सिन्धु घाटी की सभ्यता (Indus Valley Civilization) प्राचीन भारत (ANCIENT INDIA)
- 1922 ई. के पूर्व यही माना जाता रहा है कि “आर्य सभ्यता” ही भारत की प्राचीनतम सभ्यता थी.
- मगर 1922-23 ई. में जब डॉ. आर. डी. बैनर्जी की देखरेख में मोहनजोदाड़ो (पाकिस्तान) में खनन कार्य शुरू हुआ तो एक आर्ये पूर्व सभ्यता प्रकाश में आयी .
- इसके बाद विभिन्न स्थानों पर खुदाई हुई व इस सभ्यता से सम्बन्धित सामग्री प्राप्त हुई, क्योंकि इस सभ्यता के आरम्भिक अवशेष सिन्धु नदी की घाटी से प्राप्त हुए अतः इसे ‘‘सिन्धु घाटी की सभ्यता” (Indus Valley Civilization) का नाम दिया गया.
- परन्तु जब बाद में देश के अन्य भागों लोथल (गुजरात), कालीबंगा (राजस्थान), रोपड़ (पंजाब), बनवाली (हरियाणा), आलमगीर पुर (उत्तर प्रदेश) आदि स्थानों से इस सभ्यता के अवशेष मिले तो कई विद्वानों ने इसे “आर्य पूर्व भारतीय सभ्यता’ (PreAryan Indian Civilization) कहना उचित समझा क्योंकि इससे सिद्ध हो गया था कि यह सभ्यता सिन्धु घाटी तक ही सीमित नहीं थी.
- इस सभ्यता से सम्बन्धित विभिन्न स्थानों की समय-समय पर खुदाई की गयी-मोहन जोदड़ो-1921-27 ई. डा. आर. डी. बैनर्जी द्वारा हड़प्पा (पाकिस्तान) 1921-34 श्री एम. एस. वत्स व बाद में सर मोर्टिमर व्हीलर द्वारा, चन्दड़ो (पाकिस्तान) 1931 ई. में खोज व 1935-36 ई. में खुदाई, कालीबंगा (राजस्थान), 1961 से 1969 ई. श्री बी.बी. लाल तथा श्री बी.के. थापर द्वारा व 1970 में चण्डीगढ़ से भी इस सभ्यता से मिलते जुलते अवशेष प्राप्त हुए हैं.
- इनके अतिरिक्त रोपड़ (पंजाब), वनवाली (हरियाणा), रंगपुर व लोथल (सौराष्ट्र-गुजरात) आलमगीर-पुर (उत्तर प्रदेश), सुतकागेंडोर व आमरी (पाकिस्तान) आदि स्थानों से इस सभ्यता के अवशेष मिलते हैं.
सिन्धु घाटी सभ्यता की नगर योजना
- सिन्धु घाटी सभ्यता की महत्वपूर्ण विशेषता यहाँ की नगर योजना थी.
- मोहनजोदाड़ो व हड़प्पा इसके प्रमुख नगर थे.
- इनके शासक वर्ग के परिवार हेतु अपने-अपने दुर्ग व इनके बाहर उससे निम्न स्तर के शहर में सामान्य लोग इंटों के मकानों में रहते थे.
- नगरों में सड़कें व मकान विधिवत् बनाये गये थे.
- सड़कों पर रोशनी का प्रबन्ध था तथा सफाई की भी यहाँ उचित व्यवस्था थी.
- गन्दे पानी के निकास हेतु नालियों की व्यवस्था थी.
भवन
- यहाँ के भवन प्रायः पक्की ईटों के बने हुए थे.
- भवन संम्भवतः एक से अधिक मंजिलों के रहे होंगे.
- ये सड़क के किनारों पर बने थे तथा प्रवेश गलियों से होता था.
- बड़े भवन लगभग 85 फुट चौड़े, 97 फुट लम्बे थे तथा इनके आंगन 32 वर्ग फुट के थे.
- मोहनजोदाड़ो में सबसे बड़ा भवन अनाज का गोदाम जो 45.71 मी. लंबा, तथा 15.23 मी. चौड़ा है.
- हड़प्पा में ऐसे ही मगर इससे छोटे छहः कोठार मिले हैं जो 15.23 मी. लम्बे तथा 6.09 मी. चौड़े हैं.
- एक खाली जगह लगभग 90 फुट लम्बी चौड़ी, जिसके 20 ईंटों की तहें आ सकती हों, पाई गयी है. घरों में सम्भवत् खिड़कियां नहीं रखी जाती थीं.
- द्वारों की माप 3’4” से 7’10” है.
- खड़िया मिट्टी, जिप्सम (Gypsum) तथा गारे का प्रयोग पलस्तर के लिये किया जाता था.
विशाल स्नानागार
- यह मोहनजोदाड़ो में सबसे महत्वपूर्ण स्थल है.
- ईंटों से बना यह स्नानागार 11.88 मी. लम्बा, 7.01 मी. चौड़ा तथा 2.43 मी. गहरा है.
- इसके दोनों सिरों पर तल तक सीढ़ियां बनी हैं व बगल में कपड़े बदलने हेतु कमरे हैं.
- यहाँ मिले ‘हमाम’ से ज्ञात होता है कि गर्म पानी की भी यहाँ व्यवस्था की जाती थी.
- इसके निकट आठ (8) कुएं मिले हैं जो सम्भवतः इस स्नानागार में पानी भरने हेतु प्रयोग किये जाते थे.
- इसमें से पानी के निकास की भी उचित व्यवस्था थी.
- पास के कमरे में एक बड़ा कुआं सम्भवत् हौज को भरने व स्त्रियों के स्नान करने हेतु प्रयोग किया जाता था.
- यह स्नानागार सम्भवतः धार्मिक अनुष्ठान सम्बन्धी स्नान के लिये बना होगा जो भारत में हर धार्मिक कर्म में आवश्यक रहा है.
सड़के
- यहां की सड़के 13 1/2 फुट से 33 फुट तक चौड़ी थी.
- सभी सड़कें पूर्व से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण को जाती हुई एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं.
- नगरों में सड़कों पर रात को रोशनी की भी व्यवस्था की गयी थी.
- सम्भवतः मशालें जलाई जाती थीं.
- सड़कों का विन्यास (layout) ही ऐसा था कि हवा स्वयं ही सड़कों को साफ करती रहे.
नालियाँ
- गन्दे पानी के निकास हेतु भवनों की ऊपर की मंजिलों से पाइपों का प्रयोग किया जाता था.
- गलियों की छोटी नालियां एक फुट चौड़ी व 2 फुट गहरी थी.
- ये नालियां पानी को मुख्य सड़कों के किनारे बनी बड़ी नालियों में ले जाती थीं तथा ये बड़ी नालियां पानी को नगर से बाहर नालों में ले जाती थीं.
- नालियों को ऊपर से ईंटों से इस प्रकार ढका भी जाता था कि सफाई हेतु इन ईंटों को सरलता से उठाया जा सके.
जल वितरण
- मोहनजोदाड़ो के निवासियों ने जल वितरण का अति उत्तम ढंग अपनाया था.
- यहाँ अत्यधिक संख्या में कुएं पाये गये हैं.
- कुछ घरों में अपने कुएं थे तथा कई कुएं सार्वजनिक थे.
- लगभग सभी नगरों के छोटे या बड़े मकानों में प्रांगण व स्नानागार थे.
- कालीबंगा के अनेक घरों में अपने-अपने कुएं थे.
कूड़ेदान
- नगरों में सफाई की विशेष व्यवस्था रही होगी.
- यह जगह-जगह पर बने कूड़ेदानों से पता चलता है.
- कुछ घरों का सार्वजनिक कूड़ादान मध्य में होता था तथा इस कूड़े को नगर से बाहर ले जाकर जला दिया जाता था.
- आज से 5000 वर्ष पूर्व भारत में ऐसे नगर थे जिनकी नगर योजना इतनी उन्नत थी – वास्तव में यह जान कर आश्चर्य होता है.
- इस सभ्यता के लोगों के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन का वितरण इस प्रकार
सामाजिक जीवन
- इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता कि उस समय लोग वर्ण या जातियों में विभक्त थे.
- मगर मोहनजोदाड़ो की खुदाई से पता चलता है कि लोग कई वर्गों में विभक्त थे.
- प्रथम वर्ग में शासकीय श्रेणी के लोग, दूसरे में योद्धा, तीसरे में व्यापारी व चौथे वर्ग में अन्य सामान्य किसान, मजदूर आदि आते थे.
- यहां के लोग मांसाहारी व शाकाहारी भी थे.
- वे दूध से बनी वस्तुएं गेहूँ, जौ, मछली, मांस, कछुए आदि खाते थे.
- उनकी पोशाक का मिट्टी के बर्तनों पर बनी आकृतियों से पता चलता है. वे अवश्य ही सूती और ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे.
- स्त्रियां प्रायः घाघरे और अंगरखे का प्रयोग करती थीं.
- मोहनजोदड़ो से मिले एक दाढ़ी वाले पुरुष के चित्र से स्पष्ट है कि पुरुष दायें कन्धे से नीचे से होकर बाएं कन्धे के ऊपर तक पहुंचने वाले दुपट्टे या शाल का प्रयोग करते थे.
- वे कमर पर एक पट्टी बांधा करते थे.
- बालों को विशेष ढंगों से संवारा जाता था.
- स्त्रियां क्लिपों का प्रयोग करती थीं.
- कंघी का प्रयोग भी निःसन्देह होता था.
- पुरुष प्रायः गलमुच्छे और दाढ़ियां रखते थे.
- अमीर लोग सोने, चांदी, हाथी दांत आदि के हार, कंगन अंगूठी, तगड़ी, नाक, कान के आभूषण आदि का प्रयोग करते थे.
- सामान्य लोगों के आभूषण सीपियों, हड्डियों, तांबे, पत्थर आदि के बने होते थे.
- स्त्रियों को आभूषण पहनने का बड़ा चाव था.
- सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों को घर के अन्दर के मनोरंजन (Indoor hobbies) पसंद थीं.
- उन्हें नाच-गान अधिक पसंद था-मोहनजोदाड़ो से नर्तकी की मूर्ति और अन्य कई स्थानों के बांसुरी ढोलक आदि के अवशेषों से यह ज्ञात होता है.
- वे पासा (Game of Dice) भी खेलते थे.
- बच्चे खिलौनों में रुचि लेते थे जो टेरा कोटा (Terra-cotta) के बने होते थे.
- क्योंकि वे मांसाहारी थे अतः वे शिकार भी खेलते होंगे.
- कुछ मोहरों से भी उनके शिकार खेलने के प्रमाण मिले हैं.
- उस समय के कुछ मृदभांड (Urns) मिले हैं जिसमें मृतक को जलाकर उसकी अस्थियां च राख रखी जाती थी.
- सर ऑरेल स्टीन (Sir Aurel Stein) को भी बलूचिस्तान (Baluchistan) से इस प्रकार के मृदभांड (Urns) प्राप्त हुए हैं.
- मृतकों को प्रायः दफनाया या जलाया जाता था.
- यहाँ की मोहरों की लिपि से ज्ञात होता है कि निःसन्देह वे लोग शिक्षित भी थे.
आर्थिक जीवन
- मोहनजोदाड़ो व अन्य नगरों से प्राप्त महत्वपूर्ण तथ्य इनके आर्थिक जीवन पर प्रकाश डालते हैं.
- वे लोग गेहूँ, जौ, चावल, कपास व सब्जियों का उत्पादन करते थे.
- यहाँ की भूमि उपजाऊ थी तथा सिंचाई की सुविधाएँ भी उपलब्ध थीं.
- लोग गाय, भैंस, हाथी, ऊंट, बैल, भेड़, बकरी, सूअर, कुत्ता आदि पालते थे.
- उद्योगों में सूती व ऊनी कपड़े का विशेष स्थान था.
- नगरों में कताई या बुनाई का सामान मिला है.
- कई घरों में लोगों ने इस व्यवसाय को अपनाया हुआ था.
- लोग सोना, चांदी, कांसा, तांबा, टिन आदि धातुओं से विभिन्न आभूषण व वस्तुएं बनाते थे.
- मिट्टी के बर्तन भी बनाये जाते थे जिन्हें भट्टी में पकाया जाता था.
- मोहन जोदड़ो, हड़प्पा, लोथल आदि प्रमुख नगर उस समय के प्रमुख व्यापारिक केन्द्र रहे होंगे.
- ये लोग व्यापार हेतु बैलगाड़ियों तथा नावों का प्रयोग भी करते थे.
- हड़प्पा संस्कृति के लोगों की मोहरें, वस्तुएं आदि पश्चिमी एशिया तथा मित्र में मिली हैं अतः इनसे उनका व्यापार चलता था.
- यहां से तांबा, हाथी दांत, मोती आदि निर्यात किये जाते थे.
- उन लोगों के नाप-तोल के साधन बड़े ही उचित (Accurate) थे.
- मोहनजोदड़ो से एक कांसे की छड़ (Bronze rod) मिली है जिसे 0.264 इंच की इकाइयों में बांटा गया है. जिसमें केवल .003 इंच का ही अन्तर है.
- एक अन्य मापक (Scale) डेसी मी. (Decimetre) में, 13.2” का एक फुट है. तोलने के लिये वे प्रायः पत्थर के वाटों का प्रयोग करते थे.
राजनीतिक जीवन
- इस संस्कृति के राजनैतिक संगठन का हमें कोई आभास नहीं है.
- हड़प्पा संस्कृति और सिन्धु सभ्यता की सांस्कृतिक एकता इसके सारे क्षेत्र में अनेक बातों से स्पष्ट है, जैसे मृदभांड के स्वरूप, घनमाप, कंगन, पशुओं की मूर्तियां आदि.
- सुदूर व्यापार के साक्ष्य तो इसको और भी सुदृढ़ करते हैं.
- ऐसी सांस्कृतिक एकता किसी केन्द्रीय सत्ता के बिना सम्भव नहीं हुई होगी.
- स्टूआर्ट पिग्गाँट (S. Piggot) के अनुसार ‘‘हड़प्पा के साम्राज्य पर दो राजधानियों द्वारा शासन किया जाता था जो एक दूसरे से 350 मील की दूरी पर थीं. किन्तु दोनों नगर एक नदी द्वारा जुड़े हुए थे. ……उन दोनों नगरों को पृथक नगर राज्य नहीं माना जा सकता. हम अधिक-से-अधिक उसे दो राजधानियों वाला राज्य कह सकते हैं.”
- पिग्गॉट (Piggot) ने इस विषय में यह भी लिखा है कि हड़प्पा से प्राप्त प्राचीन सामग्री के आधार पर एक ऐसे राज्य की कल्पना करना स्वाभाविक प्रतीत होता है जिसका शासन पूर्ण और निरंकुश सत्ता प्राप्त पुरोहित राजा दो राजधानियों से चलाते थे.
- ये दोनों राजधानियां नौका वाहन के योग्य नदी के किनारे बसी थीं.
- सर मोर्टीमर व्हीलर के अनुसार “सुमेर और अक्काद पुरोहित राजा (Priest kings) के समान ही हड़प्पा के स्वामी अपने नगरों का शासन चलाते थे.”
धार्मिक जीवन
- सिन्धु घाटी से प्राप्त ताम्र-लेखों, पत्थर की छोटी मूर्तियों, मोहरों और मिट्टी की मूर्तियों के अध्ययन से यहाँ के लोगों के धर्म का कुछ अनुमान लगाया जा सकता है.
- एक मूर्तिका में स्त्री के गर्भ से निकलता एक पौधा दिखाया गया है.
- यह सम्भवतः पृथ्वी देवी की प्रतिमा है जिसे यहां के लोग उर्वरता देवी समझते थे.
- इन मूर्तियों को माता भगवती का ही प्रतिरूप माना गया है.
- इसी प्रकार की मूर्तियां दक्षिणी बलूचिस्तान की कुल्ली संस्कृति और उत्तरी बलूचिस्तान की झोब की घाटी (Zhob Valley) से प्राप्त हुई है.
- माता भगवती के अतिरिक्त यहां पर पशुपति महादेव, लिंग, वृक्षों व पशुओं की भी पूजा की जाती थी.
- एक मोहर में पद्मासन लगाये बैठे पशुपति महादेव के सिर पर तीन सींग हैं व उसके चारों ओर एक हाथी, एक बाघ, एक गैंडा, आसन के नीचे एक भैंसा है और पाँवों पर दो हिरण हैं.
- हड़प्पा में पत्थर पर बने लिंग और योनि के अनेक प्रतीक मिले हैं.
- ऋग्वेद में भी लिंग पूजक अनार्य जातियों की चर्चा है.
- अतः लिंग पूजा हड़प्पा काल में शुरू हुई थी और आगे चल कर हिन्दू धर्म में पूजा की एक विशिष्ट विधि मानी जाने लगी.
- एक मुद्रा पर पीपल की डालों के बीच में विराजमान देवता चित्रित हैं.
- इस वृक्ष की पूजा आज तक जारी है.
- पशुपति महादेव के चित्र के साथ पशुओं का चित्रित होना व अन्य कई मृन्मुद्राओं (Seals) पर पशुओं के चित्र मिलना इस बात का प्रतीक है कि संम्भवतः उस समय पशुओं की भी पूजा की जाती थी.
- बहुत अधिक संख्या में ‘‘तावीज’ (Amulets) मिलना इस बात का प्रतीक है कि वे लोग भूत-प्रेत, अन्धविश्वास व जादू टोनों में विश्वास रखते थे.
- फिर भी जब तक सिन्धु घाटी की लिपि नहीं पढ़ी जाती तब तक हड़प्पाई लोगों के धार्मिक विश्वासों के विषय में निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता है.
कला
- हड़प्पा या सिन्धु सभ्यता की कुछ मूर्तियों की कला यूनान की कला की भांति उत्कृष्ट है.
- वास्तव में यहां के निवासियों को विभिन्न कलाओं का ज्ञान था.
- ‘‘कांसा” (Bronze), तांबा (Copper) तथा टिन को मिलाकर यहाँ के धातु शिल्पियों द्वारा ही बनाया गया था.
- अतः हड़प्पा समाज के शिल्पियों में कसेरों (कांस्य शिल्पियों) को विशेष स्थान प्राप्त था.
- वे प्रतिमाओं और बर्तनों के साथ-साथ कई औजार व हथियार भी बनाते थे-कुल्हाड़ी, आरी, छुरा, बरछा आदि.
- वहां की नगर योजना व सुव्यवस्थित बने भवनों से उस समय की ‘‘भवन निर्माण कला” (Architecture) की झलक मिलती है तथा भवन बनाने वाले राजगीरों के वर्ग का भी आभास मिलता है.
- मुद्रा निर्माण व मूर्तिका-निर्माण भी महत्वपूर्ण शिल्प थे.
- सोना, चांदी, रत्नों के आभूषण बनाने का भी उन्हें ज्ञान था.
- यहां के कारीगर मणियों के निर्माण में निपुण थे तथा कुम्हार के चाक का भी खूब प्रचलन था.
- मोहनजोदड़ो से मिली मातृ देवी की मूर्ति, नाचती हुई लड़की (Dancing Girl) की धातु की मूर्ति आदि मूर्तिकला के उत्कृष्ट नमूने हैं.
- उस समय के लोगों को नृत्य व संगीत कला में भी विशेष रुचि थी.
- ढोलक व बांसुरी उनके लोकप्रिय वादक यन्त्र रहे होंगे.
- उन लोगों को चित्रकला का भी उत्कृष्ट ज्ञान था.
- वे कपड़ों तथा बर्तनों पर विभिन्न प्रकार की चित्रकारी करते थे.
- सिन्धु घाटी की लिपि से ज्ञात होता है कि उन लोगों को लेखन कला भी ज्ञान था.
सिन्धु लिपि
- इस लिपि का सबसे पुराना नमूना 1853 ई. में मिला था और 1923 ई. तक यह पूरी तरह प्रकाश में आ चुकी थी.
- इस लिपि में कुल मिला कर 60 मूल अक्षर तथा 250 से 400 तक चित्राकार (Pictographs) हैं.
- चित्र के रूप में लिखा हर अक्षर किसी ध्वनि, वस्तु या भाव का सूचक है.
- यह लिपि वर्णात्मक नहीं, बल्कि मुख्यतः चित्र-लेखात्मक है.
- मेसोपोटामिया और मिश्र की समकालीन लिपियों से इसकी तुलना करने का प्रयास किया गया है परन्तु यह तो सिन्धु प्रदेश का देशी आविष्कार है, और पश्चिम एशिया की लिपियों को इससे कोई सम्बन्ध दिखाई नहीं देता है.
सिन्धु लिपि का पढ़ना
- सिन्धु लिपि एक पहेली बन कर रह गयी है.
- हण्टर (Hunter) और लैंग्डन (Langdon) का मत है कि सिन्धु लिपि ब्राह्मी लिपि का ही प्रतिरूप है.
- कुछ इसे द्रविड़ या आद्य द्रविड़ भाषा से जोड़ने का प्रयास करते हैं, कुछ संस्कृत से तो कुछ सुमेरी भाषा से.
- परन्तु इन पठनों में से कोई भी सन्तोषप्रद नहीं है.
- व्हीलर (Wheeler) के अनुसार “हमें आवश्यकता है-एक द्विभाषी शिलालेख की जिसमें एक भाषा का हमें पूर्ण ज्ञान हो, या एक लम्बा शिलालेख जिसमें कुछ महत्वपूर्ण भाग बार-बार प्रयोग किये गये हों. वर्तमान शिलालेखों में से अधिकांश छोटे हैं और उनमें औसतन छहः अक्षर हैं, सबसे लम्बे शिलालेख में भी केवल 17 (सत्तरह) अक्षर हैं.” .
- अतः सिन्धु लिपि तब तक रहस्य ही रहेगी जब तक बहिस्तान तथा ‘रोजेट्टा स्टोन’ (Rosetta Stone) (सुमेर, व मिस्त्र के त्रिभाषी अभिलेख) जैसी भाग्यशाली वस्तु की खोज न की जाए.
मृदभांड
- मिट्टी के बरतन प्रायः कुम्हार के चाक द्वारा ही बनाये जाते थे.
- इन्हें लाल व काले रंग से रंगा जाता था. कुछ बरतनों को चमकीला, चिकना और नक्काशीदार बनाया जाता था.
- इस घाटी के चमकीले बर्तन संसार में इस ढंग के बर्तनों में सबसे अधिक पुराने हैं.
- बर्तनों पर आमतौर से वृत, वृक्ष या मनुष्याकृतियां मिलती हैं.
मुद्राएं, प्रतिमाएं और मृण्मूर्तिकाएं
- खुदाई से अब तक प्राप्त लगभग 2000 मोहरों में से अधिकांश पर लघु लेखों के साथ-साथ एकसिंगी सांड, भैंस, बाघ, बकरी और हाथी की आकृतियां उकेरी हुई हैं.
- कांसे की नर्तकी की मूर्ति जिसके गले में हार पड़े हैं व शेष शरीर नग्न है, सेलखड़ी की एक मूर्ति जिसके शरीर पर अलंकृत वस्त्र हैं आदि प्रतिमाएं भी हमें खुदाई से प्राप्त हुई हैं.
- पकी मिट्टी की बनी मूर्तियों में पक्षी, कुत्ते, भेड़, गाय-बैल, बन्दर, पुरुष और स्त्रियों की प्रतिकृतियाँ हैं.
- लेकिन प्राचीन मिस्त्र और मेसोपोटामिया की तरह यहाँ हम कोई महान प्रस्तर प्रतिमा नहीं पाते हैं.
सिन्धु घाटी के लोग
- सिन्धु घाटी के लोग किस जाति के थे इस विषय में विद्वानों के विभिन्न मत हैं.
- कुछ के अनुसार वे ‘सुमेर’ से आये थे तो कुछ उन्हें ‘द्रविड़’ तथा कुछ ‘आर्य’ मानते हैं जो भारतवर्ष से पश्चिमी एशिया गये.
- सम्भव है कि वे विभिन्न जातियों के थे.
- उनके किसी एक ही जाति का होने की सम्भावना कम ही है.
सिन्धु घाटी की सभ्यता का काल
- सर जॉन मार्शल, मॉर्टीमर व्हीलर तथा उन्हीं की विचारधारा के अन्य विद्वानों ने इसका काल 2500 ई. पू. से 1500 ई. पू. माना है.
- डा. सी. एल. फैब्री के अनुसार यह काल 2800 ई. पू. से 2500 ई. पू. था.
- मोहनजोदड़ो के सात स्तरों (क्योंकि इसकी तहों से पता चलता है कि यह सात बार बसा व उजड़ा था) के अध्ययन से ज्ञात होता है कि इसका काल 3250 से 2550 ई. पू. और 2200 ई. पू. के बीच रहा होगा.
- दूसरी समकालीन सभ्यताओं से इसकी तुलना करके अनुमान लगाया गया है कि इस सभ्यता का विकास 2800 ई. पू. से 2200 ई. पू. तक हुआ होगा.
- इसकी मेसोपोटामिया की सभ्यता से तुलना करने पर समकालीन पाया गया है.
सिन्धु सभ्यता के विनाश का कारण
- ऐतिहासिक प्रमाण तथा लिखित विवरणों के अभाव के कारण इस विषय में महामारियां, सूखा पड़ जाना, बाढ़ आना, भूकंप, विदेशी आक्रमण आदि इस सभ्यता के विनाश के कारण माने गये हैं.
- परन्तु यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि इस सभ्यता का विनाश कैसे हुआ.
- हो सकता है उपयुक्त सभी कारण आंशिक रूप से इसके नाश के उत्तरदायी हों.
महत्वपूर्ण स्मरणीय तथ्य
काल निर्धारण
विद्वान | काल |
जॉन मार्शल | 3250-2750 ई. पू. |
माधोस्वरूप वत्स | 3500-2700 ई. पू. |
अर्नेस्ट मैके | 2800-2500 ई. पू. |
मार्टिमर हीलर | 2500-1500 ई. पू. |
फेयर सर्विस | 2000-1500 ई. पू. |
सी. जे. गैड | 2350-1700 ई. पू. |
|
सिन्धु सभ्यता के निर्माता
- इस विषय पर विद्वानों में मतैक्य नहीं है. कुछ विद्वानों के मत इस प्रकार है.
- राखाल दास बनर्जी इस सभ्यता के निर्माता के रूप में द्रविड़ों को मानते
- हीलर का मानना है कि ऋग्वेद में वर्णित दस्यु एवं ‘दास’ सिंधु सभ्यता के निर्माता थे.
- डा. लक्ष्मण स्वरूप और रामचन्द्र सिंधु सभ्यता एवं वैदिक सभ्यता दोनों के निर्माता के रूप में आर्यों को मानते हैं.
- गार्डन चाइल्डा सिंधु सभ्यता के निर्माता के रूप में सुमेरियन लोगों को मानते हैं.
- डॉ. रमा शंकर त्रिपाठी का कहना है कि ‘ऐतिहासिक ज्ञान की इस सीमा पर खड़े होकर अभी इस विषय पर हमारा मौन ही उचित व सराह्य है.
नदियों के किनारे बसे नगर
नगर | नदी/सागर तट |
मोहनजोदड़ों | सिंधु नदी |
हड़प्पा | रावी नदी |
रोपड़ | सतलुज नदी |
कालीबंगा | घग्घर नदी |
लोथल | भोगवा नदी |
सुल्कागेंडोर | दाश्क नदी |
बालाकोट | अरब सागर |
सोकाकोह | अरब सागर |
आलमगीरपुर | हिन्डन नदी |
रंगपुर | मादर नदी |
कोटदीजी | सिंधु नदी |
प्रमुख स्थल एवं उनके खोजकर्ता
प्रमुख स्थल | खोजकर्ता | वर्ष |
हड़प्पा | माधो स्वरूप वत्स,दयाराम साहनी . | 1921 |
मोहनजोदड़ो | राखालदास बनर्जी | 1922 |
चन्हूदड़ो | गोपाल मजूमदार | 1931 |
सुरकोतडा | जगपति जोशी | 1967 |
बनवाली | रवीन्द्र सिंह विष्ट | 1973 |
आलमगीरपुर | यज्ञदत्त शर्मा | 1958 |
कोटदीजी | फजल अहमद | 1953 |
सुत्कागेंडोर | ऑरेल स्टाइन | 1927 |
रोपड़ | यज्ञदत्त शर्मा | 1953 |
लोथल | रंगनाथ राव | 1954 |
कालीबंगा | ब्रजवासी लाल | 1961 |
रंगपुर | माधोस्वरूप वत्स,रंगनाथ राव | 1931-1953 |
विभिन्न क्षेत्रों से आयातित कच्चे माल
कच्चा माल | क्षेत्र |
टिन | अफगानिस्तान,ईरान |
तांबा | खेतड़ी (राजस्थान), ब्लूचिस्तान |
चांदी | ईरान, अफगानिस्तान |
सोना | अफगानिस्तान, फारस, दक्षिणी भारत |
सीसा | ईरान, अफगानिस्तान, राजस्थान |
शिलाजीत | हिमालय क्षेत्र |
लाजवर्द | मेसोपोटामिया |
सेलखड़ी | ब्लूचिस्तान, राजस्थान, गुजरात |
नीलरत्न | बदख्शा |
नीलमणि | महाराष्ट्र |
हरितमणि | दक्षिण एशिया |
शंख तथा कौड़ियाँ | सौराष्ट्र, दक्षिणी भारत |
सभ्यता के पतन के कारण
पतन का कारण | मत के संस्थापक |
नदी की शुष्कता | शूद और अग्रवाल |
अस्थिर नदी-तंत्र | लैम्ब्रिक |
जलवायु-परिवर्तन | आरेल स्टीन और ए.एन.घोष |
प्राकृतिक आपदा | के.यू.आर. केनेडी |
भूकम्प | रेइक्स |
पारिस्थितिक असंतुलन | फेयर सर्विस |
आर्यों का आक्रमण | आर. मार्टीमर व्हीलर |
बाह्य आक्रमण | गार्डन चाइल्ड, स्टुवर्ट पिगट |
प्रमुख स्थल एवं वहाँ से प्राप्त सामग्री एवं विशेषताएँ
हड़प्पा
समाधि “R-37”, शंख का बना बैल, पीतल का इक्का, एक बर्तन पर मछुआरे का चित्र, कारीगरों के शरण स्थल, कांसे की घरिया, एक सीध में छह अन्नागार, कांसे का आईना, सोलह भट्ठियाँ, अंजन शलाका,
आदमी का नग्न धड़ प्रतिमा (लाल पत्थर की बनी), स्त्री के गर्भ से निकलता हुआ पौधा, गेहूँ तथा जौ के दानों के अवशेष 12 फीट का पैमाना, स्वास्तिक चिन्ह .
मोहनजोदड़ो
कुम्भकार के 6 भट्टे, सूती कपड़ा, हाथी का कपाल, गले हुए तांबे के ढेर, सीपी की बनी हुई पटरी (Scale), कांसे की नृत्य करती हुई स्त्री, पत्थर पर खुदी नाव का चित्रांकन, मिट्टी की ताबीज पर पानी का जहाज, मिट्टी की गाड़ी, मिट्टी का बंदर, पाशा, गीली मिट्टी पर कपड़े के साक्ष्य, पुजारी की मूर्ति, पशुपति नाथ (शिव) की मूर्ति, अंतिम स्तर पर बिखरे हुए एवं कुएँ से प्राप्त नर कंकाल .
चन्हुदड़ो
मुहर उत्पादन केन्द्र, मिट्टी की बनी बैलगाड़ी का प्रतिरूप, औद्योगिक शहर, दवात, कांसे का खिलौना, सौन्दर्य प्रसाधनों में प्रयुक्त लिपिस्टिक, वक्राकार ईटें, मोर की आकर्षक आकृति वाले मिट्टी के बरतन..
लोथल
बंदरगाह, तीन युग्म शवाधान, अन्नागार, गोदाम भवन, मनका बनाने का कारखाना, धान की खेती, सोने के मनके, फारस की बेलनाकार मुहर, घोड़े की लघु मृण्मूर्ति, हाथी दाँत .
सुरकोटड़ा
बर्तन में शवाधान, घोड़े की हड्डियाँ.
कालीबंगा
जुते हुए खेत का साक्ष्य, अग्निकुंड, सबसे पहले ज्ञात भुकंप का साक्ष्य, आरंभिक हड़प्पा, चित्रित ईंट, कांच एवं मिट्टी की चुड़ियाँ, खिलौना गाड़ी के पहिए, माणिक्य एवं मिट्टी के मनके, शंख, साँड की खण्डित मूण्मर्ति, सिलबट्टा, मातृदेवी की मूर्ति का अभाव..
जुते हुए खेतों के उत्तर से दक्षिण वाले कुंडों में, जिसका फासला 1.10 मीटर है, में सरसों तथा पूर्व से पश्चिम वाले कुंडों में, जिसका फासला 30 से. मी. है, में चने की बुआई होती थी.
बनावली
पूर्व हड़प्पा, तथा उत्तर हड़प्पा अवस्था, स्वर्णपटित मिट्टी के मनके, तांबे की बंसी (मछली पकड़ने हेतु), मिट्टी के बने हल का प्रतिरूप, वास्तविक हल के टुकड़े, सोना परखने की कसौटी, सुव्यवस्थित अपवहन तंत्र का अभाव, बढ़िया किस्म के जौ, सड़क का अवशेष, तांबे के बाणाग्र, कालियन के मनके, चर्ट के फलक, गोलियाँ, मनके, सरसों का ढेर, नालियों का अवशेष, सेलखड़ी एवं टेराकोटा की मुहरें .
रोपड़
कुत्ते के मालिक के साथ दफनाने का साक्ष्य, आभूषण चार्ट, फलक एवं तांबे की कुल्हाड़ी.
सुत्कागेंडोर
व्यापारिक (नदी तटीय) चौकी, पश्चिम एशिया के साथ व्यापार की एक महत्वपूर्ण कड़ी, ताँबे की कुल्हाड़ी, मिट्टी की बनी चुड़ियाँ.
रंगपुर
कच्ची ईंटों के दुर्ग, बाँट, नालियाँ, धान की भूसी का ढेर .
कोटदीजी
पाक् हड़प्पा सभ्यता के अवशेष, पत्थर की नींव वाले घर, सभ्यता के मिश्रित स्तर, वाणाग्र, कांस्य की चूड़ियाँ.
बालाकोट
पूर्व हड़प्पा के अवशेष, संसाधन प्राप्ति का केन्द्र, सीपों की कार्यशाला..
अमरी
पहला स्थल जहाँ पूर्व हड़प्पा सभ्यता के चिह्न तथा परिवर्तन के चिन्हों की पहचान हुई ..
अल्लाहदीनों
गहनों का ढेर, पत्थर के विशाल दीवार की नींव, वितरण केन्द्र ..
माण्डा
उतरी सीमांत स्थल, प. एशिया के सामन द्विमुखी पिन, मूसल, चक्की.
नौशरों
आरंभिक से परिपक्व हड़प्पा काल में प्रगति के लक्षण.
कुंतासी
अन्नागार, पतन, शिल्प, उद्योग केन्द्र, साधन स्रोत केन्द्र, सीपी उद्योग केन्द्र, कार्यशाला प्रमुख का आवास.
कुणाल
गहनों का ढेर, गर्तावास.
धौलावीरा
तीन भागों में विभाजित एकमात्र शहर, घोड़े के अवशेष, नागरिक उपयोग के लिए सबसे बड़ा अभिलेख, मनके बनाने का कारखाना, खेल का मैदान, पत्थर से बनी नेवले की मूर्ति .
आलमगीरपुर
सर्वाधिक पूर्वी स्थल, सभ्यता की अंतिम अवस्था, मनके, पिण्ड, मिट्टी के बर्तन .
खर्वी
मृदभाण्ड, ताम्र आभूषण..
अलीमुराद
कुएँ, कालियन के मनके, वैल की लघु मृणमूर्ति, कांसे की कुल्हाड़ी.
रानाघुण्डई
घोड़े के दाँत.