कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी (1316-20 ई.) Qutb Ud Din Mubarak Shah Khilji -मुबारक खाँ सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी का पुत्र था. काफूर ने नौकरों को बन्दीगृह में उसकी आँखे निकालने हेतु भेजा था. मगर वह चालाकी से बच गया तथा उसी ने काफूर की हत्या करवा दी.
14 अप्रैल, 1316 ई. (20 मुहर्रम 716 हिजरी) को 17 या 18 वर्ष की आयु में वह कुतुबुद्दीन मुबारक शाह के नाम से गद्दी पर बैठा. उसने कठोर अलाई नियमों को हटा कर या शिथिल करके अमीरों को अपने पक्ष में कर लिया.
उसने बाजार नियन्त्रण सम्बन्धी कठोर दण्डों को भी हटा दिया. 1316 ई. में उसने गाजी तुगलक और एनुल्मुल्क मुल्तानी के अधीन सेना भेजकर गुजरात के विद्रोह को दबाया. 1818 ई. में देवगिरी पर विजय प्राप्त करके यहाँ के शासक हरपाल देव की हत्या कर दी गई.
कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी (Qutb Ud Din Mubarak Shah Khalji) के शासन काल में सबसे अधिक उन्नति गुजरात के सामान्य दास हसन की हुई जिसे सुल्तान ने ‘खुसरो खाँ’ की उपाधि दी व कालान्तर में अपना वजीर बनाया.
सुल्तान बनने के बाद मुबारक शाह ने दो वर्ष तक बड़ी लगन से कार्य किया; तत्पश्चात् वह आलस्य, विलासिता, इन्द्रिय-लोलुपता, व्यभिचार आदि दुर्गुणों का शिकार हो गया. उसे नग्न स्त्री-पुरुषों की संगत पसंद थी. कभी-कभी राज-दरबार में स्त्रियों के वस्त्र पहन कर आ जाता था.
बरनी के अनुसार वह कभी-कभी नग्न होकर दरबारियों के बीच दौड़ा करता था. उसने ‘अल-इमाम’, ‘उल-इमाम’ और ‘खलाफत-उल-लह’ की उपाधि धारण की.
खुसरो खाँ ने सुल्तान बनने के लालच में उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रचा और ‘तारीख-ए-मुबारक शाही’ के लेखक के अनुसार सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक शाह का खुसरो खाँ ने 26 अप्रैल, 1320 ई. की रात्रि को वध कर दिया. उसने रात्रि को ही दरबार लगाया और अमीरों और सरदारों से बलात् स्वीकृति लेकर स्वयं सुल्तान बना.