मैसूर का उदयः हैदर अली और टीपू सुल्तान (RISE OF MYSORE: HYDER ALI AND TIPU SULTAN) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
मैसूर का उदयः हैदर अली और टीपू सुल्तान
- प्रारंभ में मैसूर के सरदार विजयनगर साम्राज्य के अधीन थे.
- 1565 के तालीकोटा के ऐतिहासिक युद्ध के बाद विजयनगर साम्राज्य का ह्रास हो गया.
- 1612 में विजयनगर के राजा बैंकट द्वितीय ने राजा वडियार (‘राजा’ शब्द उसकी उपाधि नहीं वरन् उसके नाम का भाग था) को मैसूर की सत्ता सौंप दी.
- 17वीं शताब्दी में वडियार वंश ने अपने राज्य का काफी विस्तार किया.
- 1732 में राजा वडियार चिक कृष्णराज के काल में मैसूर में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया आरंभ हुई.
- 1731-1734 के मध्य देवराज (मुख्य सेनापति) और नजराज (राजस्व और वित्त का अधीक्षक) नामक दो भाइयों ने राज्य की समस्त शक्ति अपने हाथ में केन्द्रित कर ली.
- दक्षिण में निजाम, मराठों, अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य हुए संघर्ष से मैसूर धी अप्रभावित न रह सका.
- 1753, 1754, 1757 और 1759 में मराठों ने मैसूर पर आक्रमण किए.
- देबराज और नजज इन आक्रमणकारियों का सामना करने में असफल रहे.
- इस स्थिति में हैदर अली (जन्म 1727) सामने आया.
- उसने अपना जीवन एक घुड़सवार के रूप में आरंभ किया था किन्तु 1761 में वह मैसूर का वास्तविक शासक बन बैठा.
- सत्ता प्राप्ति के साथ ही उसने एक शक्तिशाली सेना के संगठन हेतु प्रयास आरंभ कर दिए.
- उसने फ्रांसीसियों की सहायता से डिंडीगुल में एक शस्त्रागार स्थापित किया.
- 1763 तक उसने होजकोट, दोड़नेल्लापुर और बेदनूर आदि स्थानों तथा दक्षिण के पालिगारों (जमींदारों) पर अधिकार कर लिया.
- पानीपत के तीसरे युद्ध की पराजय के बाद पेशवा माधवराव के नेतृत्व में मराठा पुनः शक्तिशाली हो गये.
- 1764, 1766 और 1771 में मैसूर पर आक्रमण कर उन्होंने हैदर अली को हराया और उसे धन और कुछ प्रदेश देने के लिए बाध्य किया.
- किन्तु 1772 में माधवराव की मृत्यु के बाद पैदा हुई अव्यवस्था की स्थिति का लाभ उठाकर हैदर अली ने 1774 से 1776 के मध्य न केवल अपने खोए हुए प्रदेशों को पुन: प्राप्त किया बल्कि कृष्णा-तुंगभद्रा घाटी के प्रमुख प्रदेश, बेल्लारी, कुड्डपा, गूरी और करनूल के प्रदेश भी प्राप्त किए.
पहला आंग्ल-मैसूर युद्ध, 1767-69 (First Anglo-Mysore War, 1767-69)
- 1766 में अंग्रेजों ने हैदराबाद के निजाम अली से एक संधि की.
- इस संधि के द्वारा अंग्रेजों ने निजाम को हैदरअली के विरुद्ध सहायता देने का वचन दिया.
- शीघ्र ही हैदर अली के विरुद्ध निजाम, मराठों तथा कर्नाटक के नवाब का एक संयुक्त मोर्चा बन गया.
- हैदर अली ने इस संकट का बड़ी ही चतुराई से सामना किया.
- उसने मराठों को धन देकर तथा निजाम को कुछ प्रदेश देकर अपनी ओर मिला लिया.
- तत्पश्चात् उसने कर्नाटक पर आक्रमण कर दिया.
- यह युद्ध अनिर्णायक रहा.
- कुछ ही समय बाद हैदर अली ने मद्रास को घेर कर अंग्रेजों को 4 अप्रैल, 1779 को तिरस्कार पूर्ण संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया.
- इस संधि के द्वारा अंग्रेजों ने हैदर अली को सहायता का वचन दिया.
दुसरा आंग्ल-मैसूर युद्ध, 1780-84 (Second Anglo-Mysore War, 1780-84)
- 1771 में मराठा आक्रमण के समय हैदर अली के समक्ष यह स्पष्ट हो गया कि 1769 की आंग्ल-मैसूर संधि एक संधि न होकर केवल युद्ध विराम का एक समझौता मात्र थी.
- अतएव अंग्रेजों से निराश होकर हैदर अली ने फ्रांसीसी सहायता प्राप्त करने के सफल प्रयल किए.
- उसने कम्पनी के विरुद्ध निज़ाम तथा मराठों से मिलकर एक संयुक्त मोर्चा तैयार किया.
- जुलाई, 1780 में हैदर अली ने अंग्रेजी कर्नल बेली को हराकर कर्नाटक की राजधानी अरकाट पर अधिकार कर लिया.
- कुछ ही समय बाद अंग्रेजों ने निजाम तथा मराठों को अपने साथ मिलाकर नवम्बर, 1781 में पोर्टो नोवा के स्थान पर हैदर अली को परास्त कर दिया.
- 1782 में हैदर अली ने पुनः कर्नल ब्रेथवेट के अधीन अंग्रेजी सेना को परास्त कर दिया.
- किन्तु 7 दिसम्बर, 1782 को हैदर अली की मृत्यु हो गई.
- उसके बाद युद्ध का संचालन उसके पुत्र टीपू सुल्तान के हाथ में आ गया.
- यह युद्ध भी अनिर्णायक रहा. मार्च, 1784 में मंगलौर की संधि के द्वारा दोनों पक्षों ने एक दूसरे के विजित प्रान्त वापस कर दिए.
तीसरा आंग्ल-मैसूर युद्ध, 1790-92 (Third Anglo-Mysore War, 1790-92)
- 1790 में लार्ड कॉर्नवालिस ने निजाम तथा मराठों से मिलकर टीपू सुल्तान के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा बनाया.
- टीपू सुल्तान ने इस मोर्चे के विरुद्ध तुर्की से सहायता प्राप्त करने का प्रयल किया.
- अप्रैल 1790 में टीपू सुल्तान ने त्रावणकोर पर आक्रमण कर दिया.
- इस आक्रमण का मुख्य कारण टीपू सुल्तान के क्षेत्राधीन कोचीन रियासत पर त्रावणकोर के महाराजा द्वारा अपना अधिकार जताना था.
- कॉर्नवालिस ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए त्रावणकोर के महाराजा का पक्ष लिया और टीपू सुल्तान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी.
- शीघ्र ही वैल्लौर तथा अम्बूर से होता हुआ बंगलोर पर मार्च 1791 में अधिकार कर श्रीरंगपट्टम तक पहुंच गया.
- टीपू ने कॉर्नवालिस का दृढ़ता से सामना किया किन्तु शीघ्र ही अपने आप को असमर्थ पाकर उसने मार्च, 1792 में श्रीरंगपट्टम की संधि पर हस्ताक्षर कर दिए.
- इस संधि के अनुसार उसे अपने राज्य का लगभग आधा भाग अंग्रेजों और उनके मित्रों को देना पड़ा.
चौथा आंग्ल-मैसूर युद्ध, 1799 (Fourth Anglo-Mysore War, 1799)
- 1798 में लार्ड वैल्जली का आगमन हुआ.
- एक साम्राज्यवादी गवर्नर-जनरल था.
- वह टीपू सुल्तान के विरुद्ध आर-पार की लड़ाई लड़ना चाहता था.
- उसने टीपू के समक्ष सहायक संधि स्वीकार करने का प्रस्ताव रखा.
- टीपू के द्वारा इस प्रस्ताव को अस्वीकार किए जाने पर फरवरी, 1799 में टीपू और अंग्रेजों के मध्य युद्ध छिड़ गया.
- 4 मई, 1794 को श्रीरंगपट्टम का दुर्ग जीत लिया गया.
- टीपू सुल्तान ने लड़ते-लड़ते वीर गति प्राप्त की.
- मैसूर की सत्ता मैसूर के प्राचीन हिन्दू राजवंश को सौंप दी गई.
- मैसूर पर थोप दी गई.
टीपू सुल्तान की शासन व्यवस्था (Tipu’s Administration)
- टीपू सुल्तान का प्रशासन केन्द्रोन्मुखी प्रशासन था.
- सुल्तान ही समस्त सैनिक, असैनिक और राजनीतिक शक्ति का केन्द्र था.
- सुल्तान स्वयं ही अफ्ना विदेश मंत्री, मुख्य सेनापति और न्यायाधीश था.
केन्द्रीय प्रशासन (Cerntral Attrmirnistration)
- टीपू के प्रशासन में प्रधानमंत्री या वजीर का पद नहीं था.
- केन्द्रीय प्रशासन के रूप में सात विभाग या बोर्ड थे.
- ये विभाग मीर आसिफ के अधीन होते थे.
- मीर आसिफ सुल्तान के प्रति उत्तरदायी होता था.
- ये सात विभाग थे–
- राजस्व तथा वित्त (भीर आसिफ कचहरी के अधीन),
- सेना विभाग (मीरां आसिफ कचहरी के अधीन),
- जुमरा विभाग (एक अन्य मीर मीरा कचहरी के अधीन),
- तोपखाना तथा दुर्ग रक्षा विभाग (मीर सदर कचहरी के अधीन),
- वाणिज्य विभाग (मलिक-उत्तज्जाऱ के अधीन),
- नाविक विभाग (मीर याम कचहरी के अधीन),
- कोष और टंकन विभाग (मीर खजाना कचहरी के अधीन).
- इन सात विभागों के अतिरिक्त तीन अन्य छोटे विभाग भी थे–
- डाक तथा गुप्तचर विभाग,
- लोक निर्माण विभाग,
- पशु विभाग.
प्रान्तीय तथा स्थानीय प्रशासन (Provincial and Local Administration)
- टीपू सुल्तान ने 1784 के बाद अपने साम्राज्य को सात प्रान्तों में बांट दिया.
- आगे चलकर इन प्रान्तों की संख्या 17 हो गई.
- प्रान्तों में मुख्य अधिकारी आसिफ (असैनिक गवर्नर) और फौजदार (सैनिक गवर्नर) होते थे.
- ये दोनों पदाधिकारी एक दूसरे पर नियंत्रण भी रखते थे.
- प्रान्तों को जिलों और जिलों को गांवों में बांटा हुआ था.
- पंचायतें स्थानीय प्रशासन का प्रबन्ध करती थी.
भूमि कर व्यवस्था (Land Revene System)
- टीपू सुल्तान ने जागीरदारी प्रथा को समाप्त कर कृषक और सरकार के मध्य सीधा संपर्क कर स्थापित कर दिया.
- उसने ईनाम में दी गई कर मुक्त भूमि पर पुनः अधिकार कर लिया.
- पॉलिगारों (जमींदारों) के पैतृक अधिकार भी जब्त कर लिए गए.
- टीपू ने “प्रेरणा संलग्न अनुरोध” (Inducement-Cum-Compulsion) की व्यवस्था द्वारा अधिकाधिक भूमि को जोत में लाने का प्रयास किया.
- भूमिका प्रायः 1/3 से 1/2 भाग लिया जाता था.
- यह कर भूमि की उर्वरता तथा सिंचाई की सुविधाओं पर निर्भर होता था.
वाणिज्य और व्यापार (Trade and Commerce)
- टीपू सुल्तान ने राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का विकास किया.
- उसने अपने गुमाश्ते मस्कट आर्भुज, जेद्दाह और अदन आदि नारों में नियुक्त किए.
- उसने पीगू (बर्मा) और चीन से भी व्यापार संबंध स्थापित करने का प्रयास किया.
- उसने एक वाणिज्य बोर्ड की भी स्थापना की.
- टीपू ने चन्दन, सुपारी, काली मिर्च, मोटी इलाइची, सोने तथा चांदी का व्यापार और हाथियों के निर्यात आदि पर सरकार का एकाधिकार स्थापित किया.
- इसके अलावा उसने कुछ कारखानों की भी स्थापना की.
- इन कारखानों में युद्ध के लिए गोला बारूद, कागज, चीनी, रेशमी कपड़ा और अन्य सजावटी वस्तुएं बनाई जाती धौ .
सैनिक प्रशासन (Military Administration)
- टीपू ने एक शक्तिशाली सेना का गठन किया.
- उपने अपनी पदाति सेना का गठन यूरोपीय नमूने पर किया.
- उसने फांसीसी कमाण्डरों द्वारा अपनी सेना के प्रशिक्षण का प्रबन्ध किया.
- टीपू के सैनिकों की संख्या उसको सैनिक आवश्यकताओं और साधनों के अनुसार बदलती रहती थी.
- हैदर अली और टीपू सुल्तान दोनों ने नौसेना के महत्व को समझा था.
- उन्होंने एक शक्तिशाली नौसेना का गठन भी किया.
- किन्तु नौसेना ईस्ट इंडिया कम्पनी के स्तर को कभी प्राप्त न कर सकी.
- 1796 में टीपू सुल्तान ने नौसेना के विकास हेतु नौसेना बोर्ड का गठन किया.
मूल्यांकन (Evaluation)
- 20 नवम्बर, 1750 को हैदर अली और उसकी पली फातिमा के घर बहुत प्रार्थना के बाद पुत्ररत्न के रूप में टीपू सुल्तान का जन्म हुआ था.
- टीपू को एक मुस्लिम राजकुमार के समान शिक्षा-दीक्षा प्राप्त हुई.
- वह अरबी, फारसी, कन्नड़ और उर्दू का अच्छा ज्ञाता था.
- उसने मैसूर में एक सुदृढ़ प्रशासन की नींव डाली.
- 1787 में टोपू ने बादशाह की उपाधि ग्रहण की.
- उसने अपने नाम के सिक्के चलवाए.
- उसने वर्ष तथा माह के हिन्दू नामों के स्थान पर अरबी नामों का प्रयोग किया.
- उसने नए पंचाग का प्रारंभ किया.
- टीपू सुल्तान की आलोचना करते हुए विल्स ने कहा है कि – “हैदर अली का जन्म राज्य को बनाने के लिए हुआ तथा टीपू का जन्म राज्य को खोने के लिए.”