कुछ नक्काशी थी.
  • उसके बाद यूरोपीय चित्र दरबार में लाए गए और उन्हें जिज्ञासा के साथ परखा गया.
  • इसी के प्रभाव से मुगल चित्रकारों ने भी रोशनी और छाया का प्रयोग शुरू किया.
  • आसमान को बादलों और सूर्यास्त द्वारा ज्यादा वास्तविक बनाया गया.
  • 1595 के बाद मुगल चित्रकारी में पश्चिमी प्रभाव का समन्वय दिखता है, जिसमें तीन आयाम वाले आकार छायांकन भी शामिल हैं.
  • तूतीयानामा तथा अनवर-ए-सुहैली प्रत्येक चिड़िया व जानवर को एक विशेष वास्तविकता के साथ दर्शाते हैं.

जहाँगीर के समय में चित्रकला

  • जहाँगीर ने अन्य कलाओं की अपेक्षा चित्रकला में अधिक रुचि ली.
  • इसके काल में मुगल चित्रकला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई.
  • जहाँगीर ने अकबर के शासन काल में ही आकारिजा-जो हेरात का प्रसिद्ध चित्रकार था–के नेतृत्व में आगरा में एक चित्रणशाला की स्थापना की.
  • उसने हस्तलिखित ग्रंथों की चित्रकारी के लिए प्रयोग करने की पद्धति को समाप्त किया तथा उसके स्थान पर छवि चित्रों, प्राकृतिक दृश्यों आदि के प्रयोग की पद्धति को अनाया.
  • इसके काल में प्रमुख चित्रकार थे-आकारिजा का पुत्र अबुल हसन, बिशनदास, मनोहर, दौलत, फारुख बेग, मधु, अनंत, गोवर्द्धन तथा उस्ताद मंसूर, जिन्होंने मुगल चित्रकारी को चरम सीमा पर पहुँचाया.
  • इस काल में यूरोपीय प्रभाव के चलते रंग थोड़े हल्के और पहले से कम चमकदार हो गए.
  • विशेषकर प्राकृतिक दृश्यों में रंगों का मिश्रण अच्छी तरह किया जाने लगा.
  • जिन प्रमुख पुस्तकों का चित्रांकन हुआ वे थीं-इयार-ए-दानिश तथा अनवर-ए-सुहेली.
  • जहाँगीर के निर्देश पर दौल्त ने अपने साथी चित्रकार बिसन दास, अबुल हसन, गोवर्द्धन के छविचित्र तथा स्वयं अपना एक छवि चित्र बनाया.
  • अपने समय के अग्रणी चित्रकार विसनदास को फारस के शाह के दरबार में-उसके अमीरों तथा परिजनों के यथारूप छवि चित्र बनाने के लिए भेजा.
  • मनोहर ने कई छवि चित्रों का निर्माण किया.
  • जहाँगीर के काल की चित्रकारी से संबंधित एक महत्वपूर्ण घटना थी-मुगल चित्रकाल की पारसी प्रभाव से मुक्ति .
  • जहाँगीर ने अपने श्रेष्ठ कलाकारों-मंसूर को ‘नादिर-उल-अप्त’ तथा अबुल हसन को ‘नादिर-उल-अज्मा’ की उपाधि प्रदान की.
  • मंसूर दुर्लभ पशुओं, विरले पक्षियों एवं अनोखे पुष्पों की चित्रकारी में सिद्ध हस्त था.
  • उसकी महत्वपूर्ण कृति में ‘साइबेरिया का बिरला सारस’ एवं बंगाल का एक पुष्प है.
  • जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि –

“कोई भी चित्र चाहे वह किसी मृतक व्यक्ति द्वारा बनाया गया हो या जीवित, मैं यह देखते ही तुरंत बता सकता हूँ कि यह किस चित्रकार की कृति है. यदि किसी चेहरे पर आँख किसी एक चित्रकार ने, भौंह किसी और ने बनाई हो तो भी यह जान लेता हूँ कि आँख किसने बनाई है और भौंह किसने बनाई है.”

  • जहाँगीर के समय में चित्रकारों ने सम्राट के दरबार, युद्ध स्थल, हाथी पर बैठकर धनुष-बाण के साथ शिकार का पीछा करना, प्राकृतिक-दृश्य, फूल, पौधे, पशु, पक्षी, चीता, घोड़े, शेर आदि को अपना विषय बनाया.

शाहजहाँ के समय में चित्रकला

  • अपने आरंभिक वर्षों में शाहजहाँ ने चित्रकारों को पूरी आजादी दे रखी थी, किन्तु उसकी रुचि में परिवर्तन के कारण चित्रकारों की संख्या में कटौती कर दी.
  • मुहमद फकीर एवं मीर हासिम उसके प्रमुख चित्रकार थे.
  • उसे दैवी संरक्षण में खुद का चित्र बनवाना हमेशा से प्रिय रहा.
  • शाहजहाँ का पुत्र दाराशिकोह, चित्रकला का पोषक था, किन्तु उसकी अकाल मृत्यु ने इस कला को छिन्न-भिन्न कर डाला.

औरंगजेब के समय में चित्रकला

  • औरंगजेब ने चित्रकारी को इस्लाम के विरुद्ध मानकर इससे घृणा की.
  • उसने चित्रकला को संरक्षण नहीं दिया, किन्तु शासन के अंतिम दिनों इस कला में थोड़ी रुचि ली.
  • परिणामस्वरूप उसके कुछ लघु चित्रों में शिकार करते हुए, दरबार लगाते हुए तथा युद्ध करते हुए दिखाया गया है.
  • कुछ चित्रों में उसे हाथ में कुरान लेकर बैठा हुआ दिखाया गया है.
  • अंततः मुगल दरबार के चित्रकारों को अन्यत्र स्वतंत्र राज्यों में पलायन करना पड़ा.

मुगल काल में संगीत कला (Music in Mughal period)

  • संगीत के विकास में अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ का विशेष योगदान रहा.
  • अकबर के समय एक प्रसिद्ध संगीतज्ञ तानसेन उसके नवरत्नों में से एक था.
  • वह ‘ध्रुपद’ का महान गायक था.
  • तानसेन के अतिरिक्त गोपाल, हरिदास, सूरदास, वैज बक्श आदि भी प्रसिद्ध ध्रुपद गायक थे.
  • अबुल फजल ने तानसेन के बारे में कहा है कि –

“पिछले एकहजार वर्षों से भारत में उनके जैसा संगीतज्ञ नहीं हुआ.”

  • अबुल फज़ल के ‘आइने-अकबरी’ में 36 उत्कृष्ट संगीतज्ञों के नाम मिलते हैं.
  • ध्रुपद गायन शैली और वीणा का प्रचार अकबर के काल में ही हुआ.
  • अकबर के सर्वाधिक प्रसिद्ध गायकों में तानसेन और बाजबहादुर थे.
  • तानसेन ने राजा मानसिंह द्वारा स्थापित ग्वालियर के संगीत विद्यालय में शिक्षा ग्रहण की.
  • हरिदास तानसेन के गुरु थे.
  • ग्वालियर के सूफी संत मुहम्मद गौस की प्रेरणा से तानसेन ने इस्लाम धर्म अंगीकार कर लिया था.
  • अकबर ने तानसेन को ‘कण्डाभरणवाणीविलास’ की उपाधि प्रदान की थी.
  • कालान्तर में ध्रुपद गायन शैली का स्थान ‘ख्याल गायकी’ ने ग्रहण कर लिया.
  • अबुल फज़ल ने बाजबहादुर के बारे में कहा था कि “वह संगीत; विज्ञान एवं हिन्दी गीत में अपने समय का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति था.”
  • बाजबहादुर मालवा का शासक था.
  • ‘राम सागर’ ग्रंथ की रचना अकबर के दरबार में की गई थी.
  • जहाँगीर के दरबार के मुख्य कलाकारों में तानसेन के पुत्र विलास खाँ, छतर खाँ एवं हमजान थे.
  • जहाँगीर ने एक प्रसिद्ध गजल गायक ‘शौकी’ को आनन्द खाँ की उपाधि दी.
  • शाहजहाँ ने विलास खाँ के दामाद लाल खाँ को ‘गुन समन्दर’ की उपाधि प्रदान की.
  • औरंगजेब के काल में संगीत को दबा दिया गया, फिर भी फकीरुल्लाह ने ‘मान कुतूहल’ का अनुवाद रोगदर्पण के नाम से अनुवाद कर औरंगजेब को अर्पित किया.

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1 thought on “मुगल कालीन सांस्कृतिक अवस्था- स्थापत्य कला (वास्तुकला) और चित्रकला Architecture, Painting”

  1. बहुत ही बढ़िया स्थापत्य कला मुगलकालीन जानकारी मिली आपके इस पोस्ट से।

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