मध्यकालीन भारत स्थापत्य कला में प्रांतीय शैलियों का योगदान (provincial style in architecture)

मध्यकालीन भारत स्थापत्य कला में प्रांतीय शैलियों का योगदान (provincial style in architecture)

स्थापत्य कला में प्रांतीय शैलियों का योगदान

बंगाल

  • यहाँ की स्थानीय शैली के अंतर्गत निर्मित अधिकांश इमारतों में पत्थर के स्थान पर ईंटों का प्रयोग किया गया.
  • बाँस की इमारतों से ली गई हिन्दू मंदिरों की लहरिएदार कार्निसो की परम्परागत शैली का मुसलमानी अनुकरण, छोटे-छोटे खम्भों पर नुकीली मेहराबें तथा कमल जैसे सुन्दर खुदाई के हिन्दू सजावट के प्रतीक चिन्हों को अपनाना बंगाली स्थापत्य कला की महत्वपूर्ण विशेषता थी.
  • महत्वपूर्ण इमारतें लखनौती, पाण्डुआ, गौड़ एवं त्रिवेनी में पायी गई हैं.

पाण्डुआ की अदीना मस्जिद

  • 1364 ई. में इसका निर्माण सुल्तान सिकन्दर शाह ने करवाया.

दाखिल दरवाजा

  • भारतीय-इस्लामी शैली के अन्तर्गत गौड़ में स्थित ईंट से निर्मित इमारतों का सर्वोत्कृष्ट नमूना है.
  • 1465 में इसका निर्माण हुआ.

जलालुद्दीन मुहम्मदशाह का मकबरा

  • पाण्डुआ में स्थित इस मकबरे को ‘लक्खी मकबरे’ के नाम से जाना जाता है.
  • इसका निर्माण हिन्दू भवनों की ईंटों से हुआ है.
  • यह मकबरा एक गुम्बद की वर्गाकार इमारत है.
  • बंगाल में चूँकि पत्थरों का अभाव था इसलिए यहाँ की अधिकांश इमारतों का निर्माण ईंटों से हुआ है.
  • ईंटों से निर्मित होने के कारण इन भवनों की आयु बहुत कम रही है.

जौनपुर

  • डा. ईश्वरी प्रसाद के शब्दों में “जौनपुर के सम्राट कला एवं विद्या के महान संरक्षक थे, जिन भवनों का निर्माण इन शासकों ने कराया है, वे उनकी स्थापत्यकला की अभिरुचि के प्रमाण हैं, वे भवन सुदृढ़, प्रभावयुक्त तथा सुन्दर हैं. उनमें हिन्दू-मुस्लिम निर्माण कला शैली के विचारों का वास्तविक एवं प्रारंभिक समन्वय है.” .

अटालादेवी मस्जिद

  • 1408 ई. में इब्राहिम शाह (शर्की) द्वारा निर्मित यह मस्जिद, कन्नौज के राजा विजयचंद्र द्वारा निर्मित द्वारा निर्मित अटालदेवी के मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी.
  • इसके ज्योतिर्मय मेहराबों तथा गुम्बदों का निर्माण हिन्दू शैली में किया गया है.

लाल दरवाजा मस्जिद

  • मुहम्मद शाह द्वारा निर्मित (1450 में) इस मस्जिद के प्रवेश द्वार के लाल रंग के होने के कारण इस लाल मस्जिद कहा जाता है.

झंझरी मस्जिद

  • 1430 ई. में इब्राहिम शर्की ने इसका निर्माण करवाया था.
  • आटाला मस्जिद की तरह ही इस मस्जिद में भी हिन्दू-मुस्लिम शैली का समन्वय हुआ.

जामी मस्जिद

  • 1470 ई. में हुसैन शाह शर्की द्वारा इस मस्जिद का निर्माण करवाया गया.
  • बड़ी मस्जिद के नाम से भी जानी जाने वाली इस मस्जिद में बने मेहराबों में बीम या लिंटर का प्रयोग तुगलक शैली में हुआ है.
  • मस्जिद में लगी जालियों से घिरी गैलरी की बनावट जौनपुर शैली की महत्वपूर्ण विशेषता है.
  • मस्जिद में लगे फव्वारों में हिन्दू शैली का प्रभाव है.

कश्मीर

  • यहाँ की स्थापत्य कला में स्थानीय शासकों ने हिन्दुओं के प्राचीन परम्परागत पत्थर एवं लकड़ी के प्रयोग को महत्व दिया.
  • वास्तुकला में हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला शैली का समन्वय है.
  • श्रीनगर स्थित मन्दानी का मकबरा का निर्माण सिकन्दर ने करवाया था.
  • बाद में जैन-उल-आबिदीन ने इसका विस्तार किया.
  • इसे पूर्व मुगल शैली का शिक्षाप्रद उदाहरण’ माना जाता है.
  • शाह हमदानी की मस्जिद पूर्णतः इमारती लकड़ी से निर्मित है.

मालवा

  • मालवा की स्थापत्य शैली, मालवा पर मुस्लिम शासकों के अधिकार के पश्चात्, दिल्ली की स्थापत्य से प्रभावित थी.
  • यहाँ के निर्मित इमारतों में दिल्ली के कारीगरों का उपयोग किया गया था.
  • मालवा स्थापत्य शैली की महत्वपूर्ण विशेषता है-नुकीले मेहराब, ढालदार दीवारें, मेहराबों में लिंटस व तोड़ों का प्रयोग (तुगलक परम्परा), गुम्बद व पिरामिड के आकार की छत (लोदी शैली से प्रभावित), ऊंची चौकियों पर निर्मित इमारतें एवं उनके प्रवेश द्वारा तक पहुँचने के लिए बनायी गई सीढ़ियों की साज-सज्जा में रंगों के प्रयोग की बहुलता.
  • मालवा शैली के अन्तर्गत निर्मित अधिकांश इमारतों का केन्द्र बिन्दु माण्डू एवं धार है.

माण्डू का किला

  • जामी मस्जिद एवं अशरफी महल हुशंगशाह द्वारा निर्मित मांडू के किले की सर्वाधिक आकर्षक इमारतें हैं.
  • जामी मस्जिद का निर्माण 1454 ई. में हुशंगशाह ने आरंभ करवाया, किन्तु महमूद खिलजी ने इसे पूरा कराया.
  • अशरफी महल का निर्माण महमूद खिलजी द्वरा 1439-69 ई. के मध्य करवाया गया.
  • किले का प्रवेशद्वार मेहराबदार है, जिसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण दिल्ली का दरवाजा है.

हिंडोला महल

  • 1425 ई. में इस महल का निर्माण हुशंगशाह ने करवाया था.
  • इस महल को ‘दरबार हाल’ के नाम से भी जाना जाता है.
  • अपने बारीक एवं स्वच्छ निर्माण के कारण यह महल काफी आकर्षक है.

जहाज महल

  • माण्डू में स्थित यह महल सुल्तान महमूद प्रथम द्वारा बनवाया गया था.
  • कपूर तालाब एवं मुंजे तालाब के मध्य स्थित यह महल जहाल की तरह दिखाई देता है.
  • यह महल अपनी मेहराबी दीवारों, छाए हुए मण्डपों एवं सुन्दर तालाबों के कारण मांडू की आकर्षक इमारत है.
  • डा. राधा कुमुद मुखर्जी ने जहाज महल तथा हिंडोला महल के बारे में लिखा है कि

‘‘मांडू के हिन्डोला महल एवं जहाज महल मध्ययुगीन भारतीय वास्तुकला के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं. इनमें इस्लामी प्रभावजन्य संरचनात्मक आधार की भव्यता व अतिविशालता तथा हिन्दू अलंकरण मोटिफों की सुन्दरता, परिकृति एवं सूक्ष्मता का विवेकपूर्ण समन्वय है.”

हुशंगाबाद का मकबरा

  • 1440 ई. में इस मकबरे का निर्माण महमूद प्रथम ने जामी मस्जिद के पीछे करवाया था.
  • मकबरे के मेहराबदार प्रवेश मार्ग के दोनों तरफ छोटी-छोटी जालीदार पर्दे वाली खिड़कियाँ बनी हैं.
  • मकबरे के ऊपर बना गुम्बद भद्दा एवं निर्जीव है.

बाज बहादुर एवं रूपमती का महल

  • 1508-09 ई. में सुल्तान नासिरुद्दीन शाह द्वारा इस निर्माण करवाया गया.
  • पहाड़ी के ऊपर स्थित इस महल में कलात्मकता का अभाव है.
  • रानी रूपमती के महल में छत पर बाँसुरीदार गुम्बदों से युक्त खुले मण्डपों का निर्माण रानी रूपमती के निरीक्षण में हुआ था.

कुशक महल

  • 1445 ई. में महमूद खिलजी प्रथम द्वारा निर्मित यह महल चन्देरी के पास फतेहाबाद में स्थित है.
  • इस महल के सात मंजिलें हैं.

गुजरात

  • गुजरात की वास्तुकला शैली, प्रांतीय शैलियों में सबसे अधिक विकसित थी.
  • खासकर अहमदशाही वंश के शासकों के निरीक्षण में विकसित इस शैली में पत्थर की कटाई का काम बड़ी कुशलता से किया जाता था.
  • जहाँ पहले लकड़ी के खम्भे नक्काशी करके लगाए जाते थे, वहाँ अब पत्थर का उपयोग होने लगा.
  • अहमदशाह ने अहमदाबाद की नींव रखी.

जामा मस्जिद

  • 1423 ई. में इस मस्जिद का निर्माण अहमदशाह ने अहमदाबाद में करवाया.
  • यह मस्जिद गुजराती वास्तुकला शैली का सर्वोत्कृष्ट नमूना है.
  • यह एक ऐसे भू-भाग पर निर्मित है, जिसके चारों ओर चार खानकाह निर्मित है.
  • मस्जिद के मेहराबों मिम्बर (Sanctuary) में लगभग 260 खम्भे लगे हैं.
  • मस्जिद के खम्भों एवं गैलरियों पर सघन खुदाई हुई है.
  • फग्र्युसन ने इस मस्जिद की तुलना रामपुर के राणाकुम्भा के मंदिर से की है.
  • इस मस्जिद से किले में प्रवेश के लिए चौड़े रास्ते में तीन 37 फुट ऊँचे दरवाजों का निर्माण किया गया है.
  • पर्सी ब्राउन के अनुसार, “पूरे देश में नहीं तो कम-से-कम पश्चिम भारत में यह मस्जिद निर्माण कला का श्रेष्ठतम नमूना है.”

खम्भात की जामा मस्जिद

  • 1325 ई. में निर्मित इस मस्जिद के पूजा गृह की तुलना दिल्ली की कुतुब मस्जिद एवं अजमेर के ‘अढाई दिन के झोपड़े’ से की जाती है.

भड़ौच की जामा मस्जिद

  • 1300 ई. में निर्मित हिन्दू मंदिरों के अवशेष से बनाई गई थी.

टंका मस्जिद

  • 1361  ई. में निर्मित यह मस्जिद का निर्माण टोलका में करवाया गया था.
  • अलंकृत स्तम्भों वाली इस मस्जिद में हिन्दू शैली का स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है.

हिलाल खाँ काजी की मस्जिद

  • 1333 ई. में ढोलका में इस मस्जिद का निर्माण करवाया गया था.
  • इस मस्जिद में स्थानीय शैली में दो ऊँची मीनारों का निर्माण किया गया है.

अहमदशाह का मकबरा

  • मुहम्मद शाह ने जामा मस्जिद के पूर्व में स्थित अहाते में इसका निर्माण करवाया था.
  • दक्षिणी भाग में प्रवेश द्वारा वाला यह इमारत वर्गाकार है.
  • मकबरे के ऊपर गुम्बद का, निर्माण किया गया है.

गुजराती स्थापत्य कला का सर्वश्रेष्ठ काल महमूदशाह बेगड़ा के समय से आरंभ होता है. उसने चम्पानेर, जुनागढ़ तथा खेदा नामक तीन नगरों की स्थापना की थी. उसके द्वारा निर्मित इमारतों में चम्पानेर की जामी मस्जिद, नगीना मस्जिद, मोहर इमारतें आदि प्रमुख हैं.

मध्यकालीन भारत स्थापत्य कला में प्रांतीय शैलियों का योगदान (provincial style in architecture)

Related Links

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top