इस्लाम का उदय मध्यकालीन भारत (MEDIEVAL INDIA) –इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगम्बर मुहम्मद साहब थे. कुर्रेश जनजाति के हाशिम के पुत्र अब्दुल्ला के यहाँ मुहम्मद साहब का जन्म लगभग 570 ई. में अरब के मक्का नामक स्थान पर हुआ.

उनके जन्म से पूर्व उनके पिता का और उनकी छह वर्ष की आयु में उनकी माता अमीना का देहान्त हो गया था. उनका पालन-पोषण उनके चाचा अबू तालिब ने किया. 25 वर्ष की आयु में उन्होंने 40 वर्षीया धनी महिला खत्रीदा से विवाह किया.
विवाह के पश्चात् भी वे धार्मिक खोजों में लीन रहे. 40 वर्ष की आयु में उन्हें फरिश्ता जिबराईल ने ईश्वर का सन्देश दिया कि वह एक ‘नबी‘ (सिद्धपुरुष) और ‘रसूल‘ (देवदूत) हैं तथा उन्हें संसार में अल्लाह का प्रचार करने के लिए भेजा गया है.
उन्होंने शेष जीवन अल्लाह के संदेश का प्रचार करने के लिए व्यतीत किया. उन्होंने अरबों से प्रचलित अंधविश्वासों व मूर्तिपूजा की घोर निन्दा की. मूर्तिपूजा के समर्थकों ने उनका विरोध किया. फलस्वरूप उन्हें 28 जून, 622 ई. को मक्का छोड़ना पड़ा.
इस घटना को ‘हिजिरा‘ कहा जाता है तथा तभी (जुलाई, 622 ई.) से ‘हिजरी संवत्’ का आरम्भ हुआ. मक्का छोड़ कर पैगम्बर मुहम्मद साहब मदीना पहुंचे जहाँ उन्होंने एक मस्जिद बनवाई. धीरे-धीरे उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई.
अपने व्यक्तित्व और शान्तिपूर्ण विजयों के कारण मुहम्मद साहब लोकप्रिय होते गए. उन्होंने इस्लाम के विरोधियों के न केवल मदीना पर हुए तीन आक्रमणों को विफल किया, बल्कि शांतिपूर्ण मक्का पर अधिकार भी कर लिया. धीरे-धीरे सभी अरबवासी इस्लाम के अनुयायी बन गए.
इस्लाम के प्रचार से प्रतिद्वंद्वी कबीलों में एकता स्थापित हुई तथा एक बड़े साम्राज्य की स्थापना हुई. अरब साम्राज्य 750 ई. में स्पेन, उत्तरी अफ्रीका, मिस्त्र, लाल सागर के तटवर्ती क्षेत्र से भारत के सिंध एवं अरब सागर के तट तक विस्तृत हो गया. लोग मूर्तिपूजा छोड़ कर ईश्वर की एकता में विश्वास करने लगे.
मुहम्मद साहब ने शुद्ध, पवित्र तथा धार्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए निम्न सिद्धान्त प्रस्तुत किए–एकेश्वरवाद, दिन में पांच बार नमाज पढ़ना, अपनी आय का 1/10 भाग जकात (दान) देना, रमजान के महीने रोजे रखना, जीवन में एक बार हज (मक्का की तीर्थ यात्रा) करना, मूर्तिपूजा का निषेध, मद्य तथा सूअर का मांस निषेध, ब्याज पर रुपये उधार न देना, विवाह व तलाक के लिए निर्धारित नियमों का पालन करना, मानव मात्र में समानता (भाईचारा) तथा नैतिकता में विश्वास आदि.
632 ई. में पैगम्बर मुहम्मद साहब की मृत्यु के पश्चात् उनका कार्य उमैय्यद खलीफाओं क्रमशः
अबुब्रक (632-34 ई.),
उमर साहिब (634-44 ई.),
उस्मान (644-56 ई.) तथा
अली (656-61 ई.) ने सम्भाला.
सीरिया के गवर्नर मुआविया ने चौथे खलीफा के विरुद्ध विद्रोह किया तथा 25 जनवरी, 661 ई. को चौथा खलीफा अली मारा गया. अली के ज्येष्ठ पुत्र हसन ने मुआविया के पक्ष में गद्दी त्याग दी तथा 26 जुलाई, 661 ई. को मुआविया नए खलीफा वने.
पैगम्बर की मृत्यु के 100 वर्षों के अन्दर मुसलमानों ने दो शक्तिशाली साम्राज्यों (ससानिद और बाईजेण्टाइन) को पराजित किया. मुसलमानों का साम्राज्य इतना विशाल हो गया कि खलीफाओं को अपनी राजधानी मदीना से हटाकर दमिश्क बनानी पड़ी.
सन् 750 ई. में अबुल अब्बास के अनुयायियों (अबासिदों) ने एक क्रान्ति का नेतृत्व किया. अब्बुल अब्बास ने खलीफाओं के एक नए वंश की स्थापना की तथा प्रत्येक उमैय्यद वंशी को कारावास में डाला और उनकी हत्या कर दी.
762 ई. में अब्बासियों ने अपनी राजधानी दमिश्क से हटा कर बगदाद बनाई. उल्लेखनीय है कि उमैय्यद लोग सुन्नी शाखा तथा अबासिद लोग शिया शाखा के थे. उमैय्यदों की ध्वजा का रंग श्वेत और अबासिदों की ध्वजा का रंग काला था. अलमंसूर वे हारुन-उर-रशीद अबासिद खलीफाओं में मुख्य थे.
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