मुईजुद्दीन बहराम शाह (1240-42 ई.) Muiz ud din Bahram shah–रजिया सुल्ताना के पश्चात् तुर्क सरदारों ने उसके भाई व इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र मुईज्जुद्दीन बहराम शाह(Muiz ud din Bahram shah) को सुल्तान बनाया.
मुईजुद्दीन बहराम शाह (1240-42 ई.) Muiz ud din Bahram shah–रजिया सुल्ताना के पश्चात् तुर्क सरदारों ने उसके भाई व इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र मुईज्जुद्दीन बहराम शाह(Muiz ud din Bahram shah) को सुल्तान बनाया.
सुल्तान की शक्तियों को कम करने के लिए एक नए पद ‘नाइब‘ या ‘नाइब-ए-मुमलिकत‘ का सृजन किया तथा इस पद पर सर्वप्रथम मलिक इख्तियारुद्दीन ऐतगीन को नियुक्त किया गया. मुहाजिबुद्दीन वज़ीर बना रहा और उसकी स्थिति द्वितीय श्रेणी की हो गई.
कालान्तर में इख्तियारुद्दीन ऐतगीन ने सुल्तान की बहन के साथ विवाह कर लिया तथा स्वयं को सुल्तान से अधिक शक्तिशाली समझने लगा. वह सुल्तान की समस्त शक्तियों का भी प्रयोग करने लगा था. बदरुद्दीन सनुकार खमी ‘अमीर-ए-हाजिब’ था तथा वह ‘नाइब’ की समस्त शक्तियों का प्रयोग करने लगा.
मुईजुद्दीन बहरामशाह (बहरामशाह) यह सहन नहीं कर सकता था. उसने बदरुद्दीन सनुकार खमी और सैयद ताजुद्दीन की हत्या करवा दी. इस हत्याकाण्ड के कारण सुल्तान के विरुद्ध अमीरों तथा तुर्क सरदारों में भयानक असन्तोष व्याप्त हो गया.
1241 ई. में तातार के नेतृत्व में मंगोलों ने पंजाब पर आक्रमण किया. मुल्तान के कबीर खाँ आयाज को वे पराजित नहीं कर पाए अतः उन्होंने लाहौर के मलिक कारकश को पराजित करके यहाँ लूटपाट व हत्याकांड किया.
बहरामशाह द्वारा वजीर निज़ाम-अल-मुल्क के नेतृत्व में मंगोलों के विरुद्ध भेजी गई सेना का रुख दिल्ली की ओर कर दिया. बहराम शाह को बन्दी बना लिया गया तथा मई, 1242 ई. को उसकी हत्या करके बहराम शाह के पौत्र अलाउद्दीन मसूद शाह को सुल्तान बनाया गया. लेनपूल के शब्दों में, “उसके (बहराम शाह के) शासन काल के दो वर्ष षड्यन्त्रों, प्रति षड्यन्त्रों, कपटपूर्ण हत्याओं और क्रूर नर-संहार में व्यतीत हुए.”