सैय्यद वंश का पूरा इतिहास (1414-1451 ई.) Sayyid dynasty In Hindi–खिज्र खाँ द्वारा स्थापित सैय्यद वंश के काल में सबसे ज्यादा उत्तेजित राजनीतिक गतिविधियाँ देखी गयी, किन्तु वे सभी घटनाएँ बहुत घटिया स्तर की थी.
इसलिए सैय्यद वंश की शक्ति विद्रोहों को दबाने में ही नष्ट हो गई. इस वंश के काल में दिल्ली सल्तनत घटते-घटते केवल 200 मील के घेरे तक ही सीमित रह गई.
सैय्यद खिज्र खाँ इब्न मलिक (1414-21 ई.) Sayyid Khizr Khan ibn Malik
जब खिज्र खाँ ने दिल्ली पर अधिकार किया, उस समय उसकी स्थिति अत्यन्त कमजोर थी और इसलिए उसने सुल्तान की उपाधि ग्रहण न की और ‘रेयत-ए-आला’ के नाम से ही संतुष्ट रहा.
उसके शासन काल में पंजाब, लाहौर व मुल्तान पुनः सल्तनत के अधीन हो गये. अपने समय में खिज्र खाँ ने कटेहर, इटावा, खोर, चलेसर, बयाना, मेवात, बदायूँ, आदि में विद्रोहों को दबाया.
इस काम में उसके राजभक्त मन्त्री ताजुल्मुल्क ने उसकी बहुत सेवा की. अपने इन अभियानों के दौरान ही 13 जनवरी, 1421 ई. को ताजुल्मुल्क और 20 मई, 1421 ई. को खिज्र खाँ की मृत्यु हुई.
खिज्र खाँ को स्थाई रूप से सल्तनत का विस्तार करने में सफलता नहीं मिली. उसका प्रशासन उदार व न्याय संगत था. वह सैय्यद वंश का सर्वाधिक योग्य शासक था.
मुबारक शाह (सैय्यद वंश) (1421-34 ई. )Mubarak Shah
सैय्यद खिज्र खाँ ने मृत्यु से पूर्व अपने पुत्र मुबारक शाह को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया. मुबारक शाह ने शाह की उपाधि धारण करके अमीरों व सरदारों की सर्व-सम्मति से सुल्तान का पद ग्रहण किया.
अपने शासन काल में उसने भटिण्डा व दोआब क्षेत्र के विद्रोहों का दमन किया मगर वह नमक की पहाड़ियों के खोखर लोगों को दण्ड नहीं दे सका.
उल्लेखनीय है कि वह पहला सुल्तान था जिसके काल में दिल्ली के दरबार में दो हिन्दू अमीरों का उल्लेख मिलता है.
अपने तेरह वर्ष के शासन काल में उसने मेवात, कटेहर, उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में सैनिक कार्यवाहियां की लेकिन यह किसी ठोस और वास्तविक उपलब्धि को पाने में असफल रहा.
उसके आश्रय में प्रसिद्ध इतिहासकार याहिया-बिन-अहमद सरहिन्दी ने ‘तारीखे-मुबारकशाही‘ में लिखा है कि-
“मुबारक शाह का काल अशान्ति एवं विद्रोह का काल था, इसलिए उसका पूर्ण समय विद्रोहों को दबाने में ही व्यतीत हो गया.”
उसमें धर्मान्धता का नाम भी नहीं था. उसने दिल्ली के क्षत्रियों को उदारता पूर्ण संरक्षण दिया और ग्वालियर के हिन्दुओं को अत्याचार से बचाया.
यमुना के तट पर उसने ‘मुबारक बाद‘ नामक एक नगर बसाया, जिसकी जामा-मस्जिद बहुत सुन्दर थी.
19 फरवरी, 1434 ई. को उसके एक सरदार सरवर-उल-मुल्क ने एक षड्यन्त्र द्वारा मुबारक शाह की हत्या करवा दी.
मुहम्मद शाह (1434-43 ई.) Mohammad Shah
मुबारक शाह के पश्चात् उसका भतीजा फरीद खाँ के नाम से सुल्तान बना. 6 महीने तक वास्तविक सत्ता वजीर सरवर-उल-मुल्क के सहयोग से वजीर का वध करवा कर उससे मुक्ति प्राप्त कर ली.
मुहम्मदशाह के काल में दिल्ली सल्तनत में अराजकता व कुव्यवस्था व्याप्त रही. जौनपुर के शासक ने सल्तनत के कई जिले अपने अधीन कर लिए.
मालवा के शासक महमूद खिलजी ने तो दिल्ली पर ही आक्रमण करने का साहस कर लिया. लाहौर और मुल्तान के शासक बहलोल खाँ लोदी ने सुल्तान की सहायता की.
सुल्तान ने उसे ‘खान-ए-खाना’ की उपाधि दी और. साथ ही उसे अपना पुत्र कह कर भी पुकारा. सुल्तान की स्थिति बहुत दुर्बल हो गई. यहां तक कि दिल्ली से बीस ‘करोह’ की परिधि में अमीर उसके विरोधी हो गए.
1444 ई. में मुहम्मद शाह की मृत्यु हो गई और उसका पुत्र अलाउद्दीन ‘आलमशाह‘ के नाम से गद्दी पर बैठा .
आलम शाह (1445-51 ई.) Alam Shah
आलम शाह अपने देश का सबसे अयोग्य शासक साबित हुआ. आलम शाह के काल में दिल्ली सल्तनत, दिल्ली शहर और कुछ. आस-पास के गाँवों तक रह सीमित हो गई.
बहलोल लोदी (लाहौर का गवर्नर) के भय के कारण आलम शाह अपनी राजधानी दिल्ली कसे हटा कर बदायूँ ले. गया और यहाँ वह भोग-विलास में डूब गया.
उसके मन्त्री हमीद खाँ ने बहलोल लोदी को आमन्त्रित किया, जिसने कि दिल्ली पर अधिकार कर लिया. कुछ समय तक बहलोल खाँ लोदी ने आलम शाह के प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया.
1451 ई. में आलमशाह ने बहलोल लोदी को दिल्ली का राज्य पूर्णतः सौंप दिया और स्वयं बदायूं की जागीर में रहने लगा. वहीं पर 1476 ई में उसकी मृत्यु हुई.
इस प्रकार 37 वर्ष के अकुशल शासन के बाद सैय्यद वंश का अन्त हुआ और लोदी वंश की नींव पड़ी.
सैय्यद वंश का पूरा इतिहास (1414-1451 ई.) Sayyid dynasty In Hindi