सल्तनत काल केन्द्रीय प्रशासन (Sultanate – Central Administration)

सल्तनत काल केन्द्रीय प्रशासन (Sultanate-Central Administration)-प्रशासन के सुचारु संचालन हेतु सुल्तान मन्त्रियों की नियुक्ति करके उन्हें विभिन्न विभाग सौंपता था. इस काल में मन्त्रिपरिषद् को ‘मजलिस-ए-खलवत कहा जाता था.

सल्तनत काल- केन्द्रीय प्रशासन (Sultanate - Central Administration)

दास वंश के काल में मन्त्रियों की संख्या चार थी, किन्तु कालान्तर में यह संख्या बढ़ कर 6 हो गई थी.

  1. वजीर
  2. आरिज-ए-मुमालिक
  3. दीवान-ए-रसालत
  4. दीवान-ए-इंशा
  5. सद्ग-उस-सुदूर.
  6. दीवान-ए-कजा 

‘मजलिस-ए-खलवत’ की बैठकें ‘मजलिस-ए-खास’ में हुआ करती थीं. ‘बार-ए-आजम’ (जिसमें विद्वान, मुल्ला, काजी आदि भी उपस्थित रहते थे) में सुल्तान राजकीय कार्यों को अधिक भाग पूरा करता था.

वजीर

  • यह सुल्तान का प्रधानमन्त्री होता था तथा लगान, कर व्यवस्था, दान, सैनिक व्यवस्था आदि सभी विभागों की देश-रेख करता था.
  • मुख्यतः वजीर राजस्व विभाग का प्रमुख होता था.
  • सुल्तान की अनुपस्थिति में शासन कार्य का भार वजीर ही सम्भालता था.
  • वजीर ‘दीवान-ए-इसराफ’ (लेखा परीक्षक विभाग), “दीवान-ए-अमीर कोही’ (कृषि विभाग) आदि का प्रमुख था.
  • ‘नायब वजीर’, ‘मुसरिफ-ए-मुमालिक’, ‘मजमुआदार’, ‘खजीन’ आदि वजीर के सहयोगी होते थे.

नाइब

  • बहराम शाह के शासन काल में उसके सरदारों द्वारा इस पद का सृजन किया गया था तथा दुर्बल सुल्तानों के काल में इस पद का विशेष महत्व रहा.
  • यह पद सुल्तान के पश्चात् सर्वोच्च पद माना जाता था.
  • कालान्तर में शक्तिशाली सुल्तानों द्वारा इस पद को समाप्त कर दिया गया अथवा यह पद किसी को सम्मान देने हेतु उपाधि के रूप में दिया जाने लगा.

नाइब वजीर

  • यह वजीर का अनुपस्थिति में उसके स्थान पर तथा उसकी उपस्थिति में उसके सहयोगी के रूप में कार्य करता था.

मुशरिफ-ए-मुमालिक (महालेखाकार)

  • यह प्रान्तों व अन्य विभागों से प्राप्त होने वाले आय-व्यय का ब्यौरा रखता था.
  • फिरोजशाह के समय यह केवल आय का हिसाब-किताब रखने लगा.
  • इसकी सहायता के लिए नाजिर होता था.

मुस्तौफी-ए-मुमालिक (महालेखा परीक्षक)

  • यह मुशरिफ के लेखों-जोखों की जाँच करता था. कभी-कभी यह मुशरिफ की तरह आय-व्यय का निरीक्षण भी करता था.

मजमुआदार

  • इसका मुख्य कार्य उधार दिए गए धन का हिसाब रखना और आय-व्यय को ठीक करना था.

दीवाने वक्फ

  • इस विभाग की स्थापना जलालुद्दीन खिलजी द्वारा की गई थी.
  • यह व्यय के कागजातों की देख-रेख करता था.

दीवाने मुस्तखराज

दीवाने अमीर-कोही

  • मुहम्मद तुगलक द्वारा स्थापित इस विभाग का मुख्य उद्देश्य कृषि क्षेत्र को उन्नत बनाना एवं भूमि को कृषि योग्य बनाना था.
  • ये समस्त विभाग वजीर के कार्यालय ‘दीवाने विजारत‘ द्वारा नियन्त्रित होते थे.
  • विजारत को संस्था के रूप में प्रयोग करने की प्रेरणा अब्बासी खलीफाओं ने फारस से ली थी.

आरिजे मुमालिक

  • इसे दीवाने अर्ज’ अथवा ‘दीवाने आरिज’ भी कहा जाता था.
  • यह सैन्य विभाग का प्रमुख था तथा सैनिकों को भर्ती करना, उनका हुलिया दर्ज करना, घोड़ों को दागना, सैनिकों का प्रशिक्षण, सेना का निरीक्षण आदि इसके प्रमुख कार्य थे.
  • इस विभाग का सृजन सुल्तान गयासुद्दीन बलबन ने किया था.

वकीले सुल्तान

  • इस विभाग की स्थापना तुगलक वंश के अन्तिम शासक नसिरुद्दीन महमूद द्वारा की गई थी.
  • ‘वकील-ए-सुल्तान’ का कार्य शासन व्यवस्था एवं सैनिक व्यवस्था की देखभाल करना था.
  • कालान्तर में यह पद समाप्त कर दिया गया.

दीवाने इंशा

  • ‘वरीद-ए-खास’ के अधीन इस विभाग का कार्य शाही घोषणाओं और पत्रों के मसविदे तैयार करना होता था.
  • इसकी सहायता हेतु अनेक दबीर (लेखक) होते थे.
  • सुल्तान के सभी फरमानों को इसी विभाग से जारी किया जाता था.

दीवाने रसालत

  • यह विदेशों से पत्र व्यवहार तथा विदेशी राजदूतों की व्यवस्था करता था.
  • यह विदेशों में राजदूत भी नियुक्त करता था.
  • किन्तु इस विभाग के कार्यों के विषय में अभी तक विवाद है.

सद्र-उस-सुदूर

  • यह धर्म तथा राजकीय दान विभाग का सर्वोच्च अधिकारी होता था.
  • राज्य के प्रधान काजी तथा सद्र-उस-सुदूर का पद प्रायः एक ही व्यक्ति को दिया जाता था.
  • इसका मुख्य कार्य इस्लामी नियमों और उप-नियमों को लागू करना तथा उन नियमों की व्यवहार में पालना हेतु व्यवस्था करना था.
  • वह मस्जिदों, मदरसों, मकतबों आदि के निर्माण हेतु धन की व्यवस्था भी करता था.
  • मुसलमानों से प्राप्त ‘जकात’ (धार्मिक कर) पर इस अधिकारी का अधिकार होता था.

काजी-उल्-कजात

  • यह सुल्तान के पश्चात् न्याय विभाग का सर्वोच्च अधिकारी होता था.
  • मुकद्दमें प्रायः इसी के न्यायालय में शुरू किए जाते थे.
  • इसके न्यायालय में नीचे के काजियों के निर्णयों पर पुनर्विचार किया जाता था.

बरीद-ए-मुमालिक

  • यह गुप्तचर तथा डाक विभाग का अध्यक्ष था.
  • विभिन्न गुप्तचर, संदेशवाहक एवं डाक चौकी इसी के अधीन होती थी.
  • राजमहल तथा दरबार से सम्बन्धित अन्य कर्मचारी निम्नलिखित थे-
  1. वकील-ए-दरयह अत्यन्त महत्वपूर्ण पद था जिस पर सुल्तान विश्वसनीय व्यक्तियों की नियुक्ति करता था. इसके प्रमुख कार्य शाही महल और सुलतान की व्यक्तिगत सेवाओं की देखभाल करना था. शाही आदेशों का प्रसार व क्रियान्वयन इसी के माध्यम से किया जाता था.
  2. बारबरक – यह शाही दरबार की शान-शौकत, रस्मों एवं मर्यादाओं की रक्षा करता था.
  3. अमीर-ए-हाजिब – यह सुल्तान से भेंट करने वालों की जाँच-पड़ताल करता था तथा सुल्तान का निम्न श्रेणी के पदाधिकारियों और जनता के बीच मध्यस्थ का कार्य करता था.
  4. अमीर-ए-शिकार – यह सुल्तान के शिकार की व्यवस्था किया करता था.
  5. अमीर-ए-मजलिस – यह राज्य दरबार में होने वाले उत्सवों और दावतों का प्रबन्ध करता था.
  6. सदर-ए-जहाँदार – यह सुल्तान के अंग-रक्षकों का अधिकारी था.
  7. अमीर-ए-आखूर – यह अश्वशाला (अस्तबल) का अध्यक्ष था.
  8. शहना-ए-पील – यह हस्तिशाला का अध्यक्ष होता था.
  9. दीवान-ए-बंदगान – यह दासों या गुलामों का विभाग था. इसकी स्थापना फिरोजशाह तुगलक ने की थी.
  10. दीवान-ए-इस्तिफाक – यह पेंशन विभाग का अध्यक्ष था.
  11. दीवान-ए-खैरात – यह दान विभाग का अध्यक्ष था. इसकी स्थापना फिरोज तुगलक ने की थी.

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