फिरोज शाह तुगलक (1351-88 ई.) Firuz Shah Tughlaq in Hindi-फिरोज तुगलक मुहम्मद तुगलक का चचेरा भाई था. उसका जन्म 1309 ई. में हुआ था. उसका पिता ‘रजब’ मुहम्मद तुगलक का सिपहसालार था तथा माता बीबी जैला अबूहर के राजपूत सरदार रणमल की पुत्री थी.

फिरोज शाह तुगलक (1351-88 ई.) Firuz Shah Tughlaq in Hindi

मुहम्मद तुगलक की मृत्यु पर थट्टा के स्थान पर ही फिरोज शाह तुगलक (Firuz Shah Tughlaq) का राज्याभिषेक हुआ क्योंकि मुहम्मद तुगलक की अपनी कोई सन्तान नहीं थी.

मुहम्मद तुगलक की विपरीत नीतियों के कारण उलेमा और अमीर वर्गों में असन्तोष था. अतः फिरोज तुगलक ने अपनी प्रशासनिक लड़ाई आंतरिक सुरक्षा और रणक्षेत्र से सम्बन्धित क्षेत्रों में शुरू की.

फिरोज शाह तुगलक (Firuz Shah Tughlaq) ने 1353 ई. में प्रथम अभियान बंगाल के शम्सुद्दीन इलियास के विरुद्ध छेड़ा क्योंकि उसने मुहम्मद तुगलक की मृत्यु के पश्चात् फैली अशांति का लाभ उठा कर स्वयं को स्वतन्त्र घोषित कर दिया था.

फिरोज तुगलक के आगमन की खबर पाकर उसने ‘इकदला‘ के दुर्ग में शरण ली तथा सुल्तान की सेनाओं ने दुर्ग को चारों ओर से घेर लिया. मगर कई दिनों के घेरे . के बाद इलियास के साथ सन्धि करके सुल्तान दिल्ली लौट गया.

इस प्रकार प्रथम अभियान से फिरोजशाह तुगलक को पूर्ण राजनीतिक लाभ प्राप्त नहीं हो. सके और इलियास द्वारा औपचारिक रूप से अधीनता स्वीकार करने पर ही वह सन्तुष्ट हो गया.

1357 ई. में शम्सुद्दीन इलियास की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र व . उत्तराधिकारी सिकन्दर बड़ा अत्याचारी व अन्यायी शासक सिद्ध हुआ. 1359 ई. में सुल्तान ने फिर बंगाल के विरुद्ध कूच किया. सिकन्दर ने भी इकदला के दुर्ग में शरण ली. इस बार भी सुल्तान को असफल होकर लौटना पड़ा.

इस बार सीधा दिल्ली आने की अपेक्षा सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने जाजनगर (उड़ीसा) पर आक्रमण करके जगन्नाथ मन्दिर को ध्वस्त किया तथा कुछ अन्य आसपास के हिन्दू राजाओं को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया.

1361 ई. में फिरोजशाह तुगलक ने नगरकोट (काँगड़ा) पर आक्रमण करके ज्वालामुखी मन्दिर को ध्वस्त किया और मन्दिर की मुख्य मूर्ति को विजय-चिन्ह के रूप में मदीना भेज दिया.

1362 ई. में सुल्तान ने थट्टा (सिन्ध) के अमीरा के विरुद्ध अभियान छेड़ा. मगर मार्ग में उसकी सेना रास्ते से भटक कर रन के मरुस्थल में पहुँच गई. एक अन्य सेना ने थट्टा पर अधिकार कर लिया.

डा. ईश्वरी प्रसाद के अनुसार,

“सिंध का अभियान फिरोज तुगलक के शासन-काल की अति मनोरंजक घटना है. यह सुल्तान की मूर्खता एवं कूटनीतिक अनभिज्ञता का अपूर्व उदाहरण है.”

1380 ई. में सुल्तान ने कटेहर के राजा खरकू के विरुद्ध सफलता प्राप्त की. संक्षेप में फिरोजशाह तुगलक की विदेशी नीति बंगाल को छोड़कर अन्य उत्तरी क्षेत्रों में सफल रही परन्तु उसने दक्षिण में स्वतन्त्र हुए राज्य-विजयनगर, बहमनी एवं मदुरा आदि को पुनः जीतने का प्रयत्न नहीं किया.

सिंध का अभियान बहुत लम्बा और सैनिक दृष्टि से हानिकारक रहा. अतः स्पष्ट होता है कि सुल्तान फिरोज शाह तुगलक (Firuz Shah Tughlaq) ने कोई भी सैनिक अभियान साम्राज्य विस्तार की दृष्टि से नहीं किया अपितु साम्राज्य सुरक्षा के लिए कुछ अभियान किए. सितम्बर, 1388 ई. में उसकी मृत्यु हो गई.

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