नासिरुद्दीन महमूद (1246-66 ई.) Nasiruddin Mahmud in Hindi -1236 से 1246 ई. तक के काल में नासिरुद्दीन महमूद राज्य में अमीरों या तुर्क सरदारों की शक्ति का प्रभाव देख चुका था. अतः उसने राज्य की समस्त शक्ति बलबन को सौंप दी.
अगस्त 1249 ई. में बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नासिरुद्दीन महमूद से कर दिया. 7 अक्टूबर, 1249 ई. को सुल्तान ने बलबन को ‘उलूग खाँ‘ की उपाधि प्रदान की व बाद में उसे ‘अमीर-ए-हाजिब’ बनाया.
कालान्तर में 1253 ई. में बलबन को पदच्युत करके हाँसी भेज दिया गया तथा मलिक मुहम्मद जुनैदी को ‘वज़ीर’, किशलू खाँ (बलबन का भाई) को ‘नाइब अमीरे-हाजिब’ और इमादुद्दीन रेहान को ‘वकीलदार’ या ‘अमीरे-हाजिब’ का पद दिया गया.
बलबन ने पुनः तुर्क सरदरों का समर्थन प्राप्त किया तथा 1255 ई. में पुनः ‘नाइब-ए-मुमलिकत’ का पद प्राप्त कर लिया. सम्भवतः इसी समय बलबन ने सुल्तान से ‘छत्र’ (सुल्तान के पद का प्रतीक) प्रयोग की अनुमति प्राप्त कर ली.
नासिरुद्दीन महमूद (Nasiruddin Mahmud) के काल में बलबन ने ग्वालियर, रणथंभौर, मालवा तथा चन्देरी के राजपूतों का दमन किया, दिल्ली के आस-पास के क्षेत्र में लुटेरे मेवातियों का दमन किया तथा प्रतिद्वन्द्वी मुस्लिम सरदारों (रहान आदि) की शक्ति को कुचला. उसने 1249 ई. में मंगोल नेता हलाकू से समझौता करके पंजाब में शान्ति स्थापित की.
12 फरवरी, 1265 ई. में सुल्तान की अचानक मृत्यु हो गई. क्योंकि नासिरुद्दीन महमूद का कोई पुत्र नहीं था. अतः बलबन उसका उत्तराधिकारी बना.