लॉर्ड कर्जन, 1899-1905 (Lord Curzon, 1899-1905) बंगाल विभाजन, 1905 आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
लॉर्ड कर्जन, 1899-1905 (Lord Curzon)
- 1899 में लॉर्ड एलगिन के उत्तराधिकारी के रूप में लॉर्ड कर्जन को भारत का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया.
- लॉर्ड कर्जन के समक्ष प्रमुख चुनौती भारत की प्रशासनिक व्यवस्था को पूर्णरूपेण सुधारना था.
- उसने इस चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करते हुए भारतीय प्रशासन में निम्नलिखित सुधार किए
लॉर्ड कर्जन के सुधार
पुलिस सुधार (Police Reforms)
- लॉर्ड कर्जन ने 1902 में सर एण्ड्रयूफ्रेजर की अध्यक्षता में प्रत्येक प्रान्त के पुलिस प्रशासन की जांच पड़ताल हेतु एक आयोग गठित किया.
- 1903 में आयोग द्वारा प्रस्तुत सुझावों में सभी स्तरों के कार्मिकों के वेतन में वृद्धि, कार्मिकों की संख्या में वृद्धि, सिपाहियों तथा पदाधिकारियों के प्रशिक्षण हेतु पुलिस विद्यालयों की स्थापना करना, ऊंचे पदों के लिए सीधी भर्ती, प्रान्तीय पुलिस सेवा की स्थापना और एक निदेशक के अधीन केन्द्रीय गुप्तचर विभाग की स्थापना इत्यादि सुझाव सम्मिलित थे.
- इन सुझावों में से अधिकतर को स्वीकार कर लिया गया.
शैक्षणिक सुधार (Educational Reforms)
- 1902 में लॉर्ड कर्जन ने भारतीय विश्वविद्यालयों की स्थिति का निरीक्षण करने और उनकी कार्यक्षमता में सुधार हेतु सुझाव देने के लिए एक आयेाग की नियुक्ति की.
- आयोग के सुझावों के आधार पर 1904 में भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया गया.
- इस अधिनियम के द्वारा विश्वविद्यालयों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ा दिया गया.
- इस अधिनियम के बाद गैर सरकारी कॉलेजों का विश्वविद्यालयों से सम्बन्धित होना अधिक कठिन हो गया.
वित्तीय सुधार (Financial Reforms)
- 1899-1900 की अवधि में दक्षिणी, मध्य और पश्चिमी भारत में दुर्भिक्ष और सूखे के कारण कर्जन ने इस स्थिति से निपटने के लिए किए गए.
- राहत कार्यों का मूल्यांकन करने के लिए सर एण्टनी मैकडौनल की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया.
- 1901 में भारतीय सिंचाई व्यवस्था के अध्ययन हेतु सर कॉलिन स्कॉट मॉन क्रीफ की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया गया.
- आयोग ने साढे चार करोड़ रुपये आगामी 20 वर्षों में सिंचाई व्यवस्था पर व्यय किए जाने का सुझाव दिया.
- आयोग की सिफारिशों के मद्देनज़र झेलम नहर का कार्य पूरा किया गया तथा अपर चिनाब, अपर झेलम और लोअर बारी दोआब नहरों पर निमार्ण कार्य शुरू किया गया.
- इसके अलावा 1900 में पंजाब भूमि अन्याक्रमण अधिनियम (Punjab Land Alienation Act) पारित किया गया.
- इसके द्वारा कृषकों की भूमि का गैर-कृषकों के पास हस्तान्तरित होना समाप्त हो गया.
- 1904 में सहकारी समिति अधिनियम (Cooperative Credit Societies Act) पारित किया गया.
- इसके द्वारा कृषकों को कम दर पर ऋण मिलना सुलभ हो गया.
- भारत के औद्योगिक और वाणिज्यिक हितों की देखरेख के लिए एक नए विभाग का गठन किया गया.
- इस विभाग को डाक-तार कारखानों, रेलवे प्रशासन, खानों तथा बन्दरगाहों की देख-रेख का अतिरिक्त कार्य भार भी सौंपा गया.
- 1899 में भारतीय टंकण तथा पत्र मुद्रा अधिनियम (Indian Coinage and Paper Currency Act) पारित किया गया.
- इस अधिनियम के द्वारा अंग्रेजी पौण्ड भारत में विधिमान्य मुद्रा बन गई.
- इसका मूल्य 15 रुपये निश्चित हुआ.
न्यायिक सुधार (Judicial Reforms)
- लॉर्ड कर्जन ने कलकत्ता उच्च न्यायालय की कार्यकुशलता में वृद्धि के लिए उसके न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि कर दी.
- उसने उच्च न्यायालयों के और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन और पेंशन में भी वृद्धि की.
सैनिक सुधार (Military Reforms)
- लॉर्ड कर्जन ने भारतीय सेना को दो कमानों में बांट दिया-
- उत्तरी कमान, इसका मुख्य कार्यालय मरी में और प्रहार केन्द्र (Striking Point) पेशावर में था.
- दक्षिणी कमान, इसका मुख्य कार्यालय पूना में और प्रहार केन्द्र क्वेटा में था.
- इन दोनों कमानों में तीन-तीन ब्रिगेडियर होते थे.
- इन ब्रिगेडियरों में दो-दो स्थानीय और एक-एक अंग्रेजी बटालियनों का था.
- सैनिक अधिकारियों के प्रशिक्षण हेतु इंग्लैण्ड के केम्बरले कॉलेज (Camberley College) की तर्ज पर एक कॉलेज क्वेटा में स्थापित किया गया.
कलकत्ता निगम अधिनियम, 1899 (Calcutta Corporation Act, 1899)
- इस अधिनियम के द्वारा स्थानीय स्वशासन के क्षेत्र में लॉर्ड रिपन द्वारा किए गए समस्त उत्तम कार्यों को लॉर्ड कर्जन ने कार्यकुशलता की आड़ में समाप्त कर दिया.
- इस अधिनियम के अनुसार, निगम में चुने हुए सदस्यों की संख्या कम कर दी.
- निगम और उसकी अन्य समितियों में अंग्रेजों की संख्या बढ़ा दी गई.
- इस प्रकार निगम एक आंग्ल-भारतीय सभा के रूप में परिवर्तित हो गया.
प्राचीन स्मारक परिरक्षण अधिनियम 1904 (Ancient Monuments Act, 1904)
- लॉर्ड कर्जन ने भारत के प्राचीन स्मारकों की मरम्मत, प्रत्यास्थापन एवं रक्षण के लिए 1904 में एक महत्वपूर्ण अधिनियम पारित किया.
- उसने भारतीय रियासतों को भी इस प्रकार के महत्वपूर्ण अधिनियम पारित करने के लिए बाध्य किया.
बंगाल विभाजन, 1905 (Partition of Bengal, 1905)
- लॉर्ड कर्जन के शासनकाल की सर्वाधिक अप्रिय घटना बंगाल का विभाजन था.
- तत्कालीन बंगाल प्रान्त में बंगाल, बिहार और उड़ीसा सम्मिलित थे.
- इसका क्षेत्रफल 189,000 वर्ग मील था.
- यहां लगभग 8 करोड़ जनसंख्या निवास करती थी.
- लॉर्ड कर्जन ने पुर्नसंरचना के नाम पर अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बंगाल का विभाजन कर दिया.
- विभाजन के बाद पूर्वी बंगाल और असम को मिलाकर एक नया प्रान्त बनाया गया.
- जिसमें राजशाही, चटगांव और ढाका के तीन डिवीजन सम्मिलित थे.
- दूसरी ओर एक अन्य प्रान्त पश्चिमी बंगाल, जिसमें बिहार और उड़ीसा सम्मिलित थे, अस्तित्व में आया.
- पूर्वी बंगाल का मुख्य कार्यालय ढाका में था और यह एक लेफ्टिनेंट के अधीन था.
- इसमें एक करोड़ अस्सी लाख मुसलमान और एक करोड़ बीस लाख हिन्दू निवास करते थे.
- पश्चिमी बंगाल में चार करोड़ बीस लाख हिन्दू और मात्र 90 लाख मुसलमान निवास करते थे.
- शीघ्र ही कर्जन की यह राजनीतिक चाल जगजाहिर हो गई कि बंगाल का विभाजन हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य को बढ़ावा देने के लिए किया गया है.
- लॉर्ड कर्जन के इस कार्य का तीव्र विरोध हुआ.
- 1911 में यह विभाजन रद्द कर दिया गया.
लॉर्ड कर्जन की विदेश नीति (The Foreign Policy of Lord Curuon)
- लॉर्ड कर्जन एक साम्राज्यवादी गवर्नर जनरल था.
- उसने एशिया के अन्य देशों के प्रति अपनी नीति को स्पष्ट करते हुए कहा था कि हम इन देशों पर अपना अधिकार नहीं करना चाहते, किन्तु हम यह भी नहीं चाहेंगे कि कोई अन्य शक्ति इन क्षेत्रों पर अपना प्रभाव स्थापित करे.
- लॉर्ड कर्जन के इस कथन के परिप्रेक्ष्य में उसकी विदेश नीति का अध्ययन किया जा सकता है.
फारस की खाड़ी के प्रति नीति
- फारस की खाड़ी में स्थित अंग्रेजी रेजिडेन्ट खाड़ी देशों के आपसी विवादों में मध्यस्थता का कार्य करते थे.
- अंग्रेजों की फारस की खाड़ी में साम्राज्य विस्तार की कोई योजना नहीं थी, किन्तु उन्हें यह स्वीकार्य नहीं था कि कोई अन्य शक्ति इस प्रदेश में अपना प्रभुत्व स्थापित करे.
- 19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में रूस, फ्रांस, जर्मनी और तुर्की ने इस क्षेत्र पर अपना-अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए अभियान आरम्भ कर दिए, किन्तु लॉर्ड कर्जन ने शीघ्र ही फ्रांस, रूस, जर्मनी और तुर्की के इन अभियानों को निष्फल कर दिया और नवम्बर-दिसम्बर, 1903 तक पुनः इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया.
तिब्बत के प्रति नीति
- लॉर्ड कर्जन के भारत आगमन तक आंग्ल-तिब्बत संबंध गतिरोध की स्थिति में पहुंच चुके थे.
- एक तरफ चीनी प्रभुसत्ता को तिब्बत स्वीकार नहीं करता था दूसरी ओर तिब्बत पर रूस का प्रभाव बढ़ता जा रहा था.
- लॉर्ड कर्जन ने तिब्बत पर रूसी प्रभाव को समाप्त करने के लिए सितम्बर, 1904 में तिब्बत को अपने प्रभुत्व में ले लिया.
- इस पराजय के बाद तिब्बत को युद्ध क्षति के रूप में एक लाख रुपये वार्षिक की दर से 75 लाख रुपये देने थे.
- इसकी जमानत के रूप में अंग्रेजों ने सिक्किम और भूटान के मध्य स्थित चुम्बीघाटी को अपने अधिकार में ले लिया.
- इसके अलावा यह भी निश्चय हुआ कि तिब्बत इंग्लैंड के अलावा किसी अन्य विदेशी शक्ति को रेलवे, सड़के और तार इत्यादि की स्थापना में रियायतें नहीं देगा.
- भारत सचिव के भारी दबाव के कारण 1908 में चुम्बीघाटी पर से ब्रिटिश नियंत्रण उठा लिया गया.
कर्जन-किचनर विवाद (Curzon-Kitchener Controversy)
- वायसराय की परिषद् में सैनिक विभाग की ओर से दो अधिकारी होते थे-
- प्रधान सेनापति, जो सेना का प्रशासक और मुखिया होता था.
- साधारण कार्यकारी पार्षद या सैनिक सदस्य, जो सेना के प्रशासन का कार्यवाहक होता था. वह गवर्नर जनरल को सैनिक मामलों में मंत्रणा भी देता था.
- 1902 में लॉर्ड किचनर को भारत का प्रधान सेनापति बनाया गया.
- लॉर्ड किचनर सैनिक सदस्य के पद का उन्मूलन करके उसके सभी कार्य अपने अधिकार में लेना चाहता था, लेकिन लॉर्ड कर्जन ने इसका तीव्र विरोध किया.
- यह विवाद बढ़ता ही गया और अंत में यह तय हुआ कि सैनिक सदस्य का पद समाप्त नहीं किया जाएगा किन्तु यह पद अब सैनिक सम्भरण सदस्य का कर दिया गया जिसका मुख्य कार्य असैनिक था सैनिक नहीं.
- मुख्य सैनिक कार्य अब प्रधान सेनापति के अधीन कर दिए गए.
मूल्यांकन (Evaluation)
- लॉर्ड कर्जन एक सामाज्यवादी गवर्नर जनरल था.
- उसकी ह एवं विदेश नीतियां केवल इस भावना से प्रेरित थी कि भारत में अंग्रेजों की स्थिति को अधिकाधिक सुदृढ़ बनाया जाए.
- वह रूस, जर्मनी और फ्रांस के फार की खाड़ी में बढ़ते हुए प्रसार को रोकने में सफल रहा.
- वह शिक्षा पर अत्यधिक सरकारी नियंत्रण का पक्षपाती थी.
- उसने सिंचाई, धूमिकर, कृषि, रेलवे, राजस्व और मुद्रा टंकण संबंधी आर्थिक नीतियों में दक्षता पर अधिक तथा जनता की दयनीय स्थिति को सुधारने पर कम बल दिया.
- उसके साम्राज्यवादी उद्देश्यों से भारत में राजनीतिक अशान्ति बढ़ी.
- अगस्त, 1905 में उसने त्यागपत्र दे दिया.