शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी के भारत पर आक्रमण-शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी या मुईजुद्दीन–मुहम्मद-बिन-साम गोर के शासक गियासुद्दीन गोरी का छोटा भाई था. 1173 ई. में उसे गज़नी की गद्दी पर बैठाया गया. यद्यपि वह गज़नी में स्वतंत्र शासक की हैसियत से 1206 ई. तक राज्य करता रहा लेकिन फिर भी उसने सिक्कों पर अपने भाई का नाम ही उत्कीर्ण कराया और एक अधीनस्थ राजा के जैसा ही व्यवहार किया. उसने अपने भाई के सहायक के रूप में ही भारत पर कई बार आक्रमण किए तथा दिल्ली सल्तनत की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया.
शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी के भारत पर आक्रमण
(1) मुल्तान तथा सिन्ध पर शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी के आक्रमण
मुहम्मद गोरी ने भारत पर प्रथम बार 1175 ई. में आक्रमण किया. वह गोमल दर्रे से होता हुआ मुल्तान तथा उच्च तक आया व इन्हें उसने अपने अधीन कर लिया. 1182 ई. में गोरी ने सिंध के निचले भाग पर आक्रमण किया और सुमरा वंश के शासक को अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया.
(2) गुजरात (अन्हिलवाड़ा)पर शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी का आक्रमण
1178 ई. में मुहम्मद गोरी गुजरात के शासक (सम्भवतः मूलराज द्वितीय या कुछ इतिहासकारों की राय में भीमदेव द्वितीय) से आबू पर्वत के समीप बुरी तरह पराजित हुआ व जान बचा कर भाग गया. इस पराजय के उपरान्त गोरी ने महसूस कर लिया कि भारत को जीतने के लिए पंजाब को आधार बनाना आवश्यक है.
(3) पंजाब पर शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी का आक्रमण
1179-80 ई. में मुहम्मद गोरी ने पेशावर पर कब्जा किया तथा 1186 ई. में लाहौर को खुसरो मलिक से जीत लिया. उसने 1190 ई. तक सम्पूर्ण पंजाब को गौर साम्राज्य का अंग बना लिया और दिल्ली तथा गंगा-यमुना दोआब पर आक्रमण हेतु तैयारियाँ करने लगा.
(4) तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ई.) पृथ्वीराज चौहान की जीत
पृथ्वीराज चौहान या रायपिथौरा दिल्ली तथा अजमेर का शासक था. उसने 2 लाख अश्वारोही तथा 3000 हाथियों सहित विशाल सेना का नेतृत्व करते हुए मुहम्मद गोरी के विरुद्ध चढ़ाई कर दी. उसके सहयोगी राजपूत राजकुमारों ने उसे सहायता दी. कन्नौज का राठोर वंश का राजा जयचन्द इस युद्ध से अलग रहा क्योंकि पृथ्वीराज चौहान ने उसकी लड़की का अपहरण करके उसका अपमान किया था.
थानेश्वर से 14 मील दूर तराइन के मैदान में 1191 ई. में दोनों पक्षों के बीच घमासान युद्ध हुआ. युद्ध में मुहम्मद गोरी घायल हुआ तथा मुसलमानों की सेना तितर-बितर हो गई. राजपूतों ने 40 मील तक उनका पीछा किया. मुहम्मद गोरी गज़नी लौट गया. राजपूतों ने सरहिन्द पर घेरा डाला परन्तु वे सुगमता से विजय पाने में सफल न रहे. इस विजय के बाद पृथ्वीराज चौहान सम्भवतः सन्तुष्ट सा हो गया और उसने गोरियों को पंजाब से पूर्णतः निकालने का प्रयास नहीं किया.
(5) तराइन की दूसरी लड़ाई (1192 ई.)
मुहम्मद गोरी ने तराइन के प्रथम युद्ध में हुई पराजय का बदला लेने के विचार से 1192 ई. में लगभग 1,20,000 सेना लेकर भारत की ओर प्रस्थान किया. लगभग 150 राजपूत राजाओं ने पृथ्वीराज चौहान के पक्ष से युद्ध किया. मिनहास-उस-सिराज लिखता है. कि, ‘‘सुल्तान ने अपनी सेना को योजनानुसार युद्ध के लिए खड़ा किया…. इस रणनीति से काफिरों की पराजय हुई. सर्वशक्तिमान ईश्वर ने हमें विजयी बनाया और शत्रु की सेनाएं भाग खड़ी हुई.” पृथ्वीराज चौहान को सिरसुती (सिरसा) के समीप पकड़ लिया गया तथा सम्भवतः उसी समय अथवा कुछ समय बाद उसकी हत्या कर दी गई. शीघ्र ही मुसलमानों ने बिना कठिनाई के सिरसुती, समाना, खुरम और हाँसी पर अधिकार कर लिया. डॉ. वी. ए. स्मिथ के शब्दों में, “1192 ई. का तराइन का दूसरा युद्ध ऐसा निर्णायक संघर्ष समझना चाहिए जिसने हिन्दोस्तान पर मुसलमानों की आधारभूत सफलता को निश्चित कर दिया.”
(6) कन्नौज पर मुहम्मद गोरी का आक्रमण
1194 ई. में मुहम्मद गोरी ने कन्नौज के शासक जयचन्द पर चढ़ाई कर दी. चाँदवाड़ा के युद्ध में जयचन्द वीरगति को प्राप्त हुआ. प्रोफेसर एस. आर. शर्मा के विचार में “चाँदवाड़ा के स्थान पर जयचन्द के पतन ने मुहम्मद गोरी को राजनीतिक और भारतवर्ष की धार्मिक राजधानियों-कन्नौज और बनारस का स्वामी बना दिया.”
जयचन्द की पराजय के बाद मुहम्मद गोरी ने भारत में विजित प्रदेशों को कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप दिया.कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी महत्वपूर्ण विजय के अन्तर्गत 1194 ई. में अजमेर को जीत कर यहाँ पर स्थित जैन मन्दिर और संस्कृति विश्वविद्यालय को नष्ट करके वहाँ पर क्रमशः ‘कुव्वत-उल-इस्लाम‘ तथा ‘ढाई दिन के झोपड़े‘ का निर्माण करवाया.
1202-03 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बुन्देलखण्ड के कालिंजर के किले को जीता. 1197 से 1205 ई. में मध्य कुतुबुद्दीन ऐबक ने बंगाल एवं बिहार पर आक्रमण करके उदण्डपुर, बिहार, विक्रमशिला एवं नालन्दा विश्वविद्यालय पर अधिकार किया.
1195-96 ई. में मुहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण किया तथा चुनार के पास जाटों और राजपूतों को परजित किया. 1905 ई. में गोरी पुनः भारत आया व इस बार उसने खोक्खरों को पराजित किया. गज़नी की वापसी के मार्ग पर 13 मार्च, 1206 ई. को हत्या कर दी गई. उसकी मृत्यु के बाद गुलाम सरदार कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 ई. में गुलाम वंश (दास वंश) की स्थापना की.