जलालुद्दीन फिरोज खिलजी | खिलजी वंश | Jalaluddin firuz Khilji in hindi

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (1290-96 ई.) खिलजी वंश Jalaluddin firuz Khilji in hindi -इस विषय में पर्याप्त विवाद है कि खिलजी कौन थे? फखरुद्दीन ने उन्हें तुर्क की 64 जातियों में से एक बताया है. विश्वास किया जाता है कि भारत में आने से पूर्व यह जाति अफगानिस्तान में हेलमन्द नदी के तटीय क्षेत्रों के उन भागों में रहती थी जिसे खिलजी के नाम से जाना जाता था.

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (1290-96 ई.) खिलजी वंश Jalaluddin firuz Khilji in hindi

सम्भवतः इसीलिए इस जाति का नाम खिलजी पड़ा. मामलूक वंश के अन्तिम शासक शम्सुद्दीन की हत्या करके जलालुद्दीन फिरोज खिलजी दिल्ली का सुल्तना बना. डा. आर. पी. त्रिपाठी ने इस घटना को ‘खिलजी क्रान्ति’ बताया है. इस वंश के काल में महत्वपूर्ण घटना सल्तनत का दक्षिण में विस्तार तथा तुर्की अमीरों के प्रभाव में कमी है.

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (1290-96 ई.)खिलजी वंश

जलालुद्दीन(Jalaluddin firuz Khilji) 70 वर्ष की आयु में 13 जून, 1290 ई. को सुल्तान बना. महान् तुर्की-अमीर खिलजियों से घृणा करते थे तथा उसे अपदस्थ करना चाहते थे. अतः सिंहासनारोहण के पश्चात् एक वर्ष तक ‘जलालुद्दीन फिरोज खिलजी’ भूतपूर्व सुल्तना कैकुबाद द्वारा दिल्ली के समीप बसाए गए एक नए नगर ‘किलखोरी’ में रहा.

उसने दिल्ली में तभी प्रवेश किया जब उसे आभास हो गया कि अपने उदारतापूर्ण कार्यों से उसने जनता को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया है. उसके दयालु स्वभाव तथा सहृदयता को उसकी कमजोरी समझ कर जगह-जगह विद्रोह के झण्डे बुलंद हो गए.

कड़ा के सूबेदार छज्जू ने ‘सुल्तान मुगीसुद्दीन’ की उपाधि धारण करके अपने नाम के सिक्के चलवाए व खुतबा पढ़वाए. अगस्त, 1290 ई. में सुल्तान के पुत्र अरकली खाँ ने उज्जू को पराजित किया. सुल्तान ने उसके साथ उदारतापूर्ण व्यवहार करके उसे मुल्तान भेज दिया.

कड़ा का प्रबन्ध सुल्तान ने अपने दामाद अलाउद्दीन को सौंप दिया. 1292 ई. में मंगोल नेता हलाकू खाँ के पौत्र अब्दुल्ला ने पंजाब पर आक्रमण किया. अलाउद्दीन खिलजी ने उसे पराजित किया तथा बाद में उससे सन्धि कर ली. मंगोल वापस लौटने को तैयार हुए. परन्तु चंगेज खाँ के पौत्र उलगू ने लगभग 4000 मंगोलों के साथ इस्लाम ग्रहण करके भारत में रहने का निर्णय लिया.

जलालुद्दीन खिलजी (Jalaluddin firuz Khilji) के शासन काल (खिलजी वंश) की सबसे बड़ी उपलब्धि देवगीरि की विजय थी. इसका श्रेय सुल्तान के दामाद अलाउद्दीन खिलजी को जाता है. उसी के नेतृत्व में तुकों का प्रथम अभियान दक्षिण भारत की ओर गया. तुर्को ने देवगीरि के यादव राजा रामचन्द्र और उसके बेटे शंकरदेव को हराकर उन्हें दिल्ली सल्तनत की अधीनता स्वीकार करवा ली.

देवगीरि की लूट से अपार सम्पत्ति मिली जिसमें 50 मन सोना, 7 मन हीरे-मोती और अन्य लूट का माल कई हजार घोड़ों और 40 हाथियों पर लाद कर लाया गया. भतीजे की सफलता से प्रसन्न होकर सुल्तान उसे बधाई देने स्वयं कड़ा की ओर चल पड़ा.

रास्ते में गंगा नदी के तट पर जब वह अलाउद्दीन खिलजी के गले मिल रहा था तो उस समय पूर्व योजना के आधार पर मुहम्मद सलीम ने उसकी हत्या कर दी. इस प्रकार अलाउद्दीन खिलजी 22 अक्टूबर, 1996 ई. को अपने चाचा की हत्या करवा कर सुल्तान बना.

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